अछूत जातियों को तीन वर्गों में विभाजित किया गया था अछूत, दुर्गम, अदृश्य । अछूत; जिनको छूने से अपवित्र होने का भय गढ़ा गया, दुर्गम; जिससे मिलने जुलने पर पाबंदी का षडयंत्र रचा गया, अदृश्य: जिसे ऐसी जगह रहने पर मजबूर किया गया जहां वह किसी को दिखाई न पड़े । देश की आबादी के पांचवे भाग का यह हश्र दुश्मनी की पराकाष्ठा की परिणति नही तो और क्या है? जो दुर्भिक्षिता की सीमा तोड़कर जानवर से बदतर जिंदगी को मजबूर किये गये हो, वह स्वधर्मी किस आधार पर हो सकते हैं? यदि इन्हें सिर्फ अछूत ही कहा जाता तब भी कुछ समय पश्चात इन में एकता की भूख जग जाती। व्यवहारिक एकता पनपने लगती। इनमें एकता की भूख न जगे इस रणनीति के तहत इन्हें विभिन्न नाम दिए गए, जैसे: अछूत,परिया,पंचमास, अतिशूद्र,बहिष्कृत, अवर्ण,अन्त्यज, नमोशूद्रा इत्यादि। इनको सामाजिक कलंक घोषित किया गया। इनके स्पर्श ,परछाई यहां तक कि इन की आवाज को भी प्रदूषित माना गया । गाय,भैंस ,घोड़ा, हाथी पालना इनके लिए प्रतिबंधित था ताकि यह दूध दही और घी का सेवन न कर सके। यह बकरी, सूअर, मुर्गी पाल सकते थे । इन्हें लोहे, लकड़ी व घास फूस से बने आभूषण पहनने की छूट थी परंतु स्वर्ण, चांदी, रजत व अन्य मूल्यवान धातु देखने का भी अधिकार नहीं था ।
इनके पहनने के लिए घृणित तौर के कपड़े और खाने के भोजन की छूट थी। इनके रहने के लिए गंदी,मैली-कुचैली बदबूदार झोपड़ी गांव से दक्षिण बसाई जाती थी ताकि इन्हें शुद्ध हवा ना मिल सके । पुरुषों के लिए निर्धारित वस्त्र पगड़ी, हाथ में लाठी, कंधों पर एक गंदी कथरी, घुटनों के ऊपर की धोती,महिलाओं के लिए अंगिया और गंदी सी साड़ी जो बड़ी मुश्किल से घुटनों तक पहुंचती थी,पहनने की छूट थी। अछूत सार्वजनिक कुएं का प्रयोग नहीं कर सकते थे । पीने के लिए कीचड़ से सना पानी वह भी सुदूर कहीं मिल जाए तभी पीने की इजाजत थी। बच्चे स्कूल में प्रवेश नहीं कर सकते थे। यह विपदा उन पर तब थी जब वह उसी ईश्वर की आराधना करते थे,वही त्यौहार मनाते थे, अपने लिए बंद उसी मंदिर में प्रवेश करने का दुस्साहस करते थे, जिसमें हिंदू करता है। इस हिसाब से वह हिंदू के सह-धर्मी और सहयोगी हुए । एक सह-धर्मी का दूसरे सह-धर्मी के साथ इतना नीचता पूर्ण व्यवहार कैसे संभव है?
जबकि यही हिंदू चीटियों को गुड़ डालते है । कुत्ते पालते है व दूसरे धर्म के लोगों को अपने घर में बुलाकर आवभगत करते हैं। परंतु अछूतों को पानी का एक बूंद भी देना पसंद नही करते । यह सह-धर्मी कैसे हो सकते हैं? शांति उपदेशक कैसे हो सकते हैं ?दयावान कैसे हो सकते हैं? परोपकारी कैसे हो सकते हैं ?न्यायाधीश की मर्यादा का अनुपालन कैसे कर सकते हैं? निर्णायक पदों पर कैसे पदास्थापित हो सकते हैं ?हमें हिंदू कहने का दुस्साहस कैसे कर सकते हैं? जिनके मन मे हमारे विरूद्ध इतनी कटुता है वे हमारे धर्म बन्धु कैसे हो सकते हैं? जब हम हिंदू हैं, सह-धर्मी है,सहयोगी हैं,तब सहभागी क्यों नहीं?
अछूतों की दयनीय दशा यहीं नही समाप्त होती। यह सदियों से अशिक्षित और तिरस्कृत रखे गए थे। लोकसेवा, सेना और पुलिस भर्ती में साजिश का बड़ा ताला जड़ा था ताकि इन्हें भर्ती होने से वंचित रखा जा सके। आजीविका की तलाश और भूखे पेट ने इन्हें निकृष्ट व्यवसाय अपनाने पर मजबूर किया जैसे: सफाई, लोगों की टट्टी साफ करना,मरे जानवर उठाना, उनकी चमड़ी निकालना,घास काटना, बांस की टोकरी व अन्य चीजें बनाना । इनसे ज्यादा भाग्यशाली वह होते थे जो अधिया यानी किराए पर खेती या मजदूरी करते थे। वह अपनी सेवा के बदले आर्यों का जूठन मजदूरी मे पाते थे। यह मरे जानवरों का मांस खाने पर मजबूर थे । यह सामाजिक,धार्मिक व नागरिक अधिकारों से पूर्णत: वंचित किए गए थे। इनके पास जिंदगी बेहतर करने का कोई जरिया नहीं था। वह उसी पुरातन ढर्रे पर जीवन घसीटने को अभिशप्त थे,जिस पर उनके पुर्वज रहने को मजबूर थे। यह कर्ज मे जन्म लेते और कर्ज में ही मर जाते थे । वजह साफ थी आर्यों के जूठन की कीमत इतनी ऊंची थी कि यह उसका भुगतान ताउम्र नहीं कर पाते थे ।
उपर्युक्त अभेद्य दासता की पुरातन बेड़िया को जो कि 2500 वर्षों से अनवरत रूप से प्रचलित और व्यवहारिकता की जिद्द पर अड़ी थी ,उन बेड़ियों को बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने बेरहमी से एक-एक कड़ी को काट अलग-थलग कर बंगाल की खाड़ी में फेंक दिया । संविधान की रचना कर उन्होंने अछूत को SC (Superior Class) ST (Superior Technician) और BC (Brilliant Class ) बनाकर उनके लिए स्वास्थ्यवर्धक भोजन, व्यक्तित्व प्रभाव प्रदर्शित करने वाले वस्त्र ,अट्टालिकाओं में रहने का अवसर, मनमोहक हवाओं का वायुमंडल ,लोक सेवा की कुर्सियां, सेना में जौहर दिखाने का मौका, पुलिस में लोक शिकायत निस्तारण का दायित्व, विश्वविद्यालयों में संभाषण की गरिमा । RO+UV+US+TDS प्रशोधित जल पीने का शौक पूरा करने का अवसर मेल-जोल का खुला व स्वतंत्र वातावरण, व्याधियों से तड़प रहे लोगों को स्वस्थ रखने के लिए अस्पतालों में इंट्री का अवसर। जीवन को बेहतर बनाने के सभी अवरुद्ध मार्ग व दरवाजे पर जड़े मोटे तालों को संविधान की छेनी और हथौड़ी से काटकर छिन्न-भिन्न करते हुए हमें अपनी मंजिल की तरफ आगे बढ़ते रहने का मार्ग प्रशस्त किया व शासक बनने की प्रेरणा दी ।
वैधानिक तौर पर सभी अधिकार हमें हासिल हैं परन्तु व्यवहारिक रूप में परिवर्तित होने में हर मोड़ पर अड़चन खड़ी की जा रही है। शैतान लोग हिन्दू एकता, सुरक्षा के नाम पर पिछड़ों व दलितों को भ्रमित कर उनके लहू को खौला कर साम्प्रदायिकता की पृष्ठभूमि तैयार कर अपनी सियासी रोटियाँ सेक रहे हैं। पिछड़ों और दलितों का तथाकथित नेतृत्व भी जाने-अनजाने परोक्ष रूप से इन्हीं को मदद कर रहा है। शायद नवधनाढ्य बनने की भूख बलवती हो गई है! अद्यतन में प्रस्तुत इन अवरोधों को दूर करने की जिम्मेदारी उठाने का साहस प्रदर्शित करना किसकी नैतिकता है? विश्वविद्यालयों को गरब गहेला बनने से रोकने और उनकी ज्ञान के उद्गम की पहचान की विरासत को पुनर्जीवित कौन करेगा? जिस दिन हमें यह जिम्मेदारी समझ आ गई और हमने दायित्वों के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित की नहीं कि तथाकथित हिंदू का मधुर "सुर" गुजराती गधों सी कान फाड़ू आवाज करने लगेगा।
यदि इस देश में व्यक्तित्व की गरिमा व अवसर की प्रतिष्ठा हासिल करना चाहते हैं तो हमें अपने सोचने का दायरा बढ़ाने की आवश्यकता है। SC ( Superior Class)+ ST ( Superior Technician)+ BC ( Brilliant Class) + Minority (Marshal Class) =The Great India prosperous country of the World.
*गौतम राणे सागर*
राष्ट्रीय संयोजक,
संविधान संरक्षण मंच ।
0 टिप्पणियाँ