हमारा अधिकार है


 देश में फैले 25 उच्च न्यायालयों में कुल 1104 जजों के स्वीकृत पदों की संख्या है, जिसमें 833 स्थाई और 271 अस्थाई। 1अप्रैल 2022 तक उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 387 पद रिक्त हैं यानि अभी कार्यरत जजों की संख्या है 717 है जबकि 38%पद अब भी रिक्त हैं।

   यह देश लोकतंत्र से चलता है। किसी की रियासत नही है भारत भूमि।

    संविधान निर्देशित करता है कि जनसँख्या के आधार पर सभी का आनुपातिक प्रतिनिधित्व होना चाहिए। विषमता अक्षम्य है

      हम इच्छा रखते हैं कि उच्च न्यायालयों में कार्यरत 717 जजों की संख्या में: 359 पिछड़ी जातियों,174 अनूसूचित जातियों और 143 अल्पसंख्यक और 41 ही जज अगड़ी जाति से हों।

    क्या यह मांग अनुचित है? यदि नही तो अधिकार भिक्षा पात्र में नही डाले जाते, लड़कर छीनना पड़ता है।

अधिकार हर हाल में हासिल करने के लिए हैं तैयार हम।

क्या आप हैं?

क्या आप जानते हैं कि उच्च और उच्चतम न्यायालय से पारित आदेशों में न्याय क्यों नही दिखता? प्रतिनिधित्व का अभाव कार्यरत जजों में न्यायायिक चरित्र उभरने नही देता। उनके आस पास न्याय करने की प्रतियोगिता नही है। प्रतिनिधित्व न्यायायिक चरित्र को ज़िंदा रखेगा। शुद्ध न्यायायिक चरित्र के आलोक में अदालतों से न्याय मिलेगा।

*आइए; प्रतिनिधित्व संग्राम में भाग लें*।

*गौतम राणे सागर*

 राष्ट्रीय संयोजक,

संविधान संरक्षण मंच।

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