माज़रत... गौतम राणे सागर

माज़रत*
  बकरीद की मुबारकबाद देने को मन मचल रहा है, व्याकुल हूं कितनी जल्दी लोगों को कह सकूं कि आप सभी के जीवन में बकरीद का मुबारक दिन ढेर सारी खुशियां लेकर आए। अफ़सोस! दिल मसोस कर रह जा रहा हूं। जैसे ही मुबारकबाद देने के लिए प्रसन्नता से आगे बढ़ता हूं वैसे ही अकबर नगर लखनऊ में बुलडोजर और पॉकलेन के शोर में दबती, बेघर हुए वहां के बच्चों की चीखें और चीत्कार दहलाकर कर रख देती है। फिर बैठ जाता हूं, थक कर, हार न मानने की ज़िद के बावजूद हार सा महसूस करता हूं। जब सूर्य अपनी डिग्री दिखाने को व्यग्र पारा को 47 डिग्री सेल्सियस से ऊपर ले जा रहा है, वातानुकूलित कमरे में बैठने पर भी गर्मी का एहसास हो रहा है; कल्पना करें जिनके घरों को बेरहमी के साथ ध्वस्त किया जा रहा है और उनके साथ इन्सानियत का रत्ती भर भी व्यवहार न हो तब वह इस भीषण गर्मी में यातना की किस विभीषिका को सह रहे होंगे?
      जहां क़रीब दो हज़ार घरों को तोड़कर दस हज़ार से अधिक लोगों को विस्थापन के लिए मजबूर किया जा रहा है वहां तो मातम की दारुण स्थिति है। आख़िर यह भी तो काइनात की ने'मत हैं फिर उन पर हंगामा है क्यों बरपा?
दिमाग़ से खुशी लोगों के खुशियों में शामिल हूं, होना ही पड़ता है, संबंधों को जीवित भी तो रखना है। दिल से उनके साथ खड़ा हूं जिन्हें नाज़ी मनोवृत्ति के क्रूर बेरहम हाथों से उनका गला घोंटा जा रहा है। शीघ्र ही लोकहित के आवरण में दस हज़ार लोगों को उजाड़ने की चल रही साज़िश का पर्दाफाश करने के लिए आन्दोलन का आगाज़ होगा।
मिरा क़ातिल है मेरा मुंसिफ है,
क्या मिरे हक़ में फैसला देगा?
*गौतम राणे सागर*
  राष्ट्रीय संयोजक,
संविधान संरक्षण मंच।

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