सम्भ्रमित हूं!भूख से संक्रमित देश के मजदूरों को बधाई दूँ या प्रकट करूं उनके प्रति संवेदना, किस बात की दूँ बधाई; भूख से बिलबिलाते मजदूरों को? भूख से बिलखते मजदूरों को दल-दल में धकेलने के सरकार की संवेदनहीनता का शुक्रिया अदा करूं क्या या इनकी पीड़ा का एहसास कर सरकार द्वारा दिए गए जख्मों पर नमक रगड़ कर दूँ इन्हें बधाई। दुनिया के सभी मजदूरों आपको मई दिवस की लख-लख बधाइयां। हे मेहनतकश इंसानों! हो आप बधाई के पात्र। आखिरकार आपने सरकार की सनक को पूरा करने के लिए अपनी कुर्बानी दी है। आपने सरकारी एलान ता'मील करने में अपनी रजामंदी दी है। आप जहां और जिस स्थित में है वही रहना कुबूल किया है। तुगलकी सरकारी दावे यही कहते हैं। आप की सहमति होने न होने के कोई मायने नहीं है। आप पैदा हुए हैं राष्ट्र निर्माण में शहादत का ईंट और गारा बनने हेतु। आपके इसी जज्बात की सरकार खेती करती है। जब तक देश के मजदूर अपने उत्पीड़न का अकेले-अकेले मुकाबला करने के लिए स्वतः भुट्टे की तरह जलते भुनते रहेंगे; *सरकार के झूठ की नाव अंधे कुएं में तेज चलती रहेगी*।
24 मार्च 2020 के सबसे काले दिन का फरमान मजदूरों के ऊपर हो रहे जुल्म ज्यादती के अपरिमित ऊंचाइयों के इतिहास का जो अध्याय लिखता है; शताब्दियों ही नहीं अपितु सहस्राब्दियों का मरहम लग जाएगा; इस पीड़ा को शांत करने में। पूछिए उस व्यक्ति से काल कोठरी में बंद होने की पीड़ा क्या होती है:- जो वहां बंद भूख से बिलबिला रहा है। समझिए क्या होती है भूख;उससे जो दो-चार दिनों से लगातार भूख में तड़प रहा है। जानिए क्या होता है बिछड़ने का दर्द: उससे जो शहर में फंसा है और गांव में उसका परिवार पेट में दौड़ भाग कर रहे चूहे से मुक्ति का उपाय सोच रहा है। उस परिवार को न तो सूखी रोटी मिल पा रही है और न ही परिवार के एकमात्र कमाऊ व्यक्ति से मिलने का सुख।
सरकार में बैठे लोगों को क्या इतनी भी तमीज नहीं थी कि देश में लाकडाऊन की दशा में देश के विभिन्न बड़े शहरों में फंसे करोडों मजदूरों का क्या होगा,वह दिहाड़ी मजदूर क्या खाएंगे बिछाएंगे और सोएंगे? इस बात पर गौर करने की शायद सरकार को फुर्सत ही न हो! या यूं कहा जाए कि यह मजदूर सरकार की गणना के पात्र ही नहीं है। इन नेताओं की जब जीभ लंबी होती है,"तब यह मजदूर थोड़ी सी जगह बना लेते हैं। तदोपरांत न तो यह कुटिल नेताओं को समझ में आते हैं और न ही दिल में। दिमाग पर इनके विषय में कभी जोर देना ही नहीं चाहा! उन्हें ज्ञात है कि जिस दिन मिथ्या पुराण का पाठ कर राष्ट्र निर्माण देशभक्ति का सबूत मांगा नहीं कि:-यह भेड़ बकरियों सादृश्य दिखने वाले दो पैर के जानवर मोहपाश में फंस ही जाएंगे। जब इस देश ने रानी लक्ष्मीबाई के नाम पर झलकारी बाई की वीरता को इतिहास के पन्नों पर देखा है,"तब वर्तमान अछूता कैसे रह जाए! शुरू हो गया है शहंशाह-ए-जुमला का जुमलेश्वर पुराण का पठन-पाठन । जब इस मोहपाश को बड़े-बड़े सूरमा नहीं तोड़ पा रहे हैं," तब इन कीड़े-मकोड़े मजदूरों की क्या बिसात?
यह झूठों का कार्यकाल है। यहां झूठ गरमा-गरम कचौड़ियों की भांति बिक जाएगा और सत्य मजदूरों की तरह लाकडाउन की भेट चढ़ेगा। किसी शायर ने क्या खूब कहा है कि:- *झूठों ने झूठों से कहा: सच बोलो, सरकारी ऐलान हुआ है सच बोलो। चारों तरफ इसी जुमले का बोलबाला है। सरकारी ऐलान हो गया; जो जहां है वही रहे। उसे किसी चीज की कमी नहीं होगी। न खाने की न रहने के और न ही सब्जी व तेल मसाला खरीदने की। सरकार सभी इंतजाम करेगी । शायद कागजों पर खाना पूरी हो गई है । बट गए हैं राशन । हो गए हैं हर खाते में ₹1000 ट्रांसफर। मजदूर आज भी भूख प्यास से हलकान हैं। शहरों में भूखे मरने से बेहतर उन्हें लग रहा है कि वह किसी तरह गांव चले जाएं। अपनों के बीच रहे। अपनी जान बचाने की चाहत ने मजदूरों के इस प्रयास को आतताई सरकार ने अघोषित आतंकवादी कारनामा घोषित कर दिया। इनके दमन के लिए बेरहमी के सभी हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। मजदूर आजादी से पहले खाकी वर्दी के सितम का शिकार होता था और आज भी। आजादी से पहले भी उसे कोई अधिकार नहीं थे और आज भी। देश की आजादी ने उसके जीवन में कोई परिवर्तन नहीं किया। इनके नाम पर जितनी योजनाएं कागज के पन्नों की शोभा बढ़ा रही हैं;झूठों के यह सरकारी ऐलान भी शायद इनके झूठे सिपहसालारों की तोंदे बढ़ाने के उपक्रम में तल्लीन है।
देश के मजदूरों मैं आपको किस मुँह से श्रमिक दिवस की बधाई दूं! शहरों में आप भूखे मरने का इंतजार कर रहे हैं इस बात की या गांव में आपके बच्चे आपको देखने को व्याकुल है। पत्नी अपने बिरह का बयान बयान करें तो किससे? मां की बूढ़ी आंखें अपने लाल को अधीरता से निहारते-निहारते सुजती चली जा रही हैं इस बात की इस बात की बधाई दूँ...... मन बोझिल है। मस्तिष्क असंतुलित। असमंजस की स्थिति में सिर्फ एक अपील कर सकता हूं देश के मजदूरों एक हो; अपनी ताकत पहचानो:- यह देश तुम्हारा है। यह घर तुम्हारा है। तुम्हारे किराएदार इस मकान के एक-एक सामान को बेच चुके हैं और मकान के ढांचे का सौदा भी। अपने घर बचाने कि आपकी चाहत को मैं सहयोग दे सकता और बधाई भी। बस एक बार मजदूर दिवस पर अपने देश को बचाने का संकल्प ले ले।
यदि नहीं तो देश की झूठी सरकारों ने कृष्न चंदर की कहानी *जामुन का पेड़* की तरह आपको विस्थापित मजदूर घोषित कर दिया है और वापस बुलाने की फाइलें खुलवा दी है। उम्मीद है कि आप के मरने के बाद शायद या फाइलें सूचना दें कि विस्थापित मजदूरों को वापस बुलाने का अनापत्ति प्रमाण पत्र मिल चुका है.........
*गौतम राणे सागर*
राष्ट्रीय संयोजक,
संविधान संरक्षण मंच।
2020 में लिखा गया लेख आज भी उतना ही प्रासंगिक है, पुनः दोहराव की प्रबल इच्छा को रोक नही पा रहा हूँ।
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