काश ऐसा होता......यदि बहन जी देश की प्रधानमंत्री बन जाती हैं तब हम जैसा उनकी अकर्मण्यता और आत्मकेंद्रित विकास का प्रबल विरोधी भी इस उपलब्धि का भूरि भूरि प्रशंसक बन जायेगा। हमारी पीड़ा यह नही है कि बीएसपी बुरी तरह से क्यों हारी। हमें चोटिल यह घटना करती है कि जब तक पार्टी मान्यवर कांशीराम साहेब के निर्देशन में काम कर रही थी तब तक 1989 से लगातार प्रगति पथ पर थी। हां कुछ घटना ऐसी भी है जब पार्टी ने अपने पुराने प्रदर्शन में वृद्धि नही की परन्तु पीछे भी मुड़कर नही देखा। लब्बोलुआब यह कि 1989 से 2007 तक पार्टी औंधे मुंह कभी नही गिरी। फिर अचानक 2012 के बाद से लगातार क्षय की ओर उन्मुख है आखिर क्यों?
हर हार के बाद एक ही घिसा पिटा अभिनय कुछ जोनल कोऑर्डिनेटर को हटाने का ड्रामा। बीएसपी मे किसी भी कार्यकर्ता की इतनी हैसियत नही है कि वह बहनजी की अनुमति के बिना लघु व दीर्घ शंका भी कर सके। फिर उसकी कमी से पार्टी कैसे पराजित हो सकती है? जिस प्रतिभा से पार्टी ऊंचाई हासिल करती है उसी की त्रुटि से पराभव संभव है। हर बार फेल हो रहा है इंजन; लेकिन बदलाव हो रहा है डिब्बों मे। बस सुनाया जा रहा है मुंगेरी लाल के हसीन सपने। मियां लतीफ़ के लतीफों से फिर अपनी महानता परोसी जा रही है।
हम दिल पर पत्थर रखकर सच बोलने की हिम्मत कर रहे हैं बहन जी अब किसी भी सदन की सदस्य नही बन सकती हैं। मुख्य मंत्री और प्रधान मंत्री का ख़्वाब बहुत दूर की कौड़ी है। हमें तो लगता है कि उन्होंने बीजेपी के हाथों बहुजनों को हराने की सुपारी ले रखी है।
2024 के लोकसभा चुनाव में बुरी तरह पिटने के बाद फिर समीक्षा बैठक के नाम पर अदने कार्यकर्ताओं के पर कतरे जाएंगे। यदि बहन जी वाकई अंबेडकरवादी है तो उन्हें पार्टी से ख़ुद को और भाई भतीजे को अविलम्ब अलग कर लेना चाहिए। इतनी परिपक्व राजनीतिज्ञ होने के बाद क्या उन्हें ज्ञात नही है कि जिस भाई पर भ्रष्टाचार का आरोप है उसे राजनीति में उतार कर साजिशों की महारत से लबरेज़ मज़बूत दिखने वाली सत्ता को चुनौती नही दी जा सकती! राजनीति में दूरदर्शिता और समाज के प्रति समर्पण दिखना चाहिए बहन जी में यह गुण रत्ती भर कहीं से दिखाई नही देता! जब सत्ता पक्ष भ्रष्टाचार और भाई भतीजा को लोकतन्त्र का भक्षक प्रचारित कर सहानुभूति बटोर रही है तब इतनी भयंकर गलती की एक ही वजह हो सकती है परिवारवादी सोच आत्मकेंद्रित विकास।
अपनी हार के लिए मुस्लिमों को कोसना कहां तक उचित है? वह टिकट के लिए आपको पैसा दे, पार्टी बढ़ाने के लिए प्रयास करें, चुनाव लड़ने में पानी की तरह रूपया बहाए, बीजेपी द्वारा ख़ुद के खिलाफ़ की गई साज़िश से निजात पाने के लिए हाथों में संविधान और बाबा साहेब डॉ आंबेडकर अमर रहे नारे के उदघोष से वायुमंडल बुलन्द कर दे। तब भी उनके समर्थन में न तो आपकी कबूतर और न ही पतंग उड़ेंगे। लेकिन उनकी वोट और नोट आपको ही मिलनी चाहिए क्यों? क्या यह आरोप उचित है?
संभावना तो नही है कि ऐसा दुस्साहस कोई अंबेडकरवादी दिखा सकता है! हां अंबेकरवाद की खाल में कोई मनुवादी है तो इस दुस्साहस का प्रदर्शन वह अवश्य करेगा।
*गौतम राणे सागर*
राष्ट्रीय संयोजक,
संविधान संरक्षण मंच।
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