कुशीनगर: कुशीनगर पुलिस ने अपनी लापरवाही को छुपाते हुए खुलेआम घटना बताकर प्रशंसा बटोर रही है, लेकिन इस खुलासे के बाद कई सवाल उठ रहे हैं, जैसे कि अगर पुलिस 15 मई को गायब हुई युवती को ढूंढने में असफल रही होती और युवती की माँ ने 12 दिन पहले दी गई शिकायत पर ऐसी सक्रियता दिखाई होती तो रिंकी की जान बच सकती थी।
पुलिस ने बताया कि रिंकी राजभर (मृतक) गोरखपुर के पीपीगंज थाना क्षेत्र के मूइधरपुर बढैया चौक निवासी जवाहर पासवान के पुत्र विरेन्द्र पासवान से प्रेम करती थी. और जो कुशीनगर में एक निर्माण कंपनी में काम करता था.विरेन्द्र रिंकी से शादी करना नहीं चाहता था क्योंकि वह पहले से शादीशुदा था. 15 मई को रात्रि आठ बजे रिंकी को चाकू से गला रेतकर मार डाला. पुलिस प्रशासन की घोषणा में नहीं बताया गया है कि रिंकी और विरेन्द्र ने पहली बार कब और कैसे मिले और उन दोनों के बीच कब से प्रेम-प्रसंग चल रहा था. कुशीनगर में विरेन्द्र अक्सर रिंकी से मिला. यह भी सवाल उठता है कि रिंकी कब से विरेन्द्र पर शादी करने के लिए दबाव डाल रही है.
मृत रिंकी को पता नहीं था कि विरेन्द्र पहले से शादीशुदा था. अगर उसे इसकी जानकारी थी, तो कब? 15 मई को रिंकी ने विरेन्द्र से कब और कहा? पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार, रिंकी की हत्या 15 मई को रात लगभग आठ बजे हुई थी, तो फिर रिंकी और विरेन्द्र दिन भर कहां रहे? विरेन्द्र ने रिंकी की हत्या बताई और फिर बताया कि रिंकी का शव बुद्धनगर के पथिक निवास के पीछे स्थित एक कालोनी के निर्माणाधीन मकान में कब और कैसे पहुंचा. क्या विरेन्द्र ने रिंकी की लाश को निर्माणाधीन घर में अकेले ही भेजा था या कोई और अमीर इसमें शामिल था?क्योंकि रिंकी के परिवार के अनुसार, रिंकी शारीरिक रूप से बीरेंद्र से अधिक मजबूत थी, इसलिए कातिल अकेले रिंकी को नियंत्रित नहीं कर सकता था.
दूसरी बात यह है कि भले ही लाश सुने पड़े मकान में मिली हो, लेकिन उसमें जाने का रास्ता आबादी वाले मकान से कुछ ही कदम पहले है और उसके सामने भी एक रिहायशी मकान है.ऐसे में, अगर बीरेंद्र ने अकेले उसकी हत्या की होती तो मृतका निश्चित रूप से चीख-चीखकर रोई होती, जो सामने और बगल के घर में सुनाई देनी चाहिए थी. मृतका की माँ और चाची ने बताया कि रिंकी के गायब होने के तीन या चार दिन बाद उनके फोन पर एक खतरनाक फोन आया था.
जिसमें रिंकी को समाप्त करने का अनुरोध किया गया था.जब ये लोग अपने सभासद के साथ कुशीनगर पुलिस चौकी गए और पुलिस अधिकारी से बताया कि वह रांग नंबर है, तो दारोगा ने दो बार तीन बार उस नंबर को ट्राई किया, लेकिन नंबर नहीं मिला.
उस संख्या की जांच भी पुलिस ने की होती तो कहानी कुछ अलग होती.लेकिन पुलिस को कटघरे में डालने वाले कई स्पष्ट प्रश्न हैं. पुलिस इसके बावजूद इन सभी प्रश्नों और अपनी लापरवाही पर पर्दा डाल रही है और घटना के खुलासे का दावा कर रही है.अभी भी कई ऐसी घटनाओं को पुलिस ने नजरअंदाज किया है, जिससे पीड़ित उच्च अधिकारियों से लेकर न्यायालय में जाना पड़ा है.
दिनेश जायसवाल की रिपोर्ट।
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