सामाजिक परिवर्तन आन्दोलन से अलग हटने के बाद जिस मुकाम पर बसपा पहुंच गई है; शीघ्र ही सपा भी उसी गंतव्य पर पहुंच जाएगी।
क्या सामाजिक परिवर्तन व आर्थिक मुक्ति आन्दोलन चलना चाहिए, यदि हां तो किस रूप में....?
आप सभी के बहुमूल्य विचार आमंत्रित हैं।
कुछ लोगों के राजनीतिक जीवन में उनकी व्यक्तिगत मजबूरियां इतनी हावी होती है कि वह जन सरोकार की बलि चढ़ा कर अपनी हिफाजत करते हैं।
बसपा की जड़ों में गर्म पानी डालकर जिस तरह से मुरझाने को अभिशप्त किया गया है और विकल्प के रूप में दो पालतू पशुओं को एससी एसटी का नायक बनाने की कोशिश बीजेपी (भ्रष्टाचार जननी पार्टी) कर रही है। उसका यह क़दम सामाजिक न्याय आन्दोलन में बहुत बड़ा रोड़ा है। शीघ्र ही यह सर्कस के कलाबाज जानवर उप्र में सक्रिय नज़र आयेंगे।
आप सभी महानुभावों की सलाह परमादरणीय कांशी राम साहब व प्रातः स्मरणीय बाबा साहेब आंबेडकर के सपनों का भारत बनाने में मददगार साबित होगी। कृपया अपने विचारों से अवगत कराने की तकलीफ़ उठाएं।
*गौतम राणे सागर*
राष्ट्रीय संयोजक,
संविधान संरक्षण मंच।
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