अतुलनीय हैं,चचा बतोले


     इसे कहते हैं कुश्ती का धोबिया पछाड़ दांव। सारे विरोधी पहलवान चित और देश ख्वाज़ासारी की फेहरिस्त में शामिल। लोग तालियां बजा बजाकर स्वयं की खिल्ली उड़ा रहे हैं या किसी को चिढ़ारहे थे, अंदाजा लगाना दुर्लभ है। कोई भी व्यक्ति जब-तक खुद को हंसी का पात्र नहीं बनाता तब-तक पारंगत विदूषक भी नहीं हो सकता! आज दुनिया के दो देश मूक दर्शक बन अपनी धज्जियां उड़ते हुए देख रहे हैं। जहां चीन अपने गलत खान-पान का खामियाजा भुगत रहा है वहीं  भारत अपने गलत मतदान की वजह से दैहिक व मानसिक यातनाएं झेलने पर विवश है । बटोले चाचा ने मुल्ला नसरुद्दीन को भी मात दे दी है । एक बार मुल्ला नसरुद्दीन पारगमन/ परस्त्रीगमन के उद्देश्य रात्रि में विचरण कर रहे थे। अंधेरे में एक स्त्री दिखाई पड़ी वह उससे जा चिपटे। तभी पुलिस वाला वहां से गुजरते हुए आवाज दिया:- कौन हो और यहाँ क्या कर रहे हो? मुल्ला ने जवाब दिया कि दरोगा जी मैं ***** नसरुद्दीन जरा अपनी पत्नी से प्यार कर रहा था । दरोगा ने अगला सवाल दागा:- तुम्हारे पास घर नहीं है जो पत्नी को प्यार करने यहां ले आए हो? मुल्ला ने लड़खड़ाते आवाज में कहा:- दरोगा जी यह बात मुझे तब पता चली  कि यह मेरी पत्नी है जब आपने टार्च जलाया वरना--मुझे कहां पता था। ठीक इसी तरह हमारे बतोले चचा भी अंधविश्वास की कालकोठरी में अनजाने में ही अपने ही हिंदुओं व देशवासियों को फटका लगाते चले जा रहे हैं। क्योंकि अभी तक किसी ने उन्हें टोर्च की रोशनी नहीं दिखाई है।
        मुद्दे की बात की जाए कोरोनावायरस भयानक व्याधि है। यह जब अपनी बाँहें फैलाती है और किसी को आगोश में लेना चाहती तब यह अमीरी-गरीबी, ऊंच-नीच, कमजोर-शक्तिशाली, स्वदेशी-विदेशी व हिंदू मुस्लिम में कोई भी भेद नहीं करती। समरसता का रस पीकर सिर्फ समता भाव से ही आकर्षित करती है। चचा के तानाशाही फरमान का पालन करते हुए हमने  भी जनता कर्फ्यू के नायाब खोज की पूरी मुस्तैदी से अक्षरशः  अनुपालन किया। कोरोना वायरस के फैलने के भय से नहीं बल्कि बिना नेम प्लेट के खाकी वर्दी में पुलिस का नाम बदनाम करने वाले घूम रहे आततायियों के भय से अनुपालन करना पड़ा। डर का करो ना हिला कर रख दिया था कि चचा के फरमान की हिकमत अमली नहीं की गई तब इनके दो पैर के हिंसक पशु हमारे नितंब की साइज 56 इंच अवश्य कर देंगे। जिन्होंने हुकूमत-ऊदली की वह शायद नितंब की गोलाइयों की वजह से सुबह आबदस्त भी नहीं कर पाए होंगे। होम आइसोलेशन का अनुवाद जनता कर्फ्यू करने में चचा ने डेढ़ महीने का समय लगाया है तो बाकायदा उसे हैवान-ए- सियासत की भट्टी व सांप्रदायिकता के प्रेशर कुकर में पकाया होगा ।

   कोरोनावायरस की मारक क्षमता 0.1% है यह बात चचा को बेहतर ज्ञात है। दुनिया किसी भी धूरी पर टिकी हो परंतु हमारा देश तो शेषनाग के फन पर ही टिका है । शेषनाग की उपस्थिति किसी चमगादड़ को फटकने भी नहीं देगी। बस उन्हें एक बार जगाने की आवश्यकता थी वह हमने ताली और थाली बजाकर पूरी कर दी है। थाली बजाते समय यदि हमने फ़र्श या ज़मीन पर पैर पड़का होगा तब शेषनाग चैतन्य हो गए होंगे। अन्यथा इसकी पुनरावृति करनी पड़ेगी। जीव विज्ञान के अनुसार सांप में श्रवण शक्ति नही होती परन्तु हम तो बीन की धुन पर सांपों को सदियों से नचाते रहें हैं । जीव विज्ञान के अनुसार सांप को सतर्क/सक्रिय करने के लिए धरती का कंपन जरूरी है । वह जिह्वा से कंपन महसूस कर रेंगने मे दिशा और गति निर्धारित करते हैं । चुनांची खतरा मोल लेना नही चाहते इसलिए पैर पटकने का भी प्रयोग कर लेना आवश्यक है । मुआफ़ी सांप नही शेषनाग ।
    चचा की कूट रचनानुसार शायद लोग अभी पैरों को जमीन पर नहीं पटके होंगे पुनरावृति की आवश्यकता पड़ेगी । शायद इसीलिए यह कर्फ्यू उत्तर प्रदेश में 25 मार्च तक बढ़ा दिया गया है परिस्थितियों अनुसार फिर बढ़ाया जा सकता है! जब तक शेषनाग सक्रिय नहीं होंगे तब तक चमगादड़ अपनी उधम मचाते रहेंगे या उनके उधम मचाने का प्रचार-प्रसार चलता रहेगा। हमारे मुमुक्षु लोग शेषनाथ को जगाने व भगवान विष्णु की मदद लेने का प्रयास करते रहेंगे। हमें चिकित्सीय पद्धति से निपटने की विधि पर गंभीर विमर्श कर लेना चाहिए।
   विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पूरी दुनिया में 242173 लोग विषाणु ग्रसित पाए गए हैं। जिनमें से प्रकृति ने 10,000 लोगों को आपदा कि गोद में धकेल कर उन्हें मुकम्मल नींद में सुला दिया है। यदि हमें चिकित्सीय पद्धति से इस महामारी पर जीत हासिल करनी है तो क्या हमारे पास आधार व्यवस्था उपलब्ध हैं? जिस तरह मीडिया बताने की कोशिश कर रही है कि यह विषाणु भारत में तीसरे चरण पर पहुंच चुका है, यही चरण सबसे घातक होता है। संपूर्ण स्थित पर एक विश्लेषण करते हैं। हमारे यहां अस्पतालों की क्षमता क्या है? हमारे देश में अस्पताल चार श्रेणियों में बटे हैं। सामुदायिक केंद्र, ग्रामीण अस्पताल,शहरी /जिला अस्पताल, अत्याधुनिक अस्पताल व आयुर्विज्ञान संस्थान। सभी अस्पतालों को इकट्ठा कर देखा जाए तो कुल ICU की संख्या 100,000 के आसपास है। यदि इस महामारी से निपटने की मजबूरी हुई तब हमें तकरीबन 50लाख बेड और 5लाख आईसीयू की आवश्यकता पड़ेगी। तभी प्राथमिक स्तर का इलाज विधिवत शुरू किया जा सकता है । हमारे देश में 37725 अस्पताल क्रियाशील है, जिसमें 133 रक्षा विभाग के,126 रेलवे के और 150 राज्य कर्मचारी बीमा के अस्पताल हैं । सभी अस्पतालों को मिलाकर देखने पर उपलब्ध बेड की संख्या 2039024 हो जाएगी अवशेष 30लाख बेड की व्यवस्था कैसे होगी यह विचारणीय है ।
        हमारा देश 3287263 स्क्वायर किलोमीटर में फैला है यदि पूरे देश को क्वारंटाइन करने की आवश्यकता पड़ी तब हमें शायद 1.7 करोड़ कर्मचारियों की आवश्यकता पड़ने वाली है। वर्तमान में हमारे देश में 21,547,845 कर्मचारी कार्यरत है। क्वारंटाइन करने की दशा में शायद 1 किलोमीटर की परिधि में शायद एक-एक टीम बनानी पड़े और एक टीम में चार से पांच कर्मचारियों को नियोजित करने की आवश्यकता हो! प्रक्षालक (सैनिटाइजर) बनाने वाली जो सक्रिय रूप से उत्पादन कर रही हैं उनकी संख्या 15 है। यूँ तो कागजों पर 52 कंपनियां हैं जो प्रक्षालक बनाती हैं परन्तु धरातल पर सिर्फ 15 हैं जिनका उत्पादन चल रहा है । एक नजर इस सारणी पर भी डाल देना चाहिए कि हम असलियत में खड़े कहां है?
*अमेरिका* की आबादी 32.72 करोड़ जहां 25,000 लोगों का परीक्षण हुआ।
*इटली* 6.55 करोड़ की आबादी वाला देश 134,000 करो करोड़ लोगों का परीक्षण कर चुका है।
 *साउथ कोरिया* 5.15 करोड़ आबादी वाला देश 274,001 आ परीक्षण कर चुका है ।
*जर्मनी* 8 करोड़ 35 लाख आबादी वाला देश 15,000 लोगों का प्रति सप्ताह परीक्षण कर रहा है।
*भारत* 135 करोड़ आबादी का देश जिसमें पूरे देश में 72 लैब सक्रिय हैं ।उनमें अभी तक सिर्फ 13,486 लोगों की ही जांच हो पाई है।
 *चीन* 136 करोड़ आबादी का देश 235,000 लोगों का परीक्षण कर चुका है ।
 उपर्युक्त आंकड़ों को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि यदि हमें इस महामारी से निपटना पड़े तब हम धरातल पर फिसड्डी साबित होंगे। इस विफलता का दाग दामन पर लगने न पाए कहीं इसीलिए तो नहीं हम फिजूल के कार्यों में लोगों को उलझा हैं । अपने दामन से दाग हटाने का प्रयास सावधानी के रूप में पहले से ही कर रहे हैं? संभव है हमारे बतोले चचा अतुलनीय विदूषक अदाकारी से अपने दामन पर दाग न लगने दें!परंतु देश के दामन पर जो दाग लगेगा वह सदियों तक नहीं भूलेगा। मुज़फ्फ़र रज़्मी की यह लाइनें:
 ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने,
 लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई ।
पूरी तरह से उपयुक्त लगती है।
गौतम राणे सागर ।

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