यकीन था! किसी भी लोकतंत्र के क्षितिज पर पूरी बहुमत से सरकार को स्थापित कर दिया जाए,"तब वह अपने अंदर की रचनात्मकता को देश के कैनवास पर उकेरता अवश्य है। जब सरकार इन मापदंडों खरा उतरती है,"तब देश के नागरिक निर्णय के निश्चिंत भाव अपने चेहरे पर महसूस करते हैं।सरकार के तिरोहित से प्रसन्नता प्रदर्शित करना तो दूर जिस मनस्ताप का अनुभव हुआ है उतना तिक्त पहले कभी महसूस नहीं हुआ। सामाजिक वचनबद्धता से उलट बाजारीकरण की ओर उन्मुख सरकार के दृष्टिकोण ने हलाक होते इंसान और इंसानियत के वीभत्सतम् रूप की पेशगी प्रस्तुत की है । इस कृत्य से नागरिकों के विश्वास को सबसे गहरा धक्का लगा है।
हम गांव के लोग शहर भिरमण के लिए नहीं अपितु देश की प्रगति में सहयोग के लिए निकलते हैं। इन्हें मिट्टी से सोंधी महक और पसीने से ईमानदार सफलता की खुशबू आती है। होंगे कुछ लोग जिन्हें पसीने विचलित करते होंगे। आज जिन कंपनियों /कल-कारखानों को नवरत्न के रूप में छाती से लगा कर सहलाने की कोशिश की जा रही है,इसके नींव में झांकने की कोशिश करें; हमारा लहू ही इनके ऐश्वर्य की कहानी लिखता है। कुछ लोग बड़े गर्व से बयान देते हैं कि सरहदों पर तैनात सैनिकों से अधिक जोखिम व्यवसायी उठाते हैं:- यह बयान उस व्यक्ति की मानसिकता प्रतिबिंबित करता है, "जिनके शरीर में बहने वाला रक्त व्यवसायिक चरित्र से ओतप्रोत हो! इनसे देश के प्रगति,सद्भाव, भ्रातृत्व-भाव,परस्पर सहयोग व एकीकरण की अपेक्षा ठीक उसी तरह होगी जैसे काली रात में सुई खोजने का उपक्रम। इन्हें सरहदों पर तैनात सैनिक और व्यापारी ही क्यों नजर आते हैं,किसान और मजदूर क्यों नहीं? क्या सरहदों पर तैनात सैनिकों की शहादतें देशभक्ति के लबादे में वोट और गद्दार उद्योगपति इन्हें नोट देते हैं? हमें सैनिकों और उद्योगपतियों से कोई गुरेज नही,परन्तु सरकार की मनोवृत्ति का समर्थन भी संभव नही है।
जिस देश में अयोग्य शासक हो, "वहां के सभी संस्थान अयोग्यता की परिधि में आचरण करते हैं। व्यक्तिगत तौर पर भले ही कुछ संस्थानों में अद्वितीय प्रतिभा संपन्न लोग ही संस्थानों का संचालन क्यों न कर रहे हो! शासक को प्रसन्न रखने की उनकी ख्वाहिशें; अयोग्य निर्णय करने पर मजबूर करती अवश्य है। न्यायायिक चरित्र की अपेक्षा ख्वाज़ासरः से माता-पिता का सुख पाने का ख्वाब है, काबिले ए'तिबार नही।अयोग्य निर्णय अनुचरों को खुश नहीं रख सकता,"जिस देश के अनुचर अप्रसन्न हो, वह देश कभी खुशहाल नहीं हो सकता।" जब शासक किसी महामारी से लड़ने की बजाय देश को उससे भयभीत करने भित्ति में लग जाए,"तब समझ जाना चाहिए कि उसके शरीर में बहने वाला खून व्यवसाय परस्त हो गया है।" संभव है कि शासक स्वतः व्यवसाय परक न हो; परन्तु व्यवसायियों की अधीनता से इंकार कर पाना संभव नहीं है।
बात 1998 की है देश की राजधानी दिल्ली के मुखिया साहब सिंह वर्मा के कार्यकाल में एक अफवाह फैली:-सरसों का तेल खाने से ड्रॉप्सी (जलोदर रोग) हो जाता है। इसमें Argemone Mexicana ( कहीं इसे भड़भड़वा और कहीं सत्यानाशी कहतें हैं) का तेल मिला है। इस व्याधि से 60 लोगों की मृत्यु और 3000 लोग बीमार हो गए थे। उस समय खुले में बिकने वाला रुपया 30/ किलो सरसों का तेल न्यायालय के आदेश पर बंद कर दिया गया, लेकिन पाम आयल जिसका मूल्य ₹58/लीटर था उसे प्रतिबंध से दूर रखा गया। सरसों के तेल की उपस्थिति पैक्ड तेलों के पाँव जमने ही नही देते थे । बाजारों में उपलब्ध सभी पैक्ड तेल, रिफाइंड आयल की उपस्थिति ने भारत के नागरिकों की Immune( बीमारियों से लड़ने)की क्षमता को प्रभावित कर रखा है। यह पैक्ड खाद्य तेल में Hexagon & Liquid paraffin की काफी मात्रा पाई जाती है । यह वही काल है जबसे देश में हृदय रक्त-वाहिकाओं व श्वांस संबंधित बीमारियों ने नागरिकों के शरीर का दरवाजा खटखटाना शुरू कर दिया। इन व्याधियों से होने वाली मौतों में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि हुई है। आप सभी एक बार ISI मार्का आयल तेल की बोतल व पाउच का कंपोजीशन देख ले; स्वतः समझ जाएंगे कि यदि ISI मार्का तेल में मिलावट की गई है," तब वह सरकार की मंशा अनुसार ही है। ISI मार्का का गेम शायद बड़े व्यवसायियोंको स्थापित करने और छोटे मझोले उद्योगों को बर्बाद करने का तिकड़म हो । सच को सच और झूठ को झूठ साबित करना गरीबों के असंभव है। उनके लिए कत्तई नही जो आए तो थे,योगा से होगा का दावा करने और पांव जमते ही बाजार में Liquid paraffin को शुद्ध घानी के सरसों का तेल का दावा कर बेचने लगे। *सैयां भये कोतवाल फिर डर काहे का*
सोचनीय पहलू है जब 60 लोगों की मौत और 3000 बीमारियों के आवरण में शुद्ध सरसों का तेल बाजार से गायब हो सकता है,"तब लाखो बीमारियों और हजारों मौतों की आड़ में कितना घिनौना गेम खेला जा सकता है?" दिमाग को सक्रिय करने और काम पर लगाने से अनुमान लगाया जा सकता है। शर्त के साथ एक बात कही जा सकती है, यदि कोरोना से प्रभावित दुनिया के सभी देश यह घोषणा कर दें कि अब से कोई भी निजी अस्पताल अस्तित्व में नहीं रहेगा,"सभी अस्पतालों को राष्ट्रीयकरण किया जाएगा, यकीन मानिए कोरोना दम तोड़ने लग जाएगा । घमंड में मदमस्त COVID19 के नाम से महिमामंडित यह रोग अरब सागर की सागर की अथाह गहराइयों में पनाह लेने पर मजबूर होगा। यदि हमारी सरकार यह निर्णय ले ले,"तब हमें गुमान रहेगा कि हमारी कल्पनाओं की क्षितिज पर विराजमान सरकार में निर्णय लेने का साहस है;मेरे दोस्त।
गौतम राणे सागर ।
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