उ.प्र. पंचायत चुनाव में विपक्ष को न उम्मीदवार न ही समर्थक मिल रहे है लोकतंत्र भक्षक सम्राट ने दिया बयान।बाबा साहब डाॅ अम्बेडकर की धरोहर व कांशीराम साहब की विरासत की उत्तराधिकारी मल्लिका ने अपने रियासत की हिफाजत में शैतान सेनापति के समक्ष पहले से ही समर्पण कर रखा है। समर्पण भाव से तीस मार खां की भाषा वाणी और बाॅडी लैंग्वेज में इतनी खाई खीच देता है कि मल्लिका औधे मुँह धड़ाम से गिर जाती हैं। भक्तों में छीछालेदर न हो जाय इस मंतव्य से एक बयान देकर सकरी गली से खिसक लेना चाहती हैं कि पंचायत के चुनाव प्रशासन के दुरूपयोग से संपादित होते है फलस्वरूप बसपा (बहन जी सम्पत्ति परियोजना) इन चुनावों का बहिष्कार करती है। भक्तों को जब एक बार भक्ति की लत लग जाए तब वह अपनी देवी के बारे में कुछ भी सुनने और उनके कृत्यों की समालोचक तर्क करने की क्षमता खो बैठते हैं।
खैर हमारा विषय उनका चरित्र चित्रण करना कतई नही हैं जिनकी मनःस्थिति स्वमेव हिताय स्वमेव सुखाय की है, वह अपनी दुनिया में मस्त रहें। हमें चिन्ता है लोकतंत्र की।उप्र पंचायत के चुनाव द्योतक हैं प्रशासन की शरणागत मुद्रा के,उनके संविधान प्रतिकूल आचरण के। लाभकारी पद के लिए अनैतिक होने के,काफी हद तक जात्याभिमान की दल-दल मानसिकता के प्रदर्शन की। यदि प्रशासन शासन के सनक को कार्यान्वित करने में इतना सक्रिय हो जाएगा तब लोकतंत्र की रक्षा कौन करेगा? सवाल उठता है क्या कलेक्टर और कप्तान लोगों को नामांकन से रोकने के लिए प्रयासरत रहेंगे? जिला/क्षेत्र पंचायत सदस्यों पर फर्जी मुकदमें दर्ज करने लगेंगे ताकि उन्हें सत्ता के पक्ष में मत करने के लिए मजबूर किया जा सके। थानेदार एक अहम पद है। देश में सिर्फ थानेदार को ही मुकदमा पंजीकृत करने का इख्तियार है विंग चाहे जो हो। यदि थानेदार नैतिक हुआ तब अपराधियों की शामत अन्यथा पीड़ित की खाल उधड़ेगी। अब समय आ गया है कि नैतिक परीक्षण किये बिना किसी को इतने अधिकार देने का जोखिम उठाने से बचना चाहिए।
लोकतंत्र भक्षक सम्राट का बयान कि पंचायत चुनावों में भाजपा की ऐतिहासिक जीत सरकार की जन-कल्याणकारी नीतियों की जीत है। क्या सरकार चीर-हरण,पत्रकार की पिटाई व पुलिस अधीक्षक पर आक्रमण को जन कल्याण कारी नीति मानती है? जिला/क्षेत्र पंचायत सदस्यों को भयादोहन से सत्ता पक्ष के समर्थित अध्यक्ष प्रत्याशी को मत दिलाने की प्रक्रिया को कानूनन लोकतंत्र की हत्या माना गया है; क्या सरकार ने इस मनोवृत्ति को कानूनी अमलीजामा पहना इस कृत्य को लोक-कल्याणकारी घोषित कर दिया है? विपक्ष को पर्चा न खरीदने देना, किसी तरह पर्चा मिल भी गया और किसी ने अध्यक्ष पद के लिए नामांकन करने का मन बना लिया तब उसके महिला प्रस्तावकों के कपड़े फाड़ देना, सदस्यों को भयभीत करने के लिए प्रशासनिक अमलों का बड़े पैमाने पर दुरूपयोग करना उन्हें लोकतंत्र की हत्या के लिए उकसाने की प्रवृत्ति को यदि सरकार जन-कल्याणकारी नीति मानती है," कोई शक और सुबहा अवशेष नही रहता कि यह मान लिया जाए कि यह नीति शैतानों की है जिसे शैतानी लोक में बुना गया है। अब इन्होंने इंसान रूप धारण कर लिया है। शायद लोकतंत्र का गला घोटने के लिए ही राक्षसों ने यह छद्म स्वरूप अपनाया है।
जिन्हें यह गरूर है कि लोग उनकी नीतियों को जन-कल्याण कारी मानते हैं, समर्थन करते हैं, साहस है तब सारी चुनावी प्रक्रिया विडियोग्राफी से के जरिए करायें ताकि देश के नागरिकों को भी विश्वास हो जाय कि समस्त प्रक्रिया पारदर्शी है, लोकतांत्रिक भी। यदि ऐसा नही होता तब देश के समस्त नागरिकों को इनकी पहचान करनी होगी। कहीं ऐसा तो नही कि दैत्यों ने इंसान रूप धारण कर हमें धोखा दे रहे हो। मान्यता है कि दैत्यों को आईने के समक्ष प्रस्तुत करने से वह अपने असली चेहरे के साथ ही दिखते हैं। पारखी नजर इन्हें किसी भी चोले में पहचान लेती है परन्तु साधारण नेत्र अक्सर धोखा खा जाती है। इनकी वाणी और चेहरे का हाव-भाव कभी आपस में मेल नही खाते। दानव हमेशा कर्कश वाणी निकालते हैं यही इनकी खास पहचान होती है। साथ ही साथ यह अपने तांडव का दोष दूसरे के सिर मढ़ते हैं। सावधान!
*गौतम राणे सागर*
राष्ट्रीय संयोजक,
संविधान संरक्षण मंच।
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