पहले पिटाई फिर मिठाई


 पहले पिटाई फिर मिठाई ,गलती पत्रकार कृष्णा तिवारी की नहीं है, IAS अफ़सर तो मुखौटा भर था उसके पीछे जो सरकारी तंत्र था, पत्रकार में थप्पड़ उस तंत्र ने मारा. पत्रकार की लड़ाई भी उसी तंत्र से हुई, और वो इस बात से वाक़िफ़ भी था. अगर उस तंत्र में ज़रा भी सार्वजनिक लिहाज़ होती तो शाम तक पत्रकार की माफ़ी वाली तस्वीरों का इंतज़ार न करता. कल दोपहर से हो सोशल मीडिया पर पत्रकार की पिटाई की तस्वीरें आने लग गईं थीं, शाम होते होते सोशल मीडिया के एक आदमी को इस बात की खबर हो गई कि पत्रकार को अपमानित करते हुए पीटा गया है. अगर वो सरकारी तंत्र जिसके शीर्ष पर मुख्यमंत्री बैठे हैं


वो अधिकारी की लठैती के पीछे न होता तो उसे अधिकारी की गलती ज़रूर नज़र आती और कल शाम ही मुख्यमंत्री एक ट्वीट कर कहते कि “लोकतंत्र में इस तरह की गुंडागर्दी नहीं चलेगी, अमुक अधिकारी को सस्पेंड कर दिया गया है और विभागीय जाँच बिठा दी गई है जो आगे का एक्शन लेगी” लेकिन जिस तंत्र को ये काम करना था वो तो खुद अधिकारी की बाजुओं में घुसकर पत्रकार को जानवरों की तरह थपेड़ रहा था. इसलिए कल दोपहर की घटना के लिए आज शाम “माफ़ी की विहिंगम तस्वीरों” का इंतज़ार किया गया. लेकिन क्या ये केवल एक घटना थी? जिसे मिठाई के डिब्बे से निपटा दिया जाना था? प्रदेश के मुखिया की क्या ज़िम्मेदारी थी इसमें?

क्या उनकी जवाबदेहिता नहीं थी कि उनके प्रदेश में एक अधिकारी ने एक निर्दोष पत्रकार को लतेड़ दिया और फिर खुद ही मिठाई का डिब्बा खिलाकर मामला टाटा-बाय बाय-बाय कर दिया. मुख्यमंत्री धृतराष्ट्र की भूमिका में क्यों हैं? क्या उनके हस्तक्षेप की यहाँ ज़रूरत नहीं थी. अधिकारी जब पत्रकार को थपेड़कर मामला सुलटा दे रहा है तो जनता को कैसे रदेड़ेगा? पत्रकार एक समाज का लिटमस टेस्ट होता है, पत्रकार चुप तो मतलब समाज के होंठ भी सिल दिए गए हैं, पत्रकार को पीटने की अनुमति है तो मतलब जनता को खदेड़ने की भी अनुमति अधिकारी को है.

ये देशव्यापी मामला था, इसे मिठाइयों से हल करने दिया गया इसका मतलब है कि यूपी में तंत्र और अधिकारी के आगे आज से पत्रकारों और जनता की यही हैसियत तय कर दी गई है. यहाँ गलती पत्रकार की नहीं है, पत्रकार के लिए ये एक निजी मसला ही थी, जिसे उसने अपने हिसाब से अपनी हैसियत से समाप्त कर लिया. लेकिन ये मसला अधिकारियों और जनता के बीच के दायरे और क़ायदे का टेस्ट था, जहां मुख्यमंत्री को आगे आकर एक्शन लेना था वहाँ मिठाइयों का आदान प्रदान करा दिया गया. मुख्यमंत्री और उनके तंत्र ने संदेश दे दिया है- जनता उनके अंगूठे पर है…

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