अकबर नगर, कभी ख़ूब आबाद था, अब बर्बादी झेलने को अभिशप्त है: गौतम राणें

अपील*
         लखनऊ शहर के बीच फैजाबाद रोड पर स्थित एक मोहल्ला है अकबर नगर, कभी ख़ूब आबाद था, अब बर्बादी झेलने को अभिशप्त है। कुकरैल नाले के बगल व सड़क के दोनो किनारे पर 1960 से भी पहले का बसा यह मोहल्ला था। यहाँ तकरीबन दो हज़ार से अधिक परिवार के लोग बसे हुए थे। नवाब अकबर अली ख़ान 1972 से 74 तक उप्र के महामहिम राज्यपाल थे। उन्हीं के कार्यकाल में यह ज़मीन यहां के निवासियों को आवंटित की गई थी। स्व हेमवती नन्दन बहुगुणा और स्व नारायण दत्त तिवारी जब उप्र के मुख्यमंत्री थे, ने लखनऊ विकास प्राधिकरण से निवासियों की सूची बनाकर इस क्षेत्र को संतृप्त करने का निर्देश दिया था। शहरी विकास योजना अधिनियम 1973 के तहत 1974 में लखनऊ विकास प्राधिकरण की स्थापना की गई यानि कि लखनऊ विकास प्राधिकरण की स्थापना के तकरीबन 15 वर्ष पूर्व से वह लोग यहां स्थापित थे जिन्हें आज उजाड़ा जा रहा है।
       महामहिम राज्यपाल नवाब अकबर अली ख़ान साहब की सदाशयता से प्रभावित होकर यहां के लोगों ने इस मोहल्ले का नाम अकबर नगर रख दिया था। आज कल एलडीए ने शायद शहर को ग्रीन जोन और रिवर फ्रंट के नाम से विकसित करने का योजना चला रखा है। नियमतः एलडीए को शहर के सौंदर्यीकरण के लिए यदि किसी भूमि की जरूरत होती है तब उस ज़मीन पर आबाद लोगों को उनकी भूमि अधिग्रहण करने से पहले उन्हें मुआवजा देना चाहिए था और छः महीने, साल भर का समय देना चाहिए था ताकि विस्थापित परिवार दूसरी जगह पुनर्स्थापित हो सके! इस मामले में मुआवजे की कोई प्रक्रिया नही अपनाई गई। न ही अधिग्रहण की अधिसूचना जारी की गई, सीधे उजाड़ने के लिए बुलडोजर की कार्यवाही। प्रतीत होता है कि एलडीए और सरकार ने इन्हें उजाड़ने की ज़िद कर ली थी।
           पीढ़ियों से रह रहे जिन परिवारों को जब मनमाना तरीक़े से उजड़ा जाता है तब जबरन विस्थापित होने की पीड़ा से अभिशप्त परिवारों की जो चीत्कार उठती है उससे आसमान भी कांप जाता है। यकीनन ध्वस्तीकरण की कार्यवाही से पुर्व यह अंदाजा लगा लिया गया था कि इनकी करुण क्रंदन व चीत्कार सहानुभूति बटोर सकती है लिहाज़ा यहां के लोगों की चीत्कार दबाने के लिए एलडीए और सरकार ने बुलडोजर और पॉकलेन की गड़गड़ाहट का पूरा इंतज़ाम कर रखा है। बुलडोजर और पॉकलेन के शोर में इन बेचारों की चीख पुकार भी दबा दी गई। यहां के तकरीबन दस हजार लोग अब बेघर हैं।
      इन्सानियत के नाते सुन्नी वक्फ बोर्ड को इनकी मदद के लिए हाथ बढ़ाना चाहिए। वक्फ की पड़ी ज़मीन पर इन्हें बसने का मौक़ा देना चाहिए। सभी मुसलमान भाईयों से अपील है कि इन्हें पुनः बसाने में इनकी मदद करनी चाहिए। धार्मिक मसलों की हमें अधिक जानकारी नही है यदि गुस्ताखी हो जाए तो माफ़ करें। इतनी अपील अवश्य करना चाहूंगा कि यदि उचित हो तो कुर्बानी के बदले इन बेखर लोगों को बसाने को वरीयता दें। यहां से उजाड़ी गई हिन्दू कही जाने वाली जातियां, जिन्हें छोटी जाति में रखा गया है उनको पुनर्स्थापित करने में भी उन लोगों को आगे आना चाहिए जिन्हें हिन्दू की पीड़ा अति द्रवित करती है।
            हम लोग विस्थापित पीड़ित परिवारों के सम्पर्क में हैं, जितना संभव है उनके साथ खड़े हैं। सरकार से अपेक्षा करना कितना उचित है,आप सब बेहतर जानते हैं। उसकी गुलाबी फ़ाइलों में सब चंगा है। यदि आप लोग यहां से विस्थापित किए गए परिवारों से व्यक्तिगत मिलकर उन्हें ढांढस बंधाएंगे और उनकी सहायता करेंगे तो उनके ज़ख्मों पर मरहम का काम करेगा। संभव है उनके टूटे विश्वास को बल मिले और आत्म संबल प्राप्त करने में वह सफल भी हो। विपत्ति में एक दूसरे के साथ खड़े होने उत्सुकता होनी चाहिए।
*गौतम राणे सागर*
  राष्ट्रीय संयोजक,
संविधान संरक्षण मंच।

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