मोदी vs योगी उ.प्र. चुनाव 2022


  अजीब होती है सियासत!अपनो के खिलाफ़ अपनो की ही साजिश देखनी सुननी हो तब एक ही माकूल जगह है सत्ता की भूख, तड़प अपनो को ठिकाने लगाने के अवसर की तलाश। लखीमपुर की घटना पर मै बड़ी बारीक दृष्टि रखे रहा। घटना से जुड़ी हर एक प्रगति को देखकर स्तब्ध था कि आख़िर आनन फानन मे SIT का गठन समय से पूर्व 5000पेज की चार्जशीट दाखिल करना इतना आसान था या जांच एजेंसी का युद्ध स्तर पर रात दिन एक करने का परिणाम। हम बिल्कुल इंकार नही कर रहे हैं कि इस मामले में उच्चतम न्यायालय भी सक्रिय था कही तो इस अति विश्वसनीय संस्थान को सक्रिय दिखना ही चाहिए। जहां योगी एक तरफ़ प्रदर्शित कर रहे थे वह कानून व्यवस्था अनुपालन के मामले मे बहुत ही संजीदा है वहीं दूसरी तरफ मोदी अपनी मूक तपस्या मे लिप्त थे। शायद वह सन्देश देना चाहते थे कि;

*जौ नर होई चराचर द्रोही आवे सभय सरन तकि मोहि*, 

*तजि मद मोह कपट छल नाना, करऊं सद्य तेहुं साधु सामना*।

  मोदी अपने मूक योग मे ऐसे व्यस्त थे कि जैसे न उन्हें कुछ सुनाई पड़ता था और न दिखाई। मोदी की चिरस्थाई तपस्या मे विघ्न न पड़ जाए दृष्टिगत करते हुए योगी ने भी आशीष मिश्रा व 6 सह अभियुक्तों के खिलाफ़ चार्जशीट पेश करवा कर ब्राह्मण विरोधी उभरती अपनी छवि पर सूर्य ग्रहण लगा लिया। मोदी  तपस्या की अग्नि ज्वाला से तपकर निकले और अजय मिश्रा (टेनी) के ऊपर अपनी माते गंगा द्वारा दिए जल को छिड़कर उसे साधु बना दिया। हां यह सच है यदि मोदी अजय मिश्रा (टेनी) को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर देते तब योगी को कानून व्यवस्था अनुपालन में 7-8/10 अंक मिल जाते परन्तु उप्र में योगी की सियासी कब्र खोदने में सफलता न मिलती। किसान आन्दोलन का केन्द्र उप्र में योगी को अनुपयोगी सिद्ध करने में किसान आसानी से कामयाब भी नही होते!

        जिस योगी का मोदी ने 2017 में उप्र के चुनाव में स्टार प्रचारक की लिस्ट से नाम गायब करा दिया हो उसी योगी को आरएसएस ने देश के विभिन्न राज्यों के चुनाव में स्टार प्रचारक में प्रस्तुत किया हो ऐसे व्यक्ति को मोदी चुपचाप बर्दाश्त कर ले; असंभव। कल्पना करें जिस देश में हर समस्या के निदान के लिए यह जुमला बोला जाता हो कि "मोदी है तो मुमकिन है"। वहां मोदी के गुजरात मॉडल पर योगी का उप्र मॉडल सुर्खियां बटोरने लग जाए तब क्या योगी का विख्यात होता यह व्यक्तित्व मोदी के सीने में शूल की तरह नही चुभेगा? सिर्फ़ चुभेगा ही नही कटार की धार सा दिल के कतरे कतरे करता निकल जायेगा। गुजराती व्यक्ति हिसाब किताब का पक्का होता है अपना कर्ज़ ब्याज सहित वसूलता है। ठंडा करने का ख़्वाब देखने वाले को 1000 डिग्री सेल्सियस के टेंपरेचर पर खौला देता है।

     उप्र में यदि योगी दुबारा मुख्यमंत्री की कुर्सी लपकने में कामयाब हो जाते हैं तब गंगा मईया अपने दत्तक पुत्र का बोझ सहन नही कर पाएगी उठा पटकेंगी अपने कोख से। इसी का भय है जो गंगा पुत्र नरेंद्र दामोदर दास मोदी को एवरेस्ट की ऊंचाई पर पड़ने वाली बर्फ की सिल्ली उनके सीने की सवारी कर रही है। उप्र का चुनाव बीजेपी बनाम विपक्ष नही अपितु बीजेपी बनाम बीजेपी है। योगी की सत्ता में वापसी मोदी और बीजेपी की कब्रगाह बनायेगी और योगी की विदाई 2024 के बाद आरएसएस को श्मशान भूमि पर मुखाग्नि देकर संगम में अस्थियां प्रवाहित करने का मार्ग प्रशस्त करेगी।

       मोदी शाह बनाम योगी आरएसएस के बीच उप्र के चुनाव में तलवारे खिच गई है। कौड़ी कौड़ी के मोहताज योगी आरएसएस चुनावी भव सागर में डूबने से बचने की फ़िराक में साइकलिंग कर रहे हैं।

*गौतम राणे सागर*

  राष्ट्रीय संयोजक,

 संविधान संरक्षण मंच।

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