बुद्ध का विशेष पूजन कर की भारत - थाई सम्बन्धों के मजबूती की कामना,तीन दिवसीय पवित्र बुद्ध धातु शोभायात्रा का हुआ समापन
कसया, कुशीनगर। वाट थाई मोनेस्ट्री कुशीनगर की ओर से आयोजित तीन दिवसीय 14 वें पवित्र बुद्ध धातु शोभायात्रा का मुकुट बन्धन चैत्य (रामाभार स्तूप) परिसर में बुद्ध का बौद्ध श्रद्धालुओं के विशेष पूजन अर्चन के साथ समापन हो गया। इस अवसर पर सैकड़ों लोगों को दान दिया गया।
शुक्रवार की सुबह महापरिनिर्वाण मंदिर में तथागत बुद्ध का पूजन अर्चन करने के पश्चात बुद्ध धातु यात्रा निकली। शोभा यात्रा में भगवान बुद्ध का पवित्र धातु अवशेष रथ पर रखी गई थी। यात्रा मुकुट बन्धन चैत्य (रामाभार स्तूप) पहुंची। जहां स्तूप के समक्ष बुद्ध की लेटी प्रतिमा स्थापित की गई और विधि - विधान से थाई भन्ते पी संजीत महातीराचान के निर्देशन में भिक्षुओं और थाईलैंड सहित कई देशों के श्रद्धालुओं ने पूजन किया और और विश्व शांति और भारत - थाई सम्बन्धो की मजबूती की प्रार्थना की। इस यात्रा से कुशीनगर बुद्धमय हो गया। संघ दान दिया। इसके पश्चात गरीबों, जरूरतमन्दों व स्कूली बच्चों को कम्बल, वस्त्र, खाद्य आदि दान दिया। इससे पूर्व
थाई मोनेस्ट्री के मुख्य मंदिर में बौद्ध भिक्षुओं ने थाई चैत्य में स्थापित स्वर्ण आभायुक्त बुद्ध धातु अवशेष का विशेष पूजन किया गया और मोनेस्ट्री परिसर में महाराजा भूमि बोल अदुलयदेज को श्रद्धांजलि दी।
पूजन में थाईलैंड की राजदूत पटारत होंगटोंग, थाईलैंड के पोंग्रिथ श्रीस्मिथ, व भिक्षुओं ने भन्ते पी. सोमपोंग, पी. सोंगक्रान आदि शामिल रहे। भन्ते पी. सोमपोंग ने बताया कि तथागत की महापरिनिर्वाण स्थली कुशीनगर वैश्विक तीर्थ स्थल है। इस कार्यक्रम से भारत व थाई सम्बन्धों को मजबूती मिलेगी।शोभा यात्रा का कार्यक्रम मंदिर की तरफ से विगत 14 वर्षों से आयोजित किया जाता है। इससे पूर्व थाईलैंड के कलाकारों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम और मनोहारी नृत्य प्रस्तुत किया जो आकर्षण का केंद्र बना रहा। आकर्षक ढंग से सजे कलाकारों की तरफ से प्रस्तुत किया जा रहा नृत्य थाईलैंड के उत्तरी भाग का प्रमुख मशहूर नृत्य है।
इस अवसर पर कुशीनगर भिक्षु संघ के अध्यक्ष भदंत एबी ज्ञानेश्वर, मिस्टर थुंगरेश स्मित , डॉ रेनू स्मित, भिक्षु शील प्रकाश, भंते महेंद्र, भंते नंद रतन, भंते अशोक, भंते उपाली, भिक्षु विनय कीर्ति,अंबिकेश त्रिपाठी, ओमप्रकाश कुशवाहा, विवेक गोंड, सूरज यादव, गौतम शर्मा आदि सहित धार्मिक यात्रा में भारत, थाईलैंड के अलावा कई देशों के बौद्ध भिक्षु, उपासक और उपासिकाएं शामिल हुईं।
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