शादी का घोड़ा


       किसी हास्य कवि के काव्य संकलन से यह घटना ली गई है:- एक तांगे में एक बार एक ऐसा घोड़ा जोत दिया गया जो शादी के कार्यक्रमों में ही बुक होता था। यानी दूल्हे के लिए लोग इस घोड़े को बुक करते थे। तांगे वाले ने सोचा कि यह सहालग/लगन का समय तो है नहीं और घोड़ा खाली है क्यों न इसे तांगे से जोतकर रोजी-रोटी की व्यवस्था कर ली जाए! इसलिए उसने घोड़े को तांगे से नाध दिया। वह तांगे पर कुछ सवारियां बैठाकर  थोड़ी दूर आगे ही बढ़ा था कि घोड़ा रुक गया। तांगेवाला उतरा और घोड़े के आगे जाकर नाचने लगा, वापस आकर फिर तांगे पर बैठ गया और घोड़ा चल दिया, लेकिन थोड़ी दूर जाने के बाद वह घोड़ा रूक गया । तांगेवाला फिर उतरा और घोड़े के आगे जाकर नाचने लगा,वापस आकर फिर तांगे पर बैठ गया और घोड़ा तांगा लेकर चल दिया । यह घटना एक बार दो बार और यहाँ तक कि हर 5 मिनट के बाद घटने लगी, बैठी सवारियों ने तांगे वाले से कहा कि यह क्या तमाशा है तुम्हारा घोड़ा चलता है और हर 5 मिनट के बाद रुक जाता है और तुम उसके आगे जाकर नाचते लगते हो वह फिर चल देता है? तांगे वाले ने बड़ी विनम्रता से जवाब दिया कि दरअसल यह शादी का घोड़ा है, इसे हर 5 मिनट बाद डांस देखने की आदत है ,आज गलती से यह तांगे में जुत गया है  आदतानुसार जब तक यह हर 5 मिनट बाद डांस न देख ले आगे बढ़ता ही नहीं।
          एक बार सर्कस के एक कलाकार ने 1 दिन की छुट्टी ले ली। वह सर्कस में कीलों पर सोने का करतब दिखाता था । छुट्टी लेकर वह एक दिन आराम करना चाहता था । उसे सर्कस के मालिक ने एक दिन छुट्टी दे भी दी । शो खत्म होने के बाद सर्कस का मालिक घूमते-फिरते उस कलाकार का हाल-चाल लेने उसके घर पहुंचा, अपने कारकून को कीलों पर सोता देख उसने विस्मयकारी भाव से पूछा कि आज तुम्हारी छुट्टी है फिर भी तुम कीलों पर सो रहे हो,क्यों? कलाकार ने बड़ा सपाट जवाब दिया कि कीलों पर सोने की मुझे आदत हो गई है इसके बगैर मुझे कहीं नींद आती ही नही ।

     यह तो स्वभाव-स्वभाव की बात मनुष्यों,पशुओं व पक्षियों में हर जगह पाया जाता है। कुछ मनुष्यों में प्रतिदिन टीवी चैनलों पर दिखने की लत लग जाती है, तो वह छूटती ही नहीं। एक या दो दिन बात हो तब वह किसी तरह से समझौता कर लेता है,परन्तु किन्ही कारणों से यदि कुछ दिन के लिए छुट्टी हो जाए, उसे टीवी चैनलों पर आने का मौका न मिले, तब वह व्यग्र हो जाता है । एक-दो दिन तो चल जाता है यदि सप्ताह 2 सप्ताह या 3 सप्ताह की छुट्टी हो जाए तब उसका धैर्य जवाब देने लगता है। यही अधीरता उसे किसी न किसी की नकल करके अपने प्रतिबिंब को टीवी पर प्रदर्शित करने को प्रेरित करती है। यह स्वभाविक प्रक्रिया है इसमें गलत ही क्या है? खासतौर से तब तक तो बिल्कुल नही जब तक कि तांगे पर बैठी सवारियों की भांति घोड़े के सामने नाचते तांगे वाले से लोग अपना कठोर विरोध न दर्ज कराएं!
 नोटः यह लाकडाउन में घर के अंदर क़ैद लोगों के मनोरंजन को ध्यान में रखकर लिखा गया है । यदि यह कहानी किसी के जीवन से मेल खाती है तब यह सिर्फ एक संयोग ही होगा । किसी को आहत करने की मेरी बिल्कुल भी मंशा नही है ।
गौतम राणे सागर।

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