भारत भूमि पर हिन्दू अस्मिता की रक्षा को प्रतिबद्ध ट्रेंड होता एजेंडा अद्यतन सुर्खियों का केन्द्र बना है। क्या वाकई हिंदू धर्म खतरे में है या जरायम पेशे की प्रवृत्ति की लत वाली काबिलाई संस्कृति? विडंबना यह है कि जिनकी धमनियों में कायरता का रक्त प्रवाहित हो रहा है वह शूरवीर गाथा का भरतनाट्यम कर रहे हैं। जब भारत दुनियां में अपनी ताक़त का लोहा मनवाने की स्थिति में पहुंच गया था तब अचानक से विकास पथ के अनुगामी देश को जरायम की तरफ़ खींचती यह ताकते आख़िर हैं कौन? देश की एक ऐसी सरकार जो भारतीय इतिहास की सबसे मजबूत सरकार होने का दम्भ भरती है तब भी देश में अशांति होने का तात्पर्य है कि या तो सरकार पूरी तरह से अकर्मण्य, अक्षम, अदूरदर्शी है या फ़िर देश में फैलने वाली दहशतगर्दी उसके निर्देशन में हो रही है। ख़ैर सरकार से नैतिकता के आधार पर त्यागपत्र की अपेक्षा का आशय होगा ख्वाजासर:( किन्नर) से बच्चा जनने की अपेक्षा।
इन शूरवीरों के पूर्वजों की बानगी का उल्लेख समीचीन होगा; धर्म के ट्रेडमार्क के तिजारती का स्वभाव होता है कि वह अपने से इतर हर धर्म को फूटी आंख से भी देखना पसंद नही करता। ख़ासतौर से वह धर्म जिसका आधार ही छल, कपट, फितरत, छद्म, हिंसा, उन्माद और विभेद पर टिका हो वह किसी अन्य धर्म के ट्रेडमार्क को ट्रेंड होते देख सके असंभव है। जब बैक्ट्रिया के डिमेट्रियस ने भारत पर हमला किया तब हिन्दू धर्म महानुभावों ने थाल सज़ा कर स्वागत किया। उनका मत था कि यह हमला उन पर नही एक जैन राजा पर हुआ था। गार्गी संहिता के युग पुराण अनुसार हमले के जिक्र में डिमेट्रियस को धर्ममीत कह कर याद किया गया है।
शुंग वंश के वसुदेव वंश के चार राजा एक के बाद एक सिंहासन पर बैठे। जैनों का उत्पीड़न उनके टॉप एजेंडे में था। मंतव्य में कामयाबी हेतु शक जो पार्थियन राजाओं द्वारा पीटे गए थे, पुर्व की ओर भाग खड़े हुए थे उन्हें निमंत्रित किया गया। उन्होंने यहां आकर साम्राज्य स्थापित कर लिया।
712 ईसवी में जब सिंध पर 17 वर्षीय मुहम्मद बिन कासिम ने हमला किया हिन्दू राजा दाहिर के ब्राह्मण सेनापति ने ध्वजा गिराकर अपनी हार स्वीकार कर ली। आर्यों ने श्रद्धा पर अधिक बल देकर अंधविश्वास को जनजीवन का अभिन्न अंग बना दिया है। इसे ही धर्म का नाम दे दिया। शिक्षा से वंचित मूलनिवासी आतताई आर्यों द्वारा थोपे गए अंध विश्वास को ही धर्म मान बैठे हैं। बार बार अपने निकम्मेपन की वजह से हारता रहा आर्य लेकिन तोहमत मढ़ता रहा हिन्दू के सिर। भागते मुहम्मद बिन कासिम को झण्डा झुकाने का मसवरा देने वाला ब्राह्मण झण्डा झुकाने में यह कहते हुए सहयोग करता है कि झण्डा झुकने से हिन्दू सेना भाग खड़ी होगी। उनकी मान्यता है कि झंडा झुकने का मतलब होता है कि हमारी देवी हमसे कुपित हैं। हिन्दू सेना के नाम पर शामिल थी खेत खेत की मूली यानी जगह जगह के क्षत्रिय। हर बार हारता रहा आर्य और बदनाम होता हिन्दू।
जनवरी 1026 में महमूद गजनवी ने सोमनाथ पर हमला किया। जब वह सोमनाथ की ओर बढ़ रहा था रास्ते में आर्यों की बहुत सी सेनाएं मिली, यदि वह चाहते तो जगह जगह मुठभेड़ करके गजनवी का मनोबल तोड़ सकते थे। उन्होंने ऐसा कुछ करने के बरक्स अंधविश्वास को महत्व दिया कि सोम भगवान द्वारा आशीर्वाद प्राप्त सोम शहर की सेना महमूद और इसकी समस्त सेना का सर्वनाश कर देगी।
जब महमूद सोमनाथ पहुंचा, वहां हजारों सैनिक और अर्धसैनिक मौजूद थे परन्तु यह तो रास्ते वाले सैनिकों से भी अधिक धर्मभीरू और अंधविश्वासी निकले। उन्होंने भी मान लिया कि सोम भगवान कुपित हो दुष्टों को पल भर में भस्म कर देंगे। यह धर्मभीरू लोग दीवारों पर बैठे प्रतीक्षा करते और मंद मंद मुस्कान के साथ आस लगाए रहे कि अभी यह दुस्साहसी मुसलमान चंद मिनटों में नष्ट हो जाएगा। जब महमूद की सेना नरसंहार कर रही थी तब यूरेशियन सेना की एक टुकड़ी मन्दिर में मूर्ति के सामने लेट कर विजय के लिए प्रार्थना कर रही थी। वह गिड़गिड़ाते बाहर आते जहां उन्हें कत्ल कर दिया जाता। जब तक सभी धर्मभीरू कत्ल नही कर दिए गए यह क्रम चलता रहा। The history of India as told by its own historians ( लेखक सर एच एच एलिट और जॉन डाउसन) पेज 470 पर विस्तार से विवरण प्रस्तुत करते हैं।
क्रमशः
*गौतम राणे सागर*
राष्ट्रीय संयोजक,
संविधान संरक्षण मंच।
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