करू बहियां बल आपनी, छोड़ बिरानी आस
*जाकै आंगन नदिया बहै, सो कस मरै पियास*
लोगों की इच्छा सिर आंखों पर। उनका मत है पुराने इंजन के स्क्रैप को नीलाम किया जाएगा। नए इंजन को लौहपथ पर डाले बहुजन समाज नए सूर्योदय की प्रतीक्षा में है। अब हर जागरूक नागरिक समझ गया है कि लोकतन्त्र में परिवारवाद के लिए कोई स्थान नही। मनुवादियों द्वारा थोपी गई जाति व्यवस्था पर गर्व करने वालों की लुटिया और कुटिया दोनों तबाह होगी। देश में मानवीय मूल्यों के संहारक नरभक्षियोंं का बध अब अति आवश्यक है।
आंबेडकरवाद और भारत का संविधान एक ऐसा अचूक अस्त्र है जिससे किसी भी नर पिशाच का संहार किया जा सकता है। देश की संपत्तियों, नौकरियों, दौलत, शोहरत, मसावात पर सर्जिकल स्ट्राइक करने वाले फरेबियों को यूरेशिया के कक्ष में पुनः प्रक्षेपित करने में आंबेडकरवाद पूर्णतः सक्षम है। यह भी सच है कि कुछ निक्कमे, कामचोर, डरपोक, भीरू, दम्भी, मूर्ख, भ्रष्ट व परिवादी मानसिकता के लोगों ने छल से अम्बेडकरवाद का चोला ओढ़कर अपनी धन पिपासा की भूख मिटाने तक को ही बहुजन नायक के रूप में ख़ुद को प्रस्तुत किया है।
जिस तरह ब्राह्मणवादियों ने बीएसपी (बहन जी संपत्ति परियोजना) को एनपीए में तब्दील किया है उसी तरह सपा भी शीघ्र ही एनपीए होने जा रही है। इनकी चाल है कि दलित और मुस्लिम एक बार फिर से कांग्रेस की तरफ़ मुड़ जाय। यूरेशियाई नस्लें नही चाहती कि देश में क्षेत्रीय दल मज़बूत हो। जहां एक ओर यूरेशियाई नस्लें अपने जात्याभिमान की सामंती व असमानतावादी विचारों की कमज़ोर पड़ती नींव को सांप्रदायिकता की खाद व निजीकरण के जल से सींचकर मजबूती देने के लिए अनवरत लिप्त हैं वहीं दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक के नेता अपने सुप्रेमोगिरी में मदहोश हैं।
हमें अपने अस्तित्व को बचाने की जरूरत है, बीएसपी और सपा दोनो परिवारवाद की दहलीज से बाहर नही आ सकती हैं इसलिए अन्य विकल्प पर विचार करने की अनिवार्यता के मद्देनजर ही निर्णय लेने होगे। यदि किसी को भ्रम हो कि इन दोनों में सुधार की गुंजाइश है तब वह 2024 के लोकसभा चुनाव का इंतज़ार कर सकते हैं। यूरेशियाई नस्लों ने तय कर लिया है कि अखिलेश यादव चाहे जहां से लोकसभा का चुनाव लड़ेगे वह चुनाव में मुंह की खाएंगे। मायावती तो चुनाव लड़ेगी नही इसलिए वह अखिलेश की हार पर ताली बजाकर प्रमाण पत्र जारी करने को व्याकुल रहेगी कि सपा को हराने के लिए हम हर क़दम उठाने को तैयार हैं। अखिलेश की हार हमारी जीत का परोक्ष रूप है। बहुजन समाज को बेचकर हज़ारों करोड़ की इकट्ठी की गई दौलत भी तो परिवार के आनन्द के लिए आकाश की ऊंचाइयों के समानांतर पहुंचना है।
*गौतम राणे सागर*
राष्ट्रीय संयोजक,
संविधान संरक्षण मंच।
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