लोकमाता अहिल्याबाई होलकर के बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता ____ज्ञानेश पाल धनगर
धूमधाम से मनाई गई राजमाता अहिल्याबाई होलकर की 297 वीं जयंती
सिधौली सीतापुर में हमराह एक्स कैडेट एन सी सी सेवा संस्थान के तत्वावधान में धूमधाम से मनाई गई। राज माता आहिल्या बाई होल्कर की 297वीं जयंती सिधौली मनिकापुर गाँव में धूम धाम से मनाई गई। इस अवसर पर लोगो ने महारानी के चित्र पर माल्यार्पण किया , कार्यक्रम का संचालन कर रहे संस्थान के सचिव ज्ञानेश पाल धनगर ने कहा गड़रिया, पाल ,बघेल ,धनगर समाज के लोग देवी आहिल्या बाई होल्कर के वंशज है।महारानी का 31 मई सन 1725 ई० को हुआ था।1767 में इनके पति व ससुर की मौत के बाद इंदौर का राज पाठ महारानी ने संभाला महारानी ने पूरे देश में मंदिर, धर्मशालाये ,सरोवरों व नदियो पर घाटों का निर्माण कराया। कुरुक्षेत्र में शिव सनातन महादेव मंदिर सन्निहित सरोवरों पर पंचकुंड व लक्ष्मी घाट का निर्माण करवाया ।उह्नोंने समाज के लोगो को महारानी की शिक्षाओ का अनुसरण करने और उनके बताये मार्ग पर चलकर समाज में फैली बुराईयों को दूर करने की अपील किया रानी अहिल्याबाई ने कलकत्ता से बनारस तक की सड़क, बनारस में अन्नपूर्णा का मन्दिर, गया में विष्णु मन्दिर बनवाये। इसके अतिरिक्त इन्होंने घाट बनवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण करवाया, मार्ग बनवाए, भूखों के लिए सदाब्रत (अन्नक्षेत्र ) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बिठलाईं, मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति शास्त्रों के मनन-चिंतन और प्रवचन हेतु की लोकमाता के समाज कल्याण के लिये किये गये त्याग और बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता समाज उनके जीवन से प्रेरणा लें उनके नाम पर सरकार को पुरुस्कार आदि कार्यो को बढ़ाया जाना चाहिये लोकमाता पृथ्वी पर देवी का रूप थी उनको हमेशा से एक बहादुर, आत्मनिष्ठ, निडर महिला के रूप में याद किया जाता है. ये अपने समय की सर्वश्रेष्ठ योद्धा रानियों में से एक थीं, जो अपनी प्रजा की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहती थीं. इतना ही नहीं उनके शासन काल में मराठा मालवा साम्राज्य ने काफी ज्यादा नाम कमाया था. जनहित के लिए काम करने वाली महारानी ने कई हिंदू मंदिर का निर्माण भी करवाया था, जो आज भी पूजे जाते हैं.
अहिल्याबाई एक दार्शनिक और कुशल राजनीतिज्ञ थीं. इसी वजह से उनकी नजरों से राजनीति से जुड़ी कोई भी बात छुप नहीं सकती थी. महारानी की इन्हीं खूबियों के चलते ब्रिटिश इतिहासकार जॉन कीस ने उन्हें 'द फिलॉसोफर क्वीन' की उपाधि से नवाजा था. जानकारी के मुताबिक महारानी अहिल्याबाई होल्कर का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के चौंडी गांव में हुआ था, जिसे वर्तमान में अहमदनगर के नाम से जाना जाता है.
अहिल्याबाई होल्कर का विवाह मल्हार राव के बेटे खंडेराव से हुआ था, लेकिन साल 1754 में पति की मृत्यु के बाद महारानी ने सती होने का फैसला लिया था. इनके इस फैसले ने सबको हैरान कर दिया था, लेकिन उनके ससुर ने उन्हें ऐसा करने से रोक लिया था. वहीं कुछ समय बाद महारानी के पुत्र की मृत्यु के बाद अहिल्याबाई ने साल 1767 में पदभार संभाला था. जिसके कई सालों के बाद 13 अगस्त 1795 को महारानी की मौत हो गई थी लोगों की मूलभूत सुविधाओं का रखती थीं ध्यान अहिल्याबाई होल्कर एक शिक्षित महिला थीं. उन्होंने कई साल इंदौर शहर पर राज किया और एक सफल प्रशासक के रूप में जानी गईं. अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने पूरे देश की सड़कों को बनवाया, पानी की टंकियां लगवाईं और धर्मशालाओं का निर्माण कराया था. इस अवसर हर्षवर्धन पाल संगठन मंत्री लखनऊ मंडल (हमराह एक्स कैडेट एन सी सी सेवा संस्थान ) दीपक पाल धनगर ,दीपिका पाल ,पुजा पाल, आदर्श पाल, सावित्री पाल , सुनीता पाल, श्वेता पाल ,आदित्य पाल, ज्योति पाल राम सागर पाल ,राम नरेश पाल, आदि लोग उपस्थित रहे
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