कभी उ.प्र. भी तमिलनाडु की तर्ज़ पर सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति आन्दोलन की राह पर चौकड़ी भरता नज़र आ रहा था। मनुवादी ताकते कहने पर मजबूर थी कि उप्र की राजनीति ने भी तमिलनाडु का सिंड्रोम अख्तियार कर लिया है। अब यहां कांग्रेस और भाजपा की दाल गलना मुश्किल है। फिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि दोनों दल हासिये पर आ गए? नब्बे का दशक जब कांग्रेस प्रत्येक विधान सभा मे अपना जनाधार खो रही थी तभी भाजपा अपना जनाधार बढ़ाती जा रही थी। भाजपा ने जहां साम्प्रदायिक सद्भाव ख़राब करने वाले मुद्दों को अपना हथियार बनाया वहीं कांग्रेस के धर्मनिरपेक्ष छवि को बसपा ने काफ़ी हद तक डेंट कर दिया था।
यह दौर था कांशीराम जी के राजनीति में उभार का। उन्हें ज्ञात था कि धर्म की चासनी को बेस्वाद करने के लिए लोगों के अन्दर शासन और प्रशासन में भागीदारी की भूख पैदा करनी पड़ेगी। उन्होंने नारे बुलन्द किए;
*जो बहुजन की बात करेगा, वह दिल्ली पार राज करेगा*
यह नारा नही क्रान्ति का बिगुल था एससी/एसटी,ओबीसी और धार्मिक अल्पसंख्यक को एकत्रित करने का। सत्ता में वह भी पहुंच सकते हैं विश्वास के संचार का। इस उद्घोष में बहुजन को खुद पर विश्वास करने का एक छिपा हुआ संदेश था। और सदियों से पाखण्ड के भंवर में फंसा कर रखे गए लोगों को अपील करता था कि उनकी दरिद्रता भरी ज़िन्दगी के लिए किसी अलौकिक शक्ति का श्राप नहीं बल्कि धरती पर इंसान की शक्ल में विचरण करने वाले नरभक्षियों के छल कपट की देन का परिणाम है।
हमारे देश में जो लोग खेतों का सीना चीर का अनाज पैदा करते हैं विडंबना है कि वह स्वयं भूमिहीन है। कांशी राम को भान था कि क्रान्ति के लिए भूखे और भूमिहीन लोग ही आगे आयेंगे। यथा उन्होंने नारा बुलंद किया कि
*जो ज़मीन सरकारी है, वह ज़मीन हमारी है*
आम जन के मानस पटल पर यह नारा संपत्तियों पर अधिकार होने का आभास कराने लगा। भूमिहीनों को प्रतीत होने लगा कि उनके पास भी अपनी ख़ुद की ज़मीन होगी। ख़ुद के खेत में वह हल चलाएंगे। खुद के खेत में अपना घर बनायेंगे। छत्रपति साहू जी महाराज द्वारा संचालित किया गया वतनदारी का सपना पूरा हो जाएगा। साहूजी महाराज के समय में बलूतदारी प्रथा चलती थी। खेत के काम के बदले जमींदार उन्हें अपने खेत में छप्पर डाल कर रहने की अनुमति दे देता था। कांशी राम साहब द्वारा दिया गया यह नारा भूमिहीन लोगों को आंदोलित करने के लिए पर्याप्त था। भूमिहीन आंदोलित हुए भी। बसपा का जनाधार यहीं से प्रारब्ध हुआ।
प्रशासन में भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए भी कोई न कोई नारा तो गढ़ना ही था। कांशी राम जी की राजनीतिक दूरदर्शिता बेजोड़ थी। वह अन्वेषण में विश्वास करते थे। कोई शब्द बोलने से पहले उसे तौलते थे कि इसकी मारक क्षमता क्या है। वह परीक्षण करते थे कि कहीं ऐसा तो नही कि जो मिसाइल हम दुश्मन पर दागने जा वह घुमड़ कर या लौट कर हम पर ही न वार कर दे। होता भी यही है कि अगर आपका लॉन्चिंग पैड मज़बूत नही है तब मिसाइल आगे जाने की बजाय पीछे ही हमला बोल देती है। अतएवं उन्होंने अचूक मारक क्षमता का मिसाइल छोड़ा जो आसमान में गूंजने वाली प्रतिध्वनि के साथ आगे बढ़ रहा था, यथा;
*वोट से लेंगे सीएम पीएम, मंडल से लेंगे एसपी डीएम*
यह मिसाइल ठीक निशाने पर जाकर लगा। मनुवादियों के पेट में मरोड़े उठने लगी। इसकी मारक क्षमता इतनी बेजोड़ थी कि 1990 में वीपी सिंह को भी मंडल के आवरण में अपनी ज़मीन तलाशने की गरज से लम्बे समय से बर्फ की सिल्ली के नीचे दबाई गई मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू करने की घोषणा करनी पड़ी।
कांशीराम जी के तरकश में तीरों की कोई कमी तो थी नही। तरकश से एक और तीर निकाला छोड़ दिया आसमान में,मनुवादियों के लिए खतरे की घंटी बजने लगी। नारा सुनकर और उसकी ऊपर की ओर बुलंद होती आवाज़ व कोलाहल से मनुवादियो के कान बजने लगे। चारों तरफ एक ही अनुगूंज थी;
*वोट हमारा राज तुम्हारा, नही चलेगा नही चलेगा*
इस अकाट्य अस्त्र ने दोनों मनुवादी दलों को इकट्ठा कर दिया। दोनों दलों मतलब कांग्रेस और भाजपा को। राम मन्दिर व बाबरी मस्जिद विवाद को अनावाश्यक लम्बा खींचते हुए आडवाणी ने रथ यात्रा निकाल दी। जब धर्मांधता अपने शिखर के प्रचंडता पर थी। तब बसपा अपने शैशवावस्था में थी फलस्वरूप धर्म की चासनी में लपेटकर सियासत करने वाले लोगों ने आम जन मानस की धार्मिक भावनाओं का ख़ूब दुरूपयोग किया। 1991 में पहली बार भाजपा ने बहुमत की सरकार बनाई। विध्वंस के रथ पर सवार भाजपा ने 6 दिसम्बर 1992 को संविधान और कानून की धज्जियाँ उड़ाते हुए बाबरी मस्जिद को शहीद कर दिया।
उप्र ही नहीं अपितु सम्पूर्ण भारत में अफरा तफरी का माहौल खड़ा हो गया। मुलायम सिंह यादव के हांथ पांव फूलने लगे। आखिर उन्हें अपनी राजनीति अवसान पर दिखने लगी। कांशी राम साहब की दूरदर्शिता और मनुवादियों के सियासी जड़ों में गर्म जल डालने की प्रतिबद्धता ने दोनों बहुजन नायकों को एक मंच पर आने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। जिस समय पूरे देश में राम मंदिर नाम से अंध विश्वास और अंध भक्ति का चारों ओर बोल बाला था उस वक्त मनुवादियों की आंखों में आंखें डालकर और उनके सबसे बडे़ आराध्य को चुनौती देने का जज़्बा साहब कांशी राम जी में था। उन्होंने मनुवादियों की सबसे बड़ी ताकत पाखण्ड और उनके नायक राम के मार्ग में खड़े होकर कहा;
*मिले मुलायम कांशी राम, हवा में उड़ गए जय श्री राम*
कांशी राम जी समझते थे कि यदि मुसीबत दरवाज़ा खटखटाए तब दरवाज़ा खोल कर खड़े हो जाएं और उसकी आंखों में आंखें डालकर कहें कि मैं तुझसे अधिक ताकतवर हूं। हे! मुसीबत या तो अपना मार्ग बदल ले या कब्र में आराम करने को तैयार हो जाओ। भाजपा को सत्ता से दूर रखने में वह बसपा सफ़ल हो गई जो किशोरावस्था की दहलीज पर सिर्फ़ दस्तक दे रही थी।
शीर्षक की ओर मुख करते हैं। बहन मायावती ने कांशी की विरासत संभाली। 20-20 ओवर के मैचों में धुंआंधार बल्ला घुमाते हुए चौका छक्का जड़ा कर स्कोर बोर्ड को चलायमान रखा परन्तु जैसे ही 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार यानि टेस्ट मैच एंट्री लिया उनकी बैटिंग तकनीकि की सारी खामियां उभरकर सामने आ गई। बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय का दम्भ भरने वाली पार्टी सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय के कीचड़ में धंस गई। जहां से आज तक निकलने का प्रयास जारी है परन्तु वहां से निकलने की बजाय और अधिक गहरे डूबती जा रही हैं। खुद तो डूब ही रही हैं बहुजन समाज को भी डुबाने में कोई कोर कसर उठा नही रहने देना चाहती हैं। तब से लेकर अभी तक सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय की सड़ी गली लाश को वह अपने कंधों पर ढोती जा रही हैं। बदबूदार वस्तु को अपने कंधों पर लेकर चलने वाला नेता लोगों को आकर्षित तो बिल्कुल नही कर पाएगा?
भैया टीपू की बात भी होनी चाहिए। टीपू हां वही भैय्या अखिलेश ही। मुलायम सिंह यादव जी ने उन्हें प्रचण्ड बहुमत की सरकार सौंपी थी। जिसे वह आज लुटाएं बैठे हैं। इन्हें भी अपनी पहचान का अहसास नही है कि यह भी शूद्र हैं। जबकि इन्हीं की आंखों के सामने मुख्य मंत्री आवास धुलाकर बताया गया कि आप एक शूद्र हो, शूद्र। इन पर फ़र्क कहा पड़ने वाला था, मनमौजी लोग हैं। सब घटना शीघ्र हाई विस्मृत हो जाती है। इनका वही अभिनय अभी भी शुरू है। संगम स्नान की सोशल मीडिया पर फ़ोटो डालना क्या दर्शाता है, यही न कि आप तथाकथित द्विज़ बनने का यत्न कर रहे हैं? आपके ऐश्वर्य, ताक़त, विवेक के लाभ के लिए मनुवादी अंतर्जातीय विवाह स्वीकार कर लेंगे लेकिन जब भी संबंधी होने का अवसर उपलब्ध होगा आप दुत्कारे ही जाएंगे। आप कोई नई नजीर नही जिन्हें आप अपना आराध्य मानते हैं उन शंकर के साथ भी यही व्यवहार हुआ था।
माया और अखिलेश दोनों नेताओं ने अपने तैयार किए गए विकास रूपी योद्धा को चुनावी कुरुक्षेत्र में हमेशा उतारा है जहां वह दोनों होंठ घायल और जबड़ा तोड़े बैठे हैं फिर भी ऐंठन ऐसी कि उधड़ने का नाम ही नही ले रही है। इनकी समझ में ही नही आ रहा है कि आप इस लिए चुनाव नही हार हैं कि आपके कार्यकाल में विकास का कोई कार्य नही हुआ है। ताज एक्सप्रेस या लखनऊ एक्सप्रेस वे से आम नागरिकों का क्या लेना देना। संभव है आप दोनों को सुविधा शुल्क के नाम पर मोटी रकम मिल गई होगी परंतु किसान, मज़दूर, गरीब, बेरोजगार को एक्सप्रेस वे से क्या हासिल हुआ? दोनों की हार का बड़ा कारण ईवीएम तो है ही लेकिन अकेले ईवीएम ही नही है। इनकी अकर्मण्यता, बूथ लेवल का असंयोजन, कमज़ोर मुद्दो को चुनावी कुरुक्षेत्र में उतारना, सरकार के पापों पर प्रहार करने से बचना इनकी बड़ी कमज़ोरी है।
बार बार चुनाव में हारने वाले इन सेनापतियों के दम पर भविष्य में युद्ध जीतने की कल्पना आत्महत्या से इतर कुछ भी नही होगा। बहुजन समाज को नए विकल्प पर काम करने की आवश्यकता है। पाखण्ड का प्रतिकार पाखण्ड नही अपितु पूर्णाधिकार आन्दोलन है। हमें पूर्णाधिकार रूपी विशालकाय, अजेय योद्धा को मनुवादियों के संग्राम में उतारने की कोशिश करनी चाहिए। जीत सुनिश्चित है। हैं तैयार हम, आप?
*गौतम राणे सागर*
राष्ट्रीय संयोजक,
संविधान संरक्षण मंच।
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