भाजपा के लिए मोदी बोझ हैं

 


भाजपा के लिए मोदी बोझ हैं ..... 2013 में देश को गुजरात मॉडल का सब्जबाग दिखाकर मोदी को ब्रांड एंबेसडर के रुप में देश के समक्ष प्रस्तुत किया गया। शब्दों के तीर को प्रत्यंचा पर चढ़ा नैरेटिव गढ़े गए कि मोदी पड़ोसी देश को सबक सिखाने के लिए एक अडिग शासक और देश की प्रगति के लिए एक विकास पुरुष साबित होगे। जिस तरह मोदी अब योगी की ओट में खड़े होकर अपने विफलताओं को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं तब क्या यह मान लेना चाहिए कि मोदी को पीले रंग में रंगकर सोना सिद्ध करने का आरएसएस का दांव अब उल्टा पड़ने लगा है। आखिर मोदी का पीला रंग उतर स्याहरूप धरता जा रहा है क्या और आरएसएस के लिए इस छटा को अब भुना पाना मुश्किल होता जा रहा है? 

    देश के विभिन्न क्षेत्रों में योगी को स्टार प्रचारक के रूप में प्रस्तुत करने की मंशा के पीछे तर्क यह गढ़ा था कि उप्र को योगी ने *सन फ्रांसिस्को" बना दिया है। उनके उप्र मॉडल को सामने रखकर ही उन्हें मोदी की तुलना में वरीयता भले ही न दी गई हो लेकिन समानांतर दिखाने की हरसंभव कोशिश की गई है। मसखरों के पहनावे और लतीफ़ो भरे संवाद से उप्र का चुनावी रंग मंच दर्शक बटोरने में जब असफल हो गया तब बगैर तीर धनुष के तीरंदाज़ योगी को ठोक देने वाले योद्धा के रूप में प्रस्तुत किया गया है। आरएसएस को बेहतर आभास है कि यदि योगी को वाकई तीर धनुष पकड़ा दिया जाए तब वह यह भी ध्यान नही रखेंगे कि तीर की दिशा दुश्मन की तरफ़ है या मित्र की तरफ़ जज़्बात में वह तीर छोड़ ही देंगे चाहे उनके पालनहार ही क्यों न हताहत हो जाए!

    उप्र चुनाव में मोदी की उपस्थिति एक हारे जुआरी जैसी लगती है: न चाल में दर्प है और न ही वाणी में कमांड। भय तो ऐसा व्याप्त है कि चेहरे पर मोटी मोटी चिन्ता की लकीरें खींच जाती है, भला हो दाढ़ी का जिसने उनके भय को छिपाने में मदद की है। गर्व का भाव और गजगामिनी की मतवाली चाल उड़न छू हो गई है। वह जब भी योगी के साथ होते हैं भयभीत रहते हैं जैसे उनके बगल में उप्र के मुख्यमंत्री योगी नही अपितु कोई महा विषधारी नाग बैठा हो। ठीक उसी तरह जैसे शंकर के गले में विषधारी लिपटे रहते थे। भोले नाथ, भोले नाथ थे पी गए गरल और कहलाए नीलकंठ। लेकिन मोदी यह साहस और सामर्थ्य लाएं कहां से, अडानी और अंबानी की फैक्ट्री में आत्मविश्वास और कॉमनसेंस का उत्पादन तो होता नही जिसका सेवन कर लें। ताईवान का मशरूम रंगरूप बदल हैंडसम बना सकता परन्तु डर के कारण अन्दर से गीला होते पैजामे को सूखा तो नही सकता न!

    लोग अक्सर प्रश्न करते हैं; मोदी जी दिन में इतने कपड़े क्यों बदलते हैं, अब समझ आया वह बार बार कपड़े क्यों बदलते हैं? क्या वह गीला पायजामा पहनकर चलें यदि हां तब क्या आप यह कहकर मज़ाक नही उड़ायेंगे कि पैंट गीली हो गई। भला हो huggie diaper का जो दो ढ़ाई घंटे तक इज़्जत ढके रहता है। यह तो तय है 2022 में योगी की सत्ता में वापसी ताऊ लतीफ़ को झोला उठा भागने पर मजबूर कर देगा। आख़िर उनके गुरू आशाराम के ख़ुद जेल जाने की भविष्यवाणी सच हुई कि नही? महान गुरू के कुशल शिष्य की झोला उठा चले जाने की पवित्र इच्छित आकाशवाणी निर्मूल कैसे हो सकती है?

   उप्र चुनाव हमेशा देश के राजनीतिक भविष्य को संवारने और बिगाड़ने के कार्य में मशगूल रहता है। खासतौर से देश की राजनीति में जबसे झूठ,फरेब, छल, कपट, फितरत, छद्म, भड़काऊ भाषण और अय्यारी के पोशाक धारण करने की मनोवृत्ति ने सियासत के केंद्रीय भूमिका में अपना स्थान बनाया है तबसे जमीनी हकीकत, समस्याएं, मुद्दे विमर्श से इतर होते जा रहे हैं। देश के सजग नागरिकों को नेताओं को मुद्दे पर बांधे रखने का प्रयास करना चाहिए। शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार देश के प्रत्येक व्यक्ति का संवैधानिक अधिकार है। धर्म, भाषा, आस्था, उपासना, देवालय उसके मन शान्ति के आयाम है इनकी आवश्यकता तब पड़ती है जब व्यक्ति स्वस्थ स्वास्थ्य की दशा में हो।

*गौतम राणे सागर*

   राष्ट्रीय संयोजक,

संविधान संरक्षण मंच।

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