बेबस मजदूरों पर उप्र सरकार ने किया फिनायल छिड़काव


           सड़कों पर भागती जिंदा लाशें, वर्तमान में जान बचाने की छटपटाहट  ,अंधकारमयी भविष्य से अनजान निकल पड़ी हैं गिद्ध और कौओं की भूख मिटाने । कौन हैं यह लोग? जिन पर सरकार पुलिसकर्मियों को फिनायल डालने पर बाध्य कर रही है। फिनायल कीटाणु को मारने के लिए प्रयोग किया जाता है न? क्या यह सब कीटाणु हैं जो मनुष्य सादृश्य दिख रहे हैं? शायद नहीं । परन्तु सरकार की पैनी दृष्टि ने इन कीटाणुओं को पहचान कर फिनायल से मारने का निर्णय ले लिया है। क्रियान्वयन स्वरूप बेबसी में पैदल लड़खड़ाते चल रह मजदूरों,नहीं इन कीटाणुओं पर उप्र सरकार ने पुलिस कर्मियों को फिनायल छिड़कने के आदेश दिये ताकि इन रेंगते कीड़े-मकोड़ों से प्रदेश को मुक्ति दिलाई जा सके ।
        यह भारत की जनता है। कहने को बहुमूल्य नागरिक; और अमूल्य है इनके मत।  संवैधानिक अधिकार यही कहते हैं परंतु इन्होंने अपने इस अधिकार को समझने का प्रयत्न ही कब किया है। प्रयत्न के अभाव में अधिकार का ज्ञान हासिल हो कैसे सकता है? यह कौओं की भांति हजारों साल जीने की तमन्ना पाले मस्त हैं । कहने को यह दावा करते हैं कि यह किसी के गुलाम नहीं है। शायद इन्हें अहसास नहीं है कि गुलामी कहते किसे हैं। प्राचीन के पात्र हरिश्चंद्र की तरह प्रदेश के हर छोटे-बड़े शहरों के लेबर चौराहे पर खड़े होकर दिनभर के लिए अपने को बेचने के अवसर को ही यह स्वाभिमान मान लेते हैं । आज जब फंसे हैं तब कराह रहे है; हमारी कोई सुध नहीं ले रहा है । कोई आपकी सुध क्यों लेगा ? जब आप अपनी सुध लेने को ही तैयार नहीं है। इस देश में लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली है। यूं ही इतनी आसानी से नहीं आ गई है यह प्रणाली। लोकतंत्र की बहाली हेतु  कई पीढ़ियों को सोने की भांति कोयले की धधकती अग्नि में तपना पड़ा है । यह सब उन्होंने अपनी आने वाली पीढ़ियों को अधिकाराच्छादित करने के लिए दैहिक, दैनिक व मानसिक यंत्रणा के मर्म सहे है। यकीनन आजादी के परवानों की आत्मा फफक कर रो रही होगी, सोचते होंगे; कि हमने इन कीड़े मकोड़ों की जिंदगी भर खुश रहने वाली पीढ़ियों के लिए अपनी खुशियां क्यों बर्बाद की?
          आजादी के परवानों की आवाज बनकर इन कीड़े मकोड़ों को एक बार फिर इंसानियत की दुहाई देकर गहरी नींद से स्वयं को जगाने की याचना करता हूँ। जो मैं कहता हूं: ध्यान दें!यह भारत भूमि है। यहां लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली है यानी हर एक व्यस्क इस देश का निर्माता है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल ,मुख्यमंत्री व समस्त जनप्रतिनिधि आपके सिर्फ एक प्रतिनिधि हैं । राष्ट्रपति आपके राष्ट्राध्यक्ष व समस्त सरकारी मुलाजिम राष्ट्रपति के अधीन कर्मचारी यानी लोक सेवक हैं। और आप जन आपका ही तंत्र है । एक लोक सेवक जन पर लांठियां कैसे भांज सकता है? आपका प्रतिनिधि आपकी संपत्ति का एक ट्रस्टी मात्र है वह तानाशाह बनकर आपको उन संसाधनों के प्रयोग से वंचित कैसे कर सकता है? यदि करता है तब वह जनप्रतिनिधि के दायित्व का उल्लंघन कर रहा है। यह दुस्साहस दिखाने की उसे यह ताकत कहां से मिलती है?  कभी सोचा आपने? यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि वंचित समाज को अधिकारों के साम्राज्य से सिंचित करने वाले महान विभूति बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर को न तो आपने कभी अपना नेता स्वीकार किया है और न ही उनके कथनों को कंठस्थ कर अपने आचरण में उतारने का प्रयास किया।
          हमें एहसास है कि देश के बड़े-बड़े शहरों में फंसे लोग वह लोग हैं जो रोजी-रोटी की तलाश में भटकते-भटकते घर बार छोड़ उनका पेट भरने की नीयत से शहरों में आ जाते हैं ।जब चुनाव आता है,अपना सच्चा व योग्य प्रतिनिधि चुनने की बारी आती है तब आप सब अपना वोट डालने जाते नहीं और जिनका पेट भरने के लिए आप बड़े शहरों के सबसे गंदी जगहों पर रहने को विवश हैं, वही लोग या तो जाति, धर्म, संप्रदाय, मंदिर के नाम पर या फिर कुछ पैसों के लालच में अपना वोट देते हैं;और एक दुष्ट व्यक्ति को अपना प्रतिनिधि चुन लेते हैं। एक दुष्ट कभी भी एक शिष्ट व्यक्ति को सम्मान नहीं दे सकता। यह प्रक्रिया तब तक चलती रहेगी जब तक आप जाति, धर्म व संप्रदाय के आधार पर वोट करते रहेंगे। दिल्ली, मुंबई, मद्रास आसाम,जयपुर,कोलकाता व अन्य शहरों में फंसे लोगों अपने अपने दिलों पर हाथ रख कर सोचो: यदि आप चुनाव के समय अपना दो दिन का वक्त निकालकर चुनाव में भाग लेने अपने-अपने गांव जाकर अपने अमूल्य मतों का सही उपयोग करते तब आपको यह दिन देखना न पड़ता। आज जो सरकारें हैं वह आपको इस लायक नहीं समझती कि आपकी मदद के लिए आगे आए! यह आपको थके मादे वह भूख से बिलबिलाता सड़कों पर खड़ा कर एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं । यह सरकारें हर चीज को राजनीतिक लाभ और हानि की दृष्टि से देखती है। पार्टी को चंदा देने वाले लोगों के लाभ हानि का गुणा गणित लगाकर ही कोई कदम उठाती हैं।
         हमारे देश में लोकतंत्र का अभिनय चल रहा है। धन्ना सेठों के नोटों से गरीबों के वोटों को खरीदा जा रहा है। जब-तक गरीबों का वोट लुटता व बिकता रहेगा; तब तक धन्नासेठ व गुंडे गरीबों का शोषण करते रहेंगे। झूठ व फरेब की असीमित शक्तियों के स्वामी झूठी खबरों के माध्यम से एक जगह इकट्ठा होने का लालच देती हैं ,आप जब बेबसी की हालत में पहुँचते हैं  तब इनकी राजनीतिक रोटियां सेंकने का तंदूर गर्म हो जाता है। मर जाती हैं इनकी संवेदनाएं;क्योंकि उस भीड़ में इनका अपना कोई नहीं है। आनन्द विहार में यही खेल चल रहा था । जब उप्र सरकार ने श्रेय लेने की दृष्टि से अपने प्रदेशवासियों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए 3000 बसों को भेजने की अफवाह उड़ाई तब मसीहा का लबादा ओढ़े भेड़िये केजरीवाल ने राजनीतिक लाभ लेने के लिए मजदूरों को आनन्द विहार पहुँचने के लिए प्रेरित किया । भूखे मरने से बचने के प्रयास में जब आपको बसें नहीं मिलीं  और आपने पैदल ही चलकर घर पहुंचने का प्रयास किया तब कानून व्यवस्था के नाम पर उप्र पुलिस ने आपके नितम्बों/पिछवाड़े लाल करना शुरू कर दिया । हां: यह सच है कि यह समय इस तरह की बातें करने का नहीं है, परन्तु क्या करें? यदि यह बात अभी नहीं करेंगे तब कब करेंगे? आपकी याददाश्त बहुत कमजोर है,शीघ्र ही यह घटना भूल जाएंगे । इस घटना को भूलने के बाद आपको हमारी बात समझ  में नहीं आएगी और पुनः भेड़ों को प्रलोभन देने का भेड़ियों का कुचक्र शुरू हो जाएगा ।
    गौतम राणे सागर ।

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