यह आश्रम है। यहां दाढ़ी-मूंछ और बाल बढ़ाने से चेहरे की धूर्तता ढक जाती है। चेहरे पर तैरती साज़िश आवरण में भयानक के बरक्स सौम्य दिखती है। अद्यतन में अपनी ऐय्याशी के लिए समाज सुधार के नाम पर अपने तीमारदारों से आकर्षक लड़कियों संग फेरे करा लड़के का बंध्याकरण करना शौक हो गया है। अल्हड़ ज़वानी में मदमस्त तरूणी जिसकी बल खाती कमर, इठलाती कदमों की चाल, कांधों पर बादल जैसे लटकती ज़ुल्फे,आंखें मय के प्याले सी भरी हुई, झील में हंसते हुए कमल सा चेहरा,होंठो पर खेलती हुई तब्बसुम की बिजलियां,सुराही सी गर्दन,उन्नत ऊरोज देख कोई भी व्यभिचारी नेत्र डूब मरने को लालायित होगा। उनका हर एक कहकशाँ इस तरूणी के दहलीज पर सजदे को बेताब होगा। यदि यह अल्हड़ जवानी EVM की हो,"तब बाबा बर्फानी क्यों किसी चुनाव आयुक्त में पुरुषत्व जीवित रहने देंगे!'
सत्तादायिनी,विपक्ष भक्षिणी माते EVM कैसे एक ख्वाज़:सरा EC के पल्लू से बंध कर रह सकती हैं। दोष उनके पति EC में है जो उनको वैवाहिक सु:ख नही दे पा रहा है। दे भी कैसे जब बाबा बर्फानी के आश्रम में उसका बंध्याकरण हो चुका है। जब हमारी विराट सांस्कृतिक विरासत में अमोघ अस्त्र के रूप नियोग प्रथा मौजूद है तब तरूणी EVM को माता बनने से कौन रोक सकता है। माता निकल पड़ती हैं अपनी वैवाहिक प्यास बुझाने बाबा बर्फानी के आश्रम का प्रासाद किसी न किसी भक्त के माध्यम से पहुंच ही जाता है। EVM से जन्मा पुत्र (शासन) तो उन्हीं का पुत्र कहलाएगा जिनका प्रासाद होगा।
विपक्षियों के लिए मशवरा;
अवीर तुम बढ़े चलो,अधीर तुम बढ़े चलो।
सामने ख्वाजःसरा EC है, गीदड़ की रूआंस है।
*गौतम राणे सागर*,
राष्ट्रीय संयोजक,
संविधान संरक्षण मंच ।
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