बौड़म राजा......


इसे महज़ इत्तेफ़ाक कहें प्रकृति या प्रवृत्ति प्रतिकूल प्रदर्शन? यूक्रेन और रूस युद्ध ने दो व्यक्तियों को आईने के समक्ष प्रस्तुत कर ख़ूब करीने से चरित्र चित्रण किया व अनवरत उसी दिशा में चलायमान है। देश के नागरिकों को अपने निर्णय की समीक्षा को मजबूर करने वाली इस प्रतिघात की विषम परिस्थिति ने चेतावानी दी है सुधरने की, अन्यथा बिखरना ही अंतिम विकल्प चयन की। एक तरफ़ हास्य, व्यंग्य व ऊल जलूल हरक़त से लोगों का मनोरंजन कर अपनी आजीविका चलाने वाला व्लादिर जेलेंस्की अजेय योद्धा की भूमिका में अड़ा तना खड़ा है वही दूसरी ओर योद्धा, नायक, विकास पुरुष, कठोर निर्णय के नायक का स्वयंभू प्रमाणक आत्मकेंद्रित; राजा के दायित्वों से इतर बौड़म की भूमिका की लिए हर क्षण उपलब्ध है।

        क्या मानसिक स्वस्थता प्रस्तुत करना कठिन है या सुस्त दिमाग का प्रदर्शन सहज या आसान? आखिर कब तक मंद बुद्धि की प्रवृत्ति हमें एक मसखरे में गंभीर चिंतन वाला व्यक्ति ढूंढने पर विवश करेगी और उसके ठिठोलेपन को देश के हित का महानायक कबूल करने की मनोवृत्ति को उद्दत?  देश को भारतमाता के नाम से बांग देने वाले उस समय किस कब्र में दफ़न हो जाते हैं या श्मशान में मुखाग्नि ले रहे होते हैं जब उसी भारतमाता की औलादें दुनियां के अन्य देशों में फंसे होने की वजह से स्वस्थ घर लौटने की चाह रखते हैं? दूसरे देशों के विवाद में भारतमाता के होनहार बच्चें बलि का बकरा क्यों बने? उत्तरदायित्वों के प्रति समर्पित शासक निस्संदेह अपने देश के नागरिकों की सुरक्षा को प्राथमिकता देता है परंतु इवेंट मैनेजर बौड़म शासक हर आपदा को इवेंट में तब्दील होने की प्रतीक्षा कर अपनी अप्रिय काया चमकाने के लिए अवसर की तलाश करता है।

        संभव है देश के बौड़म राजा में दूरदर्शिता का ह्रास हो परंतु लाखों का उसका लाव लश्कर किस मरण शैय्या पर लेटा रहता है? क्या वह भी विदेशों में फंसे देश के नागरिकों के जीवन के लिए खतरे को भांप नही पाता है या फिर सनक के विशालकाय रथ पर सवार मदहोश शासक के इवेंट मैनेजमेंट के कारकून की भूमिका में संलिप्त रहने को ही अपना दायित्व मानते हैं? कितनी हृदयविदारक परिस्थिति उन परिवारों के समक्ष होगी जो व्यग्रता से अपने लाडली और लाडले के सकुशल घर वापसी की प्रतीक्षा में हो और मदांध शासक डमरू बजाने की कला के प्रदर्शन मे व्यस्त हो! शरत जोशी की कहानी; एक था गधा उर्फ़ अलदाद खां बेहतरीन उदाहरण है जो यह प्रदर्शित करता है कि लोग जब किसी के प्यार में पागल हो जाते तब स्नेह से गधे का भी नाम अलदाद खां रख देते हैं। कहीं ऐसा तो नही देश के नफ़रत गुट के लोग स्नेह से एक बौड़म को अद्वितीय शासक का तमगा पहना रहे हैं?

क्रमश:

*गौतम राणे सागर*

  राष्ट्रीय संयोजक,

संविधान संरक्षण मंच।

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