कर्नाटक में होगा लोटस ऑपरेशन
लोटस ऑपरेशन के तीन सेनापति। दो ने अपने अपने दायित्वों का बखूबी निर्वहन किया है। अब बारी है प्रवीण सूद की। इन्हें लोटस ऑपरेशन को अंजाम देना है। नवम्बर 2018 में मध्य प्रदेश चुनाव में बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी। चुनावी नतीजे में कांग्रेस सत्ता से एक क़दम दूर खड़ी थी तो बीजेपी 7 क़दम दूर थी। 230 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस को 114सीट हासिल हुई तो बीजेपी को 109 सीट से संतोष करना पड़ा। आज़ाद विजयी उम्मीद 5 की संख्या में और बीएसपी के 2 सदस्य विधान सभा पहुंचने में कामयाब रहे।
एमपी में हुए 2018 के चुनाव में जीत से एक तरफ़ कांग्रेस का सीना 56' चौड़ा हुआ था, तो दूसरी तरफ बीजेपी का 56' सीना पिचक गया था। जहां आज़ाद विधायक 2013 की तुलना में 2सीट अधिक जीतने में कामयाब रहे वहीं बीएसपी 4सीट में दो सीट गवां कर दो सीट जीत कर अपने होने का एहसास करा रही थी। कमल नाथ ने बीएसपी और आजाद विधायकों की मदद से एमपी का नाथ बनने में कामयाबी हासिल कर ली परन्तु कीचड़ वाले कमल को पूरी तरह निचोड़ पाने में असफल रहे। कमल कीचड़ से आहार ग्रहण करता रहा, ऋषि कुमार शुक्ला ने जैसे ही जल की व्यवस्था की कमल खिल उठा। नतीज़ा यह निकला कि विश्व गुरू बनने निकले शख़्स को कमलनाथ का एमपी का नाथ बनना गंवारा नही हुआ। वह तो कमल की हुक़ूमत का ख्वाहिश मंद था। आवश्यकता थी कमल को कीचड़ से बाहर लाने और कमलनाथ के नाक में नथ लगाने की।
विश्व गुरू की राह आसान करने के लिए किसी ऋषि की ज़रूरत थी जो कमल और नाथ को अलग कर दे। ऋषि कुमार शुक्ला एमपी के डीजीपी थे। डीजीपी रहते कमलनाथ को सत्ता में आने से रोक तो नही पाए लेकिन सीबीआई निदेशक बनते ही ज्योतिरादित्य सिंधिया के गले का नाप तैयार कर लिया। निर्णय सिंधिया को करना था कि वह बंद गले का सूट पहनने को तैयार हैं या फिर गले में फंदा डालना पसन्द करेंगे। पीठ में छूरा भोकने का सिंधिया परिवार का जगजाहिर इतिहास रहा है। चाहे वह स्वतन्त्रता आन्दोलन का वक्त रहा हो, गरीबों के उन्नयन हेतु प्रिवी पर्स ख़त्म करने का अभियान, हर जगह यह कुल स्वार्थी भूमिका में ही रहा। आत्मकेंद्रित रहा।
ऋषि कुमार शुक्ला के प्रवचन का ऐसा प्रभाव पड़ा कि बेचारे छोटे सिंधिया मिमियाने लगे। कांग्रेस का चोला उतार फेकना बेहतर समझा। सिंधिया को गले का नाप तो देना ही था चाहे वह कोट के लिए गले का नाप देते या फिर रस्सी के लिए। इन परिस्थितियों में इस परिवार ने बंद गले के कोट का नाप देना ही अपनी प्राथमिकता में रखा है। छोटे सिंधिया के प्रयास से कांग्रेस के 17 विधायकों को कमलनाथ से विद्रोह करने को तैयार भी कर लिया गया। एमपी में विद्रोह की हवा ही नही आंधी चल रही थी, आंधी के थपेड़ों ने कमल को जगाया तो लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। उनके 7 विधायक सातवें आसमान पर पहुंच चुके थे। मार्च 2020 में कांग्रेस के 7 विधायक कर्नाटक के चिक्कामगलुर में डेरा डाल कर बैठ गए थे।
ऋषि के आशिर्वाद से शिवराज सिंह चौहान ने चौथी बार एमपी के मुख्य मंत्री पद की शपथ ली। छोटे सिंधिया के समर्थक 23 विधायकों ने विधान सभा से इ इ इस्तीफ़ा दे दिया। कमल नाथ को सत्ता से बेदखल करने में सहयोग करने के एवज में छोटे सिंधिया को केन्द्र सरकार में वजीर की भूमिका पर आरूढ़ कर दिया गया। ऋषि कुमार शुक्ला ने विश्व गुरू की परीक्षा बेहतरीन नंबरों से उत्तीर्ण कर ली।
अक्टूबर 2019 में महाराष्ट्र विधान सभा के लिए चुनाव हुआ। 288 सदस्यों वाली विधानसभा में 17 सीटों के नुकसान के साथ 105 सीट हासिल कर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। 7सीटों के नुकसान के साथ शिवसेना दूसरे नम्बर की पार्टी पर काबिज़ रही। शिवसेना को बार बार घटना याद आने लगी कि किस तरह बीजेपी महाराष्ट्र में शिवसेना के छोटे भाई की भूमिका से निकलकर आंख तरेरने लगी थी। शायद उद्धव ठाकरे इसी वक्त की प्रतीक्षा में थे कि कब बीजेपी से अपमान का बदला चुकाया जा सके! वह सतर्क भी थे कि गठबन्धन तोड़ने का आरोप उन पर न लगे। शुरू हो गया 50-50 के फॉर्मूला की बयानबाजी। शिवसेना ने शर्त रख दी मुख्य मंत्री का कार्यकाल ढ़ाई ढ़ाई साल का होना चाहिए। शुरूआत में शिवसेना को अवसर मिलना चाहिए।
शिव सेना को अच्छी तरह भान था कि बीजेपी शर्त मानने को राजी नही होगी। यहीं से सियासत ने रंग बदलना शुरू किया। शिव सेना बीजेपी से दूरी बनाने लगी तो एनसीपी, कांग्रेस शिव सेना के क़रीब आने लगे। उद्धव ठाकरे के सरकार बनने की अटकलें तेज हुई। एनसीपी के 54, कांग्रेस के 44 विधायकों के सहयोग से उद्धव ठाकरे सरकार बनने की संभावना प्रबल हो गई थी। देवेन्द्र फडणवीस ने चरखा दांव लगाया निशाचर की भांति अजीत पवार को अपने डिप्टी के रूप में साथ लेकर 23 नवम्बर 2019 की सुबह 6बजे राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के पास प्रकट हो गए। क्रमशः मुख्य मंत्री और उप मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण कर लिया।
कई विधायकों को अगवा किया गया था। कुछ विधायकों को गुड़गांव पार्सल करने में सफ़लता मिल गई लेकिन कुछ को सांता क्रूज एयरपोर्ट के सामने होटल सहारा स्टार में पैक करना पड़ा। शिव सेना की कामगार शाखा की दृष्टि पड़ गई। खेल खटाई में मिल गया। सूचना उद्धव तक पहुंच गई। उनकी सक्रियता से सहारा स्टार में पैक किए गए विधायकों को एक नाथ शिंदे की मदद से उनके उद्गम स्थान पर पहुंचा दिया गया। कैद पक्षियों के घोंसले में पहुंचते ही देवेन्द्र की फड़फड़ाहट शुरू हो गई। फलस्वरूप उन्होंने फ्लोर टेस्ट की जहमत ही नही उठाई 26 नवम्बर को त्यागपत्र देकर नई सरकार के लिए मार्ग प्रशस्त कर दिया। 28 नवंबर को उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में महा विकास आघाड़ी की सरकार बन गई। यहीं से ख़ोज शुरू हुई नए सीबीआई निदेशक की। सुबोध कुमार जायसवाल महाराष्ट्र के डीजीपी थे, तख्ता पलट की भूमिका में इनसे बेहतर नायाब हीरा ढूढना असंभव था।
महाराष्ट्र में चुने गए हर विधायक के जायज़ नाजायज सभी हरकतों से यह वाकिफ थे। महाराष्ट्र सरकार के तख्ता पलट में इनका ज्ञान बड़े काम का था। जिन एक नाथ शिंदे के भुजाओं के प्रदर्शन से फडणवीस को इस्तीफ़ा देने पर मजबूर होना पड़ा था एसके जायसवाल ने उन्हीं की जन्म कुण्डली खंगाल ली।
विश्वगुरू इतनी आसानी से अपनी हार पचा लेंगे कैसे संभव है? इन्हीं आईने की रोशनी में एसके जायसवाल को सीबीआई निदेशक बनाकर महाराष्ट्र में तख्ता पलट की पटकथा लिखी गई। सुबोध कुमार जायसवाल ने भी तख्ता पलट के अभिनय में जान फूंक दिया। जून 2022 में आखिरकार शिवसेना के दो फाड़ हो ही गए। मजबूरन उद्धव ठाकरे मुख्य मंत्री आवास से बड़े बेआबरू होकर मातोश्री प्रस्थान कर गए।
ऐसा शायद इसीलिए होता है कि जिस राज्य से बीजेपी को हार मिलती है वहीं के डीजीपी को सीबीआई निदेशक बनाकर वहां की सरकार का तख्ता पलट करने की आधारशिला रख दी जाती है। ऋषि कुमार, सुबोध कुमार ने अपनी भूमिका को जीवन्त कर दिया। क्या प्रवीण सूद कर्नाटक में कामयाब हो पायेंगे। विश्व गुरू चुप बैठेंगे और सूद से ब्याज वसूल पायेंगे?
*गौतम राणे सागर*
राष्ट्रीय संयोजक
संविधान संरक्षण मंच।
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