उ.प्र. ने पकड़ी बिहार की राह.....

 


उ.प्र. ने पकड़ी बिहार की राह, सियासत में अनुमान लगाना आसान नही। हां यदि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव संपादित हो,"तब ग्राउंड जीरो से स्थितियों का सटीक और बेहतर आकलन हो सकता है। चुनावी सरगर्मी, मतदाता अभिमत का पूर्वानुमान किया जा सकता है। यह न्यू इण्डिया है जहां बाजारीकरण में प्रचार तंत्र की शक्ति को बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। नए पाठकों और समाचार दर्शकों की भीड़ ने इस धारदार हथियार को नित नए प्रतिमान गढ़ने का अवसर उपलब्ध करा रहा है। आज दिनांक 3 फरवरी 2022 की घटना ने उप्र चुनाव के अभी तक के सभी समीकरण को ध्वस्त कर दिया है। घटना है असदऊद्दीन ओवैसी के काफिले पर हमले की। मेरठ रैली से लौटते वक्त उनके काफ़िले पर गोलियां बरसाई गई। सूत्र यह भी बताते हैं कि हमलावरों को पकड़ लिया गया है और उनके कब्जे से प्रयोग किए गए हथियार भी बरामद कर लिए गए हैं।

     हमलावर वही बयान देंगे जो जॉच में संलिप्त अधिकारी चाहेंगे। देखा जाय तो बीजेपी (भ्रष्टाचार जननी पार्टी) को असदुद्दीन ओवैसी के मज़बूत होती स्थिति से प्रत्यक्ष रूप से कोई नुकसान नही है। उसका हमले में हाथ होने का कोई सवाल ही नही पैदा होता। हां असदुद्दीन ओवैसी की मजबूती सपा को नुकसान अवश्य पहुंचा सकती है। तो क्या इस हमले के पीछे सपा का हाथ है जवाब होगा नही बिल्कुल नही। आखिर सपा यह आत्मघाती क़दम क्यों उठाएगी? एक नैरेटिव गढ़ा जा सकत है कि सपा के उदंड समर्थकों ने जज़्बात में इस घटना को अंजाम दिया हो परंतु सच्चाई यह होगी गले से नीचे उतर नही सकती।

        एक और थ्योरी को जांच के केंद्र बिंदु में रखा जा सकता है। क्या फिल्मी स्टाईल में घटित यह हमला केजरीवाल प्रॉडक्ट की तरह ख़ुद का मंचित था जो असदुद्दीन ओवैसी को सहानुभूति का पात्र बना कर मुस्लिम हीरो के रुप में प्रस्तुत किया जा सके! शायद यह तर्क भी भूथरा हो औंधे मुंह गिर पड़े। सच तो यह भी है कि यह हमला हुआ है। संभव ही हत्या के उद्देश्य से यह असफल प्रयास वाकई हत्या की मंशा से इतर सियासी सहानुभूति इकट्ठा करने का प्रयोजन हो। आख़िर कौन है इस पटकथा के मंचन के पीछे? कहने के लिए ही परंतु है जांच का बिंदु अवरोधक बनने की इच्छा नही।

      एक बात तो सच है कि सपा के सत्ता में पहुंचने के स्पीड में यह घटना ब्रेकर का काम करेगी। अब बदले घटनाक्रम में सियासी परिदृश्य कुछ अलग ही कहानी को छोर तक पहुचाएगी। सपा, भाजपा दोनो सरकार को लीड करने की स्थिति में नही होंगे सहयोगी की भूमिका निभायेंगे। बिहार के सियासी मंचन के प्रारूप की भूमिका लिखी जा चुकी है। रंग मंच का तैयार है दस मार्च को पर्दा उठेगा और दर्शन होंगे एक अलौकिक मुख्य मंत्री का ।

*गौतम राणे सागर*

 राष्ट्रीय संयोजक,

संविधान संरक्षण मंच।

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