पत्रकारिता के लिए बदनुमा धब्बा है कुलपहाड़ पुलिस



उत्तर प्रदेश जिला महोबा फिर सुर्खियों में,पुलिस की कार्यशैली संदेह के घेरे में

✍महोबा,निर्भीक निष्पक्ष पत्रकार और पत्रकारिता को जमींदोज कराने  का नाम है थाना कुलपहाड़ पुलिस-? बदतर चेहरा, भद्दे बोल और कानून के नंगे नाच का पाठ पढ़ाने का नाम है थाना -कुलपहाड़ पुलिस-? किसी की टोपी किसी के सिर रखने का नाम है कुलपहाड़ की खाकी बर्दी -? जी हां, आखिर ऐसा क्यों-? खेल खेल रही है, कुलपहाड़ की खाकी पुलिस -?  संबैधानिक अधिकारो की धज्जियां उड़ाने बाली पुलिस का यदि कोई टारगेट का नाम है तो- पत्रकार और पत्रकारिता-? कानून को जीवित रखने के लिए पुलिस तंत्र  व्यवस्था लागू की गई, और पुलिस को ऐसे अधिकार दिए गए जिसमें हर कानून के रखवाले का सम्मान हो और जो कानून तोड़ने की जहमत करें तो उन्हें कानून की जंजीरों से जकड़ कर सजा दिलाई जाये नकि दी जाये।। लेकिन महोबा जिले का एक थाना ऐसा है जहां यह लागू नहीं होता और उस थाने का नाम है कुलपहाड़ थाना-? अब आप ही देखिए जनपद महोबा के थाना कुलपहाड़ पुलिस को जिनके अधिकारी भी वहां के हर नाजायज काम का समर्थन करते है। यही है कि वहां की पुलिस कानून को खिलौना बनाकर खेल रही है और कानून की धज्जियां उड़ाने बाली पुलिस को रोकने की चेष्टा करने बाले‌ लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पत्रकार और पत्रकारिता को पैरों तले रौंदा जा रहा है निष्पक्ष निर्भीक लेखनी को जमींदोज करने का नाम है बन चुकी है कुलपहाड़ पुलिस-?। जिसका जीता जागता उदाहरण है, वहां के पत्रकार सुरेंद्र कुमार निराला और भूपेंद्र कुमार के खिलाफ षंडयंत्र के तहत जो हुआ वो किसी से छिपा नहीं है। वहां की  पुलिस ने अपना अपराध डकारने का किया नंगा खेल-? वहीं की पुलिस ने खुद के अपराध को छिपाने का नायाव दमनकारी नीतियों तरीका निकाला और शराब माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई की जगह एक पत्रकार की जिंदगी पर ही घिनैना खुला खेल डाला। यहां की खाकी का खेल ही कुछ ऐसा है, जहां अपना खेल बनाने के लिए एक निर्भीक निष्पक्ष पत्रकार की कलम को कानून का रूख बदल वली चढ़ा दी जाती है। कलम को मोडने का काम यहां की वेहिसाब खाकी निरंतर अपनी कारगुजारियां से करती आ रही है। यहां की पुलिस की धुंधली होती जा रही तस्वीर जन मानस के पटल पर आम हो गयी है। यहां आज पुलिस पत्रकार को दुश्मन समझने लगी है कारण पुलिस को हर पल समाज के सामने अपने कुरूप चेहरे को उजागर होने का डर बना रहता है और यही वजह है, कि पुलिस अब इन पत्रकारो को सबसे बड़ा कांटा समझने लगी है।
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 *रिपोर्ट ✍नीरज जैन विशेष सहयोगी साकेत सक्सेना अमित सैनी शेख समीम जीत नारायण लखनऊ पत्रकार सहायता समूह द्वारा प्रेषित

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