गोधूलि पहर था। वीरान पड़े इज्जत नगर स्टेशन पर नेकचन्द पहुंच चुके थे। उन्हें कहीं जरूरी काम से जाना था और इसके अलावा कोई साधन नही था। उनका गांव स्टेशन से 10कोस दूर था। यह कस्बे का एक छोटा स्टेशन है। यहां सिर्फ दो सवारी गाड़ी चलती है। एक दिन के 2:00 बजे और दूसरी रात के 2:00 बजे। रात्रि वाली सवारी गाड़ी के यात्री कम निकलते हैं। या यूं कहा जाए कि कभी-कभार एकाध सवारी मिल जाती है। गाड़ी चलती है- स्टेशन पर रूकती है इसलिए यहाँ दो कर्मचारियों की पर तैनाती है:' स्टेशन मास्टर माया प्रसाद और पोर्टर घोंचूराम।
नेक चंद समय से काफी पहले स्टेशन पहुंच गए थे। स्टेशन स्याह रंग में बदलता जा रहा था। आसपास कोई गांव भी नहीं था, जो गांव थे वह भी दो-चार कोस की दूरी पर। रात घिरती जा रही थी। गहरी होती रात की शांय-शांय करती आवाजें कहर ढा रही थी । रात्रि की भयावहता को छेड़ने का प्रयास एक टिमटिमाता दीया कर रहा था। जिसे घोंचू राम ने साफ कर व मिट्टी का तेल डालकर जला दिया था। थोड़ी देर नेक चंद आवारगी में इधर-उधर टहलते रहे आखिरकार थककर स्टेशन के प्रतीक्षालय में पड़ी एक बेंच पर आकर बैठ गए।
काफी देर बाद माया प्रसाद की दृष्टि पड़ी कि नेक चंद के पास एक बैग है; जिसे वह बार-बार छिपाने का प्रयास कर रहा है। माया प्रसाद की माया दृष्टि प्रासाद की लालसा में पैनी होती चली गई। नेकचंद बैग छिपाने का जितना अधिक प्रयास करता माया प्रसाद की दृष्टि उतनी ही छल के लिए कमीनी होती जा रही थी। बस उनकी दृष्टि, गिद्ध दृष्टि में बदलने से पहले पैनी होकर विश्वस्त हो जाना चाहती थी कि नेक चंद का बैग वाकई माल से भरा है कि नहीं? जैसे ही नेक चंद के नयन माया प्रसाद के चेहरे पर पड़े,उसमें शरारत दिखी वह अपने बैग को अपने बुशर्ट के अंदर छुपा लेने का यत्न करने लगा। नेक चंद दिखने में भी मोटा आसामी लगता था। साथ में बैग सोने पर सुहागे का काम कर रहा था ।
माया प्रसाद की पैनी दृष्टि ने संकेत दे दिए थे कि नेक चंद के उदर में दाम है। फिर क्या था माया प्रसाद की गिद्ध दृष्टि ने नेकचंद को लूटने का प्रपंच शुरू कर दिया। घोंचूराम को बुलाया और कान में फुसफुसाते हुए कहा:-कि देखो गाड़ी तो 2:00 बजे जाएगी उसके पहले इस यात्री पर ध्यान रखो जब इसे नींद आ जाए तब इसका गला घोट दो । घोंचूराम टहनियां काटने वाली कुल्हाड़ी ढूंढ कर अपने करीब संभाल कर रख लिया और नेकचंद के करीब पड़ी स्टूल पर जा बैठा।
रात्रि के करीब 11:00 बज रहे होंगे घोंचू राम को झपकी आने लगी। नेकचंद को लगा कि कहीं उसे भी झपकी न आ जाए, लिहाजा उठकर स्टेशन के बाहर टहलने लगा। माया प्रसाद को भी नींद आने लगी उन्होंने देखा:- कि बेंच इस समय खाली पड़ी है वह जाकर उसी बेंच पर जाकर सो गया जिस पर नेक चंद कुछ समय पहले अलट-पलट रहा था। थोड़ी देर में ही माया प्रसाद के खर्राटे शुरू हो गए। घोंचू राम की नींद खुल गई देखा की बेंच से खर्र-खर्र की आवाजें आ रही हैं। उसे लगा यही मौका है नेकचंद का काम तमाम करने का आव देखा न ताव उठाया कुल्हाड़ी गर्दन पर मारा खचाकककक
गौतम राणे सागर ।
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