बीजेपी (भ्रष्टाचार जननी पार्टी) अपने भ्रष्टतम चरित्र के खुलासे से डरती है,घोटाले का पर्दाफाश करने वाली हर आवाज़ को दबाने की फिराक में रहती है, जिस संस्था से उसके पापों का भंडाफोड़ होने का भय सताने लगे उसे बर्बाद करना इसकी प्राथमिकता रही है। सरकार का यह क़दम अस्वीकार है। ख़ासतौर से एससी/एसटी, पिछड़े व मुस्लिम बुद्धिजीवियों से इतनी अपेक्षा की जा सकती है कि वह चयन करें कि आतताई एजेंडे को व्यंगात्मक बाणों से छिद्रांवेषण करने का हमारा प्रयास देश के मूलभूत मुद्दों से भटकना है या नही? नीति शास्त्र यही सीख देता है कि जो विमर्श समाज में विघटन पैदा कर सकता है उस बिन्दु को बहस से जितना दूर रखा जा सके, दूर रखने की कोशिश करनी चाहिए।
जो कौम अल्पसंख्यक है और ख़ुद के अल्पतंत्र की सत्ता स्थापित करना चाहते हैं वह हमेशा बहुसंख्यक समाज को बाटने की दृष्टिकोण से कोई न कोई बखेड़ा खड़ा करने की फितरत में रहते हैं। यह उनके साज़िश का अंग है। क्या हमारे तथाकथित विद्वानों को इस बखेड़े की अग्नि में कूदना चाहिए? बहुसंख्यक समाज के मनीषियों की जिम्मेदारी है कि वह समाज को जागरूक करे कि सरकार ने देश के बजट में हमारे उत्थान के लिए कितने धन का आवंटन किया है। कौन कौन सी योजना चल रही है उससे समाज के लोगों को आर्थिक सहायता मिलेगी या नही? दुनिया को दिखाने के लिए ही सही सरकार को देश में निवास कर रहे विविधता वाले समाज के लिए बजट में कुछ न कुछ प्राविधान करना ही पड़ता है। ऐसा न करने पर मामला यूएनओ में उठ सकता है। परोपकारी व छद्म समाजवादी चेहरे नुच सकते हैं। सरकार के पक्षपाती दृष्टिकोण का सबके समक्ष खुलासा हो सकता है। जानकारी के अभाव या आलस्य की प्राथमिकता के कारण सरकारी बजट होने के बावजूद कमज़ोर व गरीब लोगों की हम मदद नही कर पा रहे हैं। अंततः यह बजट खर्च न होने की दशा में वापस हो जाता था, दूसरे वर्ष इस बजट में भारी कटौती कर दी जाती है। यह सब अल्पतंत्र की सत्ता के रणनीति के हिस्से हैं।
राजनीतिक दल के लोग क्षेत्र में तभी सक्रिय होते हैं जब चुनाव नजदीक आते हैं। यानि यह बरसाती मेढ़क की तरह टर्र टर्र करने पहुंच जाते हैं। हर गांव में इन्हें दो या तीन कार्यकर्ता मिल जाते हैं। इसी से काम चल जाता है। लेकिन हमारे समाज के शिक्षकों का दायित्व यह है कि वह गांव गांव जा कर देखें कि क्या गांव के प्रत्येक घर से बच्चे या बच्चियां स्कूल जा रहे हैं कि नही, यदि नही तो क्यों वह स्कूल तक नही पहुंचा पा रहे हैं? स्कूल तक वह पहुंचे उनकी मदद कैसे की जा सकती है? यह कार्य तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है। विश्वविद्यालय, पीजी व डिग्री कॉलेज के शिक्षक सरकार द्वारा संचालित कार्यक्रमों का गहन अध्ययन करें। कार्यक्रमों के सफ़ल संचालन हेतु आवंटित बजट पर्याप्त है या नही? विश्लेषण करें बजट अपर्याप्त होने की दशा के पीछे सरकारी मंशा क्या है, इसका खुलासा करें कि शिक्षा, स्वास्थ्य के लिए कितना कितना बजट होना चाहिए। समुचित बजट की व्यस्था न करने के पीछे सरकार की साज़िश क्या है। यह जानकारी उन्हें माध्यमिक शिक्षकों से साझा करनी चाहिए। माध्यमिक शिक्षक की जिम्मेदारी है कि वह सहायक अध्यापकों की सहायता से ग्रामीणों तक यह जानकारी पहुंचाई जाए। उन्हें ख़ुद के मूलभूत अधिकारों के प्रति शिक्षित किया जाय।
सरकारी कार्यक्रम संचालन में हो रही लूट को रोकने के लिए उन्हें जानकर बनाया जाय। शांतिपूर्ण आंदोलन करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाय। अगुआई के लिए उन्हीं के बीच से नेतृत्व पैदा किया जाय। लिंग और भग तलाशने में समय बर्बाद कर बखेड़ा व बवंडर बनाकर शैतानों को मज़बूत करने से बचने की जरूरत है। जब मां बाप ने कठिन परिश्रम से हमें पढ़ाया है, बाबा साहेब डॉ आंबेडकर द्वारा स्थापित आरक्षण ने हमें आजीविका का संसाधन उपलब्ध कराया है। स्वाभिमान की जिन्दगी दी है। तब हमारी नैतिक जिम्मेदारी बनती है जिस समाज में हमने जन्म लिया है उसे भी काबिल बनाने की हम ईमानदार कोशिश करें।
हम तथागत गौतम बुद्ध, ज्योतिबा फूले, बाबा साहब डॉ आंबेडकर और साहब कांशी राम के अनुयाई हैं, वाणी विलासिता के बरक्स, मन और कर्म को लॉकर से निकालकर काम पर लगाना चाहिए। स्वयंभू प्रणेता बनने के बरक्स समाज को बड़े पैमाने पर ज्ञानवान, शीलवान, ऊर्जावान अंततः उन्हें स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनाने पर अपनी शक्ति लगाएं ताकि ऐरु गैरू नत्थू खैरे कोई भी उन्हें ढ़ोल की तरह न गांव, खलिहान, कस्बा, शहर, बाजार, हाट, सड़क, गली, चौराहे यहां तक विश्वविद्यालयों में बजाने का दुस्साहस कर सके। किसी के लिंग या भग का रूप क्या है, पानी निकलता है या नही निरर्थक विमर्श पर मिट्टी डालें। दुश्मन से जीत के लिए आवश्यक है या तो हम शेर की तरह जीत के प्रति आत्म विश्वास से लबरेज़ हों या फिर भेड़ियों की तरह झुंड में रहना शुरू करें।
*गौतम राणे सागर*
राष्ट्रीय संयोजक,
संविधान संरक्षण मंच।
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