हर घर से निकलेगी मौत की चित्कारें ?


     तुकबंदी की भी एक सीमा होती है। करुणा क्या है एहसास है आपको या शंकर जी की बूटी में मस्त उवाच पाठ का  प्रदर्शन चल रहा है? करुणा समझती है वह माँ, जिसके स्तन का दुग्ध पौष्टिक आहार के अभाव में सूख गया है। इसके बावजूद वह माँ अपने नौनिहाल बिलखते नहीं चित्कारे बच्चे के मुंह में अपना सूखा स्तन इस उम्मीद से पकड़ाती है कि दूध न सही इससे रुधिर ही निकल जाए,ताकि उसके लाल का हलक गिला हो जाए! वह चिल्लाना बंद कर दे। एक भूख से बिलखते माँ को सिर्फ एक माँ ही समझती है जो अभावों के भव सागर के रूदन से रोज दो चार होती है । अपने बार-बार असफल प्रयासों को दोहराने के बावजूद जब सफल नहीं हो पाती तब वह माँ अनिर्णय के चौराहे पर खड़ी हो जाती है। समझ नहीं पाती है  कि वह आत्महत्या कर ले, या अपनी जान से कीमती उस बच्चे का गला घोंटकर मार दे! क्या करें आखिर वह मां ?कैसे सहे उस असहनीय पीड़ा को जो शारीरिक रूप से उसके बच्चे को तकलीफ दे रही है परन्तु मानसिक तौर पर उसे अंदर तक दहला देती है । है कैसी विडंबना है कि वह विवश है चित्कार मारते मारते थक गए अपने बच्चे के शरीर को देखने पर? जो अब शांत हो गया है । उसका शरीर ठंडा पड़ता जा रहा है । इन परिस्थितियों में भी वह आशान्वित होकर असहाय निहारते हुए संतुष्ट हो जाना चाहती है कि शायद उसका बच्चा थक कर सो गया है! एक मजबूर माँ जिसके  पति की आजीविका छीन ली गई हो के जीवन मे संतुष्टि के अवसर कहाँ आते हैं। थोड़ी देर बाद ही वह यह देखकर अवाक् हो जाती है कि उसके नौनिहाल का शरीर अकड़ने लगा है-- -शायद वह जिंदगी की लड़ाई लड़ते-लड़ते हार गया है। वह अब मां के सामने अपनी भूख कभी बयां नहीं करेगा! इस अनिर्णय की स्थिति से उबरने में आपकी करुणा कौन सी भूमिका निभाएगी? उस माँ को मरने की प्रेरणा देगी या जनता कर्फ्यू के लिए बाध्य करेगी? आपके *लाक डाउन या जनता कर्फ्यू ही* ने उसके बच्चे की जान ली है। आपके इसी तुकबंदी ने इस बेबस असहाय मां के पति की नौकरी और उसके लाड़ले को छीना है। आपके बहरत से चिंतित होकर उसके मालिक ने उसके पेट पर घन का वार किया और नितंब पर लात मार कर उसको उस कोठरी से भगा दिया जिसे मजदूरी करने की एवज में रहने के लिए फैक्टरी के कंम्पाऊंड में
दिया था।
   यह ह्रदय विदारक स्थित दम तोड़ चुके बच्चे के सिर्फ एक मजबूर मां और उसके मजदूर पिता की ही नहीं अपितु असंगठित क्षेत्र के 30 करोड़ मजदूरों की एक लंबी फौज की आपबीती कहानी है। जहां इस 21 दिन में (इसमें वृद्धि भी हो सकती है) इन 30 करोड़ मजदूरों के प्रत्येक घरों में पसरने वाले शवों के आसपास समुद्र की गहराइयों जैसे अथाह पीड़ा में चित्कारों की आवाजें आपके जनता कर्फ्यू की शांति को भंग करती रहेंगी । इन कराहती आवाजों पर भी बिठा दीजिए पहरा और ता'मील कर दीजिये सीआरपीसी की धाराएं । रोक सकते हैं तो रोक लीजिए इंसानियत को लज्जित करती इन आवाजों को जो आप के नाकाबिले हिफाज़त की सजा भुगत रहीं हैं । आप जिन्दगी पर कर्फ़्यू लगा सकते हैं परन्तु मौत पर कैसे लगाएंगे? मुझे आप पर फक्र है। आप जैसा अभिनेता जिसे रंगमंच के सारे संवाद याद रहते हैं। बहरत बोलने में आप जिस उतार-चढ़ाव व ठहराव का मिश्रण करते हैं यही है आपकी अकल्पनीय क्षमता।
       आप दावा करेंगे कि हम देश की गरिमा व राष्ट्र के नागरिकों की सुरक्षा के लिए यह कदम उठा रहे हैं। भारतीयों ने हमेशा अपने नेताओं पर आंख बंद करके विश्वास किया है । कुछ तो वजह होगी जो इन्हें आप पर विश्वास करने नहीं देती! भूतकाल में किये गये आपके कुकृत्य को याद करते ही देश दहल जाता है।  विमुद्रीकरण के दावों की धज्जियां उड़ाती जमीनी हकीकते, जिसने काले धन को खत्म करने के दावे के उलट काले धन वालों को देश की मुख्यधारा की आर्थिक व्यवस्था से जोड़ने के उपक्रम का निर्माण किया । GST (गरीब सताओ तरकीब) जिसने असंगठित क्षेत्र के छोटे-बड़े सभी परिश्रमी मजदूरों के आय के स्रोत ही बंद कर दिये थे । इन सभी तबाहियों से देश के किसान, मजदूर, रिक्शा चालक, नाई, रेहड़ी व्यवसाई, धोबी, मोची, भड़भुजा, छोटी-छोटी आटा-चक्की व तेल पेराई से अपनी आजीविका तलाश कर उबरने का प्रयास कर ही रहे थे कि महाभारत मंचन के लिए तैयार आप की पटकथा *जनता कर्फ्यू* ने इन्हें एक बार फिर से उजाड़ दिया है।
  आप के दावों की समीक्षा तो होनी ही चाहिए वैसे भी कमजोर व निरीह मेरे देश के नागरिक आपके दावों को सामने रखे बगैर अपनी राय देने का अपराध नहीं कर सकते! आप के अनुसार कोरोना भयंकर महामारी है। ठीक है स्वीकार किया,परन्तु देश के नागरिकों के अनुसार आपकी करूना ही प्रलयंकारी है । देश हित में अभी तक आपके उठाए गए कदम यही इशारा करते हैं ।
देश के प्रत्येक सुधीजन जानना चाहते हैं कि यह महामारी जब दुनिया के तमाम शासकों को अपने चंगुल में दबा सकती है जैसे: ब्रिटेन के प्रिंस, स्पेन के प्रधानमंत्री की पत्नी, यहाँ तक कि  भारत के राष्ट्रपति भवन में भी दस्तक दे देती है परंतु मध्यप्रदेश के भोपाल में विधायकों के खरीद-फरोख्त, सरकार के तख्तापलट, विधायक दल के नेता का चयन, शपथ ग्रहण, बहुमत परीक्षण,व अयोध्या में विष्णु के शेषनाग अवतारी राम भक्त हनुमान योगी के राम भक्ति में लीन होकर मंदिर का शिलान्यास करते समय यह कोरोना आखिर इनके यहां दस्तक क्यों नहीं दे पाता? घबराता है क्या कि सीबीआई, ईडी व यूपी पुलिस के घेरे में आ जाएगा और भारत के विपक्षी दलों जैसे दुबकी मार कर किसी कोने में बैठने पर मजबूर हो जाएंगे !
        यह देश विचारक होने की बरक्स प्रचारक हो गया है, तभी झूठ और फरेब की असीमित शक्तियों के स्वामी देश निर्माण में लिप्त गरीब, दिहाड़ी मजदूर व किसानों को अपने फितरत के जाल में फंसा कर हमेशा उनसे देशभक्ति का सबूत मांग रहे है। जो लोग दूसरों के मौत का सौदा करते हैं । उनके बहते लहू पर मुस्कुराते हैं । उन्हें जब भी अपनी मौत दिखने लगे वह भी अदृश्य शक्तियों के रूप में तब वह कांप जाते हैं ,अंदर तक सिंहर जाते हैं ।  मृत्यु के भय के परिवेश में जीने वाला व्यक्ति तुकबंदी नहीं करता। महाभारत की बात तो कतई नहीं कर सकता। यदि यहां महाभारत होगा तब महाभारत किसके-किसके बीच होगा यह विचारणीय है। इसके लिए दोनों सेनाओं को आमने-सामने होना होगा। यदि मान ले कि आप पांडव हैं तब कौरव कौन हैं कोरोना? बिल्कुल नहीं; महाभारत अपनों के बीच हिस्सेदारी के लिए हुआ संग्राम था। यदि वाकई इस देश में एक बार फिर महाभारत की बिसात बिछाई जा रही है तब निश्चित है कि कोरोना आपका अपना सगा है (नाम परिवर्तित हो सकता है) आपके जीतने पर आपके हिस्से पर आप का दावा हो जाएगा-परंतु बेकसूर मरने वाले लोगों का क्या होगा? इन शवों  के पास बैठकर रोने वाले परिजनों का दोष क्या है जिन्हें खून के आंसू रोने पड़ रहे हैं ? यह कोरोना से नही भूखे पेट में पल-पल उठ रहे कोहराम और मौत से क्षण-क्षण हो रहे आमना-सामना से हिले हुए हैं ।
  इनकी चित्कारे इसलिए निकल रही है क्योंकि आपकी एक सनक ने अनिश्चितकाल तक उन्हें एक जगह रह कर भूखे मरने पर मजबूर कर दिया है । आपके महाभारत के बयान ने सशंकित कर दिया है क्या यह वाकई कोरोना महामारी से उबरने की पहल है या आपके किसी दूरगामी रणनीति के हम सब जाने-अनजाने सहायक तो नहीं बन रहे हैं? इस रणनीति की साजिश से जब तक पर्दा उठेगा तब तक हम या तो चार कंधों पर होंगे या फिर मुझे अपनाने या पहचानने वाला अपना कोई नहीं होगा। वाकई देश पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
   नीरज की लाइने:-
 अपने देश की हालत मुझको बिल्कुल वैसी ही दिखती है,
  जैसे बाज के पंजे में इक गौरैया का बच्चा था।
गौतम राणे सागर ।

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