व्यक्ति की आवश्यकताओं को पांच भागों में बांटा जा सकता है। इन्हीं श्रेणियों के अनुसार बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने उपभोक्ताओं को सूचीबद्ध करती हैं। राजनीति भी परोक्ष रूप से उद्योग ही है परन्तु साधारण व आम जन मानस इन्हें सेवा की अनुसूची में शामिल करते हैं। शायद समझ और विश्लेषण दक्षता की कमी उन्हें यहीं तक सीमित कर देती है। चुनावी कुरुक्षेत्र में यही साधारण लोग मज़बूत उम्मीदवार उसे समझते हैं जो गाड़ियों की लम्बी लम्बी कतार लेकर अपने साथ चले। समाज में सम्भ्रांत होने का तमगा हासिल करने वाले जिस दल का प्रचार करें। क्षेत्र में जिसके दबंगई का बोल बाला हो। इस पृष्ठभूमि के लोग जब चुनाव जीतकर लोकसभा व विधान सभा पहुंचेगे तब उन लोगो की प्राथमिकता में अपने निवेशित धन को लाभांश के साथ निकालना होगा। वह सेवा पर अपना समय क्यों बर्बाद करेगें जब सेवा उनके एजेंडे में कभी शामिल ही नही था। जिस तरह चतुर बनिया जब अपनी नई दुकान खोलता है तब वह ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए नए नए ऑफर की घोषणा करता है। ठीक उसी तर्ज़ पर सियासी जमात के लोग भी मतदाताओं को लुभाते हैं।
कार्पोरेट जगत काम कैसे करता है विमर्श का बिंदु यह है। शुरूआती दौर में वह लोगों की आवश्यकताओं का ब्लू प्रिंट तैयार करता है। परचेजिंग क्षमता का आंकलन करता है। आकर्षित करने के लिए रणनीति तैयार करता है। निम्नलिखित पांच श्रेणियों के उपभोक्ताओं को उनकी सामर्थ्य अनुसार प्रोडक्ट लॉन्च करता है। साथ ही साथ बड़े बड़े आकर्षक फ्रीबीज घोषित करता है। साधारण व्यक्ति आता तो है साबुन की एक टिकिया खरीदने लेकिन उसका ध्यान केंद्रित रहता है ईनाम में मिलने वाली कार के ख़ुद के स्वामित्त पर। चर्चा को केंद्रित करते हैं व्यक्ति की आवश्यकताओं और उसके श्रेणियों पर;
1.*शारीरिक आवश्यकता*: हर व्यक्ति को भूख, प्यास, छत, सैक्स की जरूरत उसके जीवन में पड़ती है। जनसंख्या का अधिकांश हिस्सा इसी उधेड़बुन में अपना हांड मांस का ढांचा लेकर रक्त के लुब्रीकेंट से संचालित जीवन के ताप से प्रतिदिन क्षण क्षण झुलसता रहता है। यह समाज उद्योगपतियों के लिए सिर्फ़ उस समय उपयोगी है जब उसे दयावान बनना होता है। सरकारी कर की चोरी कर इसे दया के आवरण में ढकनी होती है। इसी को कहते हैं चैरिटी के नाम पर खुला लूटतन्त्र।
2. *सुरक्षा की आवश्यकता*: मजदूरी पसीना सूखने से पहले मिल जानी चाहिए। बच्चों की शिक्षा मुफ़्त में मिल जानी चाहिए। बीमार पड़ने पर मुफ़्त में इलाज़ हो जाना चाहिए। ख़ुद की झोपड़ी होनी चाहिए, यदि पक्का मकान हो जाय तो खुशियों में चार चांद लग जायेगा। सोने चांदी के ज़ेवर हो जाएं तो पूछना ही क्या है।
3. *प्यार/सम्पत्ति*: फैमिली की चमक धमक, अच्छे स्कूल में बच्चों का दाखिला, मकान, खेती, जान पहचान, धर्म, रौब झाड़ने के लिए कुछ महंगे सामान जैसे घड़ियां, गाडियां, रेस्टोरेंट में दावतें। इस किस्म के लोग यदि कहीं सामाजिक आयोजन में शामिल होते हैं तो उनका मक़सद समाज कल्याण के लिए कुछ करने की तमन्ना नही होती है अपितु होती है ख़ुद की शेखी बघारने की चाहत।
4. *मान सम्मान*: इस श्रेणी के लोग हर जगह अपनी पहचान बनाना चाहते हैं। हर स्थान पर सम्मान चाहते हैं। फॉर्म हाऊस, कोठी, शानदार ऑफिस, खुली मस्ती, पैसा खर्च करने की नवीनतम तरकीब ढूँढते हैं। इन्हें दो भागों में विभक्त किया जा सकता है। (1) *आभ्यांतरिक/अंदरूनी*: इस श्रेणी में अधिकांशतः सरकारी महकमे के टॉप मोस्ट लोग आते हैं। जो कहलाते तो हैं लोक सेवक, बकायदा सरकार इन्हें सभी सुविधाएं देती है। नौकरी के दरमियान शायद इन्हें खुद के जीवन निर्वाह पर कौड़ी भी खर्च करनी पड़ती हो, परन्तु लोक सेवक के दायित्व को इन्होंने कभी निभाया हो सूचना मिलना दुर्लभ है। हां द्रव्य सेवक की छवि इन्होंने अपनी ज़रूर बना ली है।
(2) *बाह्य*: लोकतन्त्र में लोक सेवक की संकल्पना को चरितार्थ करते हुए यह लोग अवश्य दिख जाते हैं। विद्यालयों के निर्माण के माध्यम से, पीड़ित को न्याय दिलाने के मामले में, काम को त्वरित गति से निपटाने के मामले में। लोगों के बीच उपस्थित होकर। समस्याओं के निस्तारण हेतु उन्हें ज्ञान बांटकर। लब्बो लुआब इन्हें इन्सान मानने में मन मसोसेगा नही।
5.*स्वतः की विकास में दिलचस्पी*: यह अतुलनीय व्यक्तिव के लोग हैं। इन्हें इतिहास के पन्नों में दर्ज़ होने की भूख होती है। अभावग्रस्त समाज को सक्षम बनाने में यह अपना पूरा जीवन खपा देते हैं। देश की प्रगति के लिए समाज में भ्रातृत्व का होना आवश्यक है इसलिए यह प्रयास करते हैं कि देश में नफ़रत की बजाय प्रेम, सहचार्य बढ़े। ताकि देश की प्रगति के लिए परस्पर सहयोग की भावना में कोई खटास न आए। इस पुनीत कार्य को वही पूरा कर सकते हैं जिन्होंने अपने चेतन को विश्राम दिया और अवचेतन को कार्य पर लगाया।
चेतन मन को वाणी विलासिता यानि मॉडलिंग लाभ के लिए प्रयोग किए जाते हैं। आम जन मानस के सच्चाई, अल्प आवश्यकताओं और सीधेपन का प्रयोग उद्योगपति अपने दूरगामी लाभ के लिए करता है। चुनांची वर्तमान समय में राजनीति को भी व्यवसाय ही बना दिया गया है फलस्वरूप गरीबों को आपदा में झोंक कर ख़ुद के लिए अवसर तलाश किए जा रहे हैं। *अमेरिकन मनोवैज्ञानिक अब्राहम मसलो* का मत यही है, आज तक इनके विचारों को कमतर आंकने का दुस्साहस किसी ने नही किया।
*गौतम राणे सागर*
राष्ट्रीय संयोजक,
संविधान संरक्षण मंच।
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