मातृ-शक्ति की आराधना का का अवसर है नवरात्र। नवरात्र में नौ दिन तक माँ (शक्ति) के नौ रूपों की पूजा, अर्चना, आराधना की जाती है। माँ यानी नारी का पूर्ण रूप। ऐसी मान्यता है कि नारी की पूर्णता माँ बनने में है। नवरात्र में माँ की चर्चा माँ का बखान तो होता है किन्तु जिसको जन्म देने के साथ ही नारी को माँ जैसा गौरवशाली अलंकरण यानी सम्बोधन प्राप्त होता है उन बच्चों को नजरअंदाज किया जाता है। जिस प्रकार पति के बिना पत्नी और पत्नी के बिना पति अस्तित्व विहीन है उसीप्रकार बच्चों के बिना माँ और माँ के बिना बच्चों का अस्त्तित्व अकल्पनीय है। इसलिए माँ के दरबार में माँ के त्योहार में बच्चों का विशेष स्थान होना चाहिए।
कोई भी त्योहार आता है तो घर के सभी की अपनी अलग-अलग भूमिका होती है और अलग-अलग अपेक्षाएं होती हैं बच्चों की भी। बच्चों के लिए नवरात्र दो कारणों से विशेष त्योहार होता है क्योंकि ये माँ का त्योहार होता है और नौ, दस दिनों तक चलने वाला सबसे लम्बा त्योहार होता है। नौ दिन तक उत्साह उमंग और भक्ति में डूबे हुए इस त्योहार की प्रतीक्षा सभी को रहती है बच्चों को विशेषतः।
नवरात्र में माँ और भावी माँ का विशेष महत्व है। कुमारी कन्याओं को भोजन कराने की परम्परा इसी का सूचक है। नवरात्र में बच्चों की आधी आबादी यानी बच्चियों को भोजन कराकर, उपहार देकर तरजीह दी जाती है तो वहीं शेष आधी संख्या यानी ब्लाकों को भी किसी अन्य तरीके से सुखद अवसर उपलब्ध कराए जाने पर गम्भीर विचार करना ही सर्वोचित रहेगा। बच्चे तो बच्चे हैं इनमें भी लिंग भेद करके आयोजन करना बहुत उचित नहीं। परम्पराओं को समय-समय पर संशोधित करते रहने वाला समाज ही उन्नति प्रगति पथ पर बढ़ सकेगा।
सामान्यतया हर बच्चे को हँसने, खेलने, पढ़ने, तीज त्योहारों में शामिल होने तथा लैंगिक भेद भाव से बचने इत्यादि के संवैधानिक बाल-अधिकार हैं किन्तु बच्चों की बड़ी आबादी है जिनको गरीबी के शिवा कुछ भी नसीब नहीं। गरीबी के रहते तीज त्योहार आते हैं निकल जाते हैं और इन बच्चों की दिनचर्या में कोई फर्क नहीं आता है इन्हें पता तक नहीं होता है कि कोई त्योहार भी आया और निकल गया। त्योहारों में उपजने वाले उत्साह,उमंग खुशी, आदि से वंचित इन बच्चों के संवैधानिक व सामाजिक बाल अधिकारों पर बात करना ही व्यर्थ है सिर्फ अफसोस। ऐसे बच्चों को नवरात्र जैसे अनेक तीज त्योहारों का हिस्सा बनाकर उनके जीवन में खुशियों के रंग भरने से या यूँ कहें कि अपनी खुशियों को इनके साथ बाँटने से एक अलग सुख मिल सकता है जिसकी तलाश जाने अनजाने सम्पन्न समर्थ लोगों को भी है और इन विपन्न और असमर्थ लोगों को भी है। दोनों के जीवन में यही वह कामन विन्दु है जिससे एक प्रबल सम्भावना उभरती है कि देश के भविष्य को जो विपन्न हैं, असमर्थ हैं को भी कुछ सुखद अवसर मिल सकते हैं। आवश्यकता है समुचित समाज के ध्यानाकर्षण की और जागरूक तथा शिक्षित करने की।
बच्चों में पनपी आदतें अथवा मस्तिष्क में जन्मी ग्रन्थियों का कारण माता पिता, परिवार और समाज द्वारा बच्चों के पालन-पोषण हेतु अपनाया गया दृष्टिकोण होता है। यहाँ ध्यान रखने की विशेष जरूरत है कि बच्चे के जीवन का ताना-बाना निर्मित करने हेतु सिर्फ माता पिता ही नहीं बल्कि परिवारी-जन, शिक्षा तथा समाज जिम्मेदार हैं। बहुत बड़ी आबादी आज भी विकास की मुख्यधारा से अलग-थलग रहकर गरीबी के अभिशाप को झेलते हुए अन्य अनेक कारणों से "बीमार मानसिक स्थितियों" के शिकार बन जाते हैं और समाज को जाने अनजाने अपने प्रतिक्रियात्मक, सकारात्मक नकारात्मक व्यवहार से पुनः पुनः प्रभावित करते रहते हैं। इसलिए सम्पूर्ण समाज की जिम्मेदारी बनती है कि खुद से एक पहल करते हुए हर बच्चे को उनके बाल सुलभ सामाजिक, विधिक अधिकारों के पोषण हेतु कुछ प्रयास किये जायें। "पे बैक टू सोसायटी" जैसा नया प्रचलन सामाजिक चिंतकों द्वारा किया गया इसी दिशा का बेहतर प्रयास है। त्योहारों में दान-दक्षिणा व जरूरतमन्दों को उपहार देने के प्रचलन, नए समाज निर्माण की नई दास्तान लिखेंगे। जन्मदिवस, वैवाहिक स्मृति दिवस, अन्य सुखद अवसरों पर बेसहारा आश्रम, वृद्धाश्रम, दिव्यांग स्कूल, गरीब बस्तियों में सपरिवार जाकर उपहार, भोजन वितरण एक स्वस्थ प्रचलन की स्थापना की कोशिश प्रशंसनीय है।
अन्य त्योहारों की तरह नवरात्र एक अवसर है जब देश के भविष्य को उत्साह, उमंग, सुख, शिक्षा के कुछ पल प्रदान किये जाने चाहिये। विपन्न बच्चों को त्योहार में सम्मान भाव से शामिल कराकर, भोजन कराकर, उपहार देकर एक उत्साह उमंग सुख-सम्मान का वातावरण बनाया जा सकता है। किसी बच्चे को प्यार करने का एक पहलू ये भी है कि माँ के हृदय में जगह बना लेने का एक अवसर प्राप्त करना। नवरात्र माँ की आराधना, अर्चना का त्योहार है। ऐसे में समाज के जरूरत मन्द बच्चों को प्यार दुलार देकर माँ के हृदय में स्थान पाया जा सकता है। साथ ही साथ बच्चों के भावी स्वस्थ जीवन के लिए ताना-बाना बुनने में जरूरी तत्व उत्साह, उमंग, सुख, शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराए जा सकते हैं। परिणामतः समाज के नव संस्करण की नींव रखी जा सकेगी। तो आइए एक नए समाज की रचना में अपनी भूमिका तलाशें और कुछ कर गुजरें। जरूरतमंद बच्चों को प्यार दुलार उपहार का मतलब जगतजननी के हृदय में स्थान।
(नवरात्र में बच्चों की उपस्थिति, अपेक्षाएं, बाल-अधिकार और महत्व की पड़ताल करते इस आलेख में बच्चों के लिए सामाजिक न्याय की दृष्टि उभारने की कोशिश है)
प्रदीप सारंग
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