25 जून 1975 भारतीय लोकतंत्र में गोल्डन बूट के रूप में जाना जायेगा। तथाकथित समाजवादियों और कच्छा बनियान गिरोह की संयुक्त साज़िश थी कि जिस समाज को उन्होंने अपनी सनक के मिथ्याभिमान की रक्षा के लिए अधिकारों से प्रवंचित कर रखा है, इंदिरा जी ने उन्हें विकास की मुख्य धारा जोड़ने का जो अभियान चलाया वह सफ़ल न हो पाने पाए। वस्तुतः प्रिवी पर्स उन्मोचन से कुपित रजवाड़े भी अवसर की तलाश में थे इंदिरा की सरकार को उखाड़ फेंकने का उन्हें कब मौक़ा मिले, विश्व की बड़ी ताकतों के पेंशन पर पल रहे मोरारजी देसाई और नानाजी देशमुख के हाथों की कठपुतली जे पी नारायन ने देश को तहस नहस करने का मन बना लिया था। 1971 में पाकिस्तान को धूल चटाने और नए देश बांग्लादेश निर्माण का जो अदम्य साहस इन्दिरा जी ने दिखाया था उससे अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड मिल्हौस निक्सन अति कुपित थे। पाकिस्तान के राष्ट्रपति याह्या खां साहब उनके दुलारे जो थे। खां साहब 14 दिन में भारत के हाथों मिली करारी हार की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर लेते हुए इस्तीफा दे चुके थे।
याह्या खां साहब की जगह जुल्फिकार अली भुट्टो को चीफ मार्शल लॉ एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त किया जा चुका था, वह उस वक्त न्यू यॉर्क में थे, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की मीटिंग में भाग लेने गए हुए थे, जो नही चाहते थे कि शेख मुजीबुर्रहमान को पाकिस्तान से आज़ाद किया जाए। वह पाकिस्तान की कैद में थे, निक्सन ने भुट्टो को हिदायत दे रखी थी कि मुजीबुर्रहमान को किसी भी हालत में रिहा न किया जाए। इतनी बड़ी जीत मिलने के बावजूद इंदिरा जी के समक्ष एक बड़ी कूटनीतिक समस्या खड़ी हो गई थी। वह जानती थी कि यदि कोई जुगत नही की गई तो मुजीबुर्रहमान का कोर्ट मार्शल कर देश द्रोह के चार्ज में उन्हें पाकिस्तान में फांसी दे दी जायेगी। इन्दिरा जी जानती थी कि अगर मुजीबुर्रहमान सही सलामत बांग्ला देश वापस नही पहुंचे तब वह जीती हुई बाज़ी भी हार जायेंगी।
इंदिरा जी को बेहतर तरीके से ज्ञात था कि यदि एक बार जुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान पहुंच गए तब उनसे वार्ता करना और मुजीबुर को सही सलामत बांग्ला देश वापस लाना मुश्किल ही नही नामुमकिन हो जायेगा। आनन फानन में इंदिरा ने अपने किचन कैबिनेट की आपात बैठक बुलाई जिसमे शिरकत की दुर्गा प्रसाद धर (प्रमुख; नीति योजना, विदेश मंत्रालय), राम नाथ काव( प्रमुख; रॉ), पी एन हसकर( प्रमुख सचिव प्रधान मंत्री), टी एन कौल ( विदेश सचिव) ने। सभी ने तय किया कि मुजफ्फर हुसैन (पूर्व मुख्य सचिव पूर्वी पाकिस्तान सरकार) 16 दिसंबर के बाद से युद्ध बंदी बना लिए गए हैं इनकी पत्नी लैला जो कि 3 दिसंबर को लंदन चली गई थी युद्ध के कारण तमाम कोशिशों के बावजूद वह वापस नही आ पाई है। दोनों लगातार उपलब्ध सम्पर्क सूत्र से एक दूसरे के सम्पर्क में बने रहे, लेकिन पिछले कुछ दिनों से दोनों में कोई सम्पर्क नही है।
इंदिरा जी यह भी जानती थी कि लैला और जुल्फिकार अली भुट्टो में बहुत मधुर सम्बन्ध है। इन उपजे हालातों में लैला को मध्यस्थ बनाकर बात की जा सकती है। इस बात की पूरी सावधानी बरती गई कि दोनों की मुलाकात होने पर भुट्टो के पास सिर्फ़ लैला की ही याचना जानी चाहिए। डी पी धर ने शशांक एस बनर्जी जो कि लंदन में भारतीय मिशन के राजनयिक थे सम्पर्क स्थापित किया, इंदिरा जी की चिन्ता से अवगत कराया। शशांक को सेर ओ शायरी का बड़ा शौक़ था। तकरीबन यही बीमारी लैला को भी थी, 25 मार्च से लेकर 16 दिसंबर 1971 तक वह लैला से कई बार मिल चुके थे। लैला से मिलकर उन्होंने बताया कि मुजफ्फर हुसैन इस वक्त युद्ध बंदी हैं, दिल्ली के किसी गेस्ट हाउस में उन्हें रखा गया है। जुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के पीएमएलए नियुक्त किए गए हैं। यदि वह मुजीबुर को रिहा करने पर राज़ी हो जाए तो दिल्ली आपके शौहर को तुरन्त रिहा कर देगी। आप चाहें तो भुट्टो साहब से आपकी मुलाकात यही लंदन में कराई जा सकती है।
कूटनीतिक स्तर पर भुट्टो साहब के सभी कार्यक्रम की सूचना इकट्ठी कर ली गई थी। कार्यक्रम के मुताबिक़ पाकिस्तानी एयरफोर्स का जो विमान उन्हें लेने गया था, उसका रूटीन क्या होगा पुख़्ता सूचना इकट्ठा कर ली गई। कब वॉशिंगटन से उड़ान भरेगा, हीथ्रो एयरपोर्ट कब पहुंचेगा आदि आदि। फ्यूल रिफिलिंग में कितना समय लगेगा पूरी जानकारी दुर्गा प्रसाद धर ने पहले से हासिल कर रखी थी। तय किया गया था कि भुट्टो और लैला की मुलाकात हीथ्रो एयरपोर्ट के वीवीआईपी लाउंज में होगी। कार्य योजना के तहत लैला को लाउंज तक पहुंचा दिया गया। दोनों का आमना सामना होने पर एक दूसरे के खुशी का ठिकाना न रहा। दोनों गद गद थे, मानो लम्बे समय बाद मिलने पर महसूस की गई दूरियों को नज़दीक से थोड़ी देर के लिए जी लेने को दोनों व्यग्र दिखे। एक दूसरे पर झुकने को आतुर, अफ़सोस! चुंकि भुट्टो साहब को जल्दी निकलना था, बोझ उठाने के बजाय जरूरत पूछना चाहा। लैला ने बताया कि मेरे शौहर इस वक्त युद्ध क़ैदी के रूप में दिल्ली रखे गए हैं यदि आप मुजीबुर को छोड़ने के लिए राज़ी हो जाए तो मेरे शौहर की रिहाई पर दिल्ली मुहर लगा देगी।
सुनते ही माहिर भुट्टो को समझ आ गया था कि यह गुहार लैला की नही अपितु इंदिरा का पैगाम है। खैर! पुराने रिश्तों की लाज रखनी ही थी तो उन्होंने वादा कर लिया कि जैसे ही मैं शपथ लूंगा मुजीबुर को रिहा कर दूंगा। बदले में मुझे इंदिरा से क्या चाहिए वह अपने स्रोतों से संदेश उसे भेज दूंगा। मुझे इंदिरा पर भरोसा है। शपथ ग्रहण करते ही वादे के मुताबिक़ भुट्टो ने मुजीबुर को रिहा कर दिया।पाकिस्तान की जनता हतप्रभ थी, ठगी महसूस कर रही थी। वह समझ नही पा रहे थे कि जिस देश के गद्दार को वह फांसी पर लटकते देखना चाहते थे वह तो आज़ाद परिंदे की तरह फुर्र कैसे हो गया?
इस हार से रिचर्ड निक्सन तिलमिला उठे। अब उन्हें तलाश थी भारत में पल रहे भारत के गद्दारों की जो राजनीति में सक्रिय हो, लोग उसे पहचानते भी हो। पीआर रेटिंग कैसे बढ़ाई जाती है, इस कौशल के निक्सन शातिर खिलाड़ी थे। मोरारजी देसाई इन्दिरा विरोध में उन्मत्त थे कि देश के साथ गद्दारी करने तक को उठ खड़े हो गए। निक्सन को एक मोहरा मिल चुका था, दूसरे की तलाश दी। विनोवा भावे के भूदान आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले नानाजी देशमुख के उत्तेजित करने पर जे पी नारायन भी कूद गए निक्सन की जाल में। अब पूरा खेल मछवारे के हाथ था वह जब चाहे जाल को पानी में डाले या जब चाहे जाल को पानी के बाहर निकाल कर मछलियों को फड़फड़ाने पर मजबूर कर दे। मछलियों ने जीवन की लालसा में अपने को मछवारे के हवाले करना ही बेहतर समझा।
इंदिरा जी सत्ता त्याग सकती थी लेकिन देश को एक बार फिर से तोड़ने की साज़िश आख़िर वह कैसे बर्दाश्त कर लेती! क्या वह निक्सन के समक्ष समर्पण कर देती जो पाकिस्तान को दुलारने के चक्कर में भारत के नागरिकों को कुपोषण से मारने की उत्कंठा पाले बैठे थे। राजनीति के अर्धविकसित नौनिहालों को महसूस हुआ कि इंदिरा कमजोरों को मज़बूत करने का पाप कर रही हैं। यदि यह स्वस्थ और सम्पन्न हो गए तो हमारी गुलामी कौन करेगा?
दलितों, आदिवासियों,महिलाओं को अधिकारों से आच्छादित करने की जो पहल इंदिरा ने की उसे वह अधूरा नही छोड़ना चाहती थी। हकीकत है कि वह कुछ मामलों में अड़ियल थी अपने मकसद में कामयाब होने के लिए वह किसी भी हद को पार के लिए संकल्पित भी थी। पुनीत कार्यों के संपादन हेतु इंदिरा जी को यदि अपराधी ठहराया जा सकता है तो हां वह अपराधी थी। यदि पुनर्जन्म की अवधारणा शास्वत है, तब वह हर जन्म में गरीबों, किसानों, मजदूरों, आदिवासियों, पिछड़ों ख़ासतौर पर महिलाओं के उन्नयन की अवधारणा के साथ ही जन्म लेगी। इस अपराध की बार बार पुनरावृत्ति की प्रतिबद्धता के साथ वह अपने कर्मयोग पर डटी रहेंगी, मानवता और समानता के सैयाद उनकी बुराई करने की चाहे जितनी कोशिश कर लें वह अपने लक्ष्य के लिए अडिग रहेंगी। डिगेंगी कदापि नही।
यदि वह आपातकाल लागू न करती तो छद्म समाजवादी और कच्छा बनियान गिरोह अपने मक़सद में उसी वक्त कामयाब हो जाता। आज शिक्षा का स्तर जो इतना प्रगति पथ पर अग्रसर है वह निरक्षरता का हिमालय खड़ा कर चुका होता! जिन्हें आपातकाल अभिशाप लग रहा है वह चाहते हैं कि बैंकों का राष्ट्रीयकरण रद्द कर पुनः सूदखोरी की दैहिक ताप की प्रताड़ना की व्यवस्था फिर से लागू की जाए। बीमा कंपनी को फिर से कारपोरेट के हवाला किया जाय। प्रिवी पर्स बहाल किया जाय। महिलाओं को घूंघट और घर के अन्दर चहारदीवारी में ही कैद रखा जाए। अखबारों पर सैंसर लागू किया जाए ताकि वह सच को झूठ और झूठ को सच के रूप में प्रस्तुत करते रहें।
25 जून को भारत का कलंक दिवस घोषित कर मोदी ने बगैर किसी कवच के मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डाल दिया है। अब मधुमक्खी के डंक से शरीर के सभी अंगों की चौड़ाई बढ़ेगी। नितंब की गोलाई बढ़ेगी तो पैरों में हाथीपांव वाला सूजन भी होगा। जिह्वा की चौड़ाई बढ़ेगी तो गालों और ओंठो की मोटाई विश्व योगा दिवस में एक दिन योग के उपरान्त भी फ़ोटो सेशन से कन्नी काटने को मजबूर करेगी। कारण स्पष्ट है मन की बात के लिए जिह्वा हिलेगी नही, मुंह खुलेगा नही तब किसी दूसरे छिद्र की तलाश करनी पड़ेगी जो आवाज़ निकाल सके! पता नही उस आवाज़ को कैमरा की ऑडियो कैप्चर कर पायेगी या नही? यकीनन अब कोई भी मापेगा तो सीने की लंबाई छप्पन ही नही अपितु पैंसठ इंच बैठेगी। जन सामान्य के मध्य आपातकाल के पक्ष और विपक्ष पर खुलकर चर्चा होनी भी चाहिए। अब स्पष्ट हो जाएगा कि 25 जून 1975 को आपातकाल घोषित कर संविधान की हत्या नही की गई थी अपितु संविधान के हत्यारों को संविधान की पहुंच से दूर रखने की सार्थक कोशिश की गई थी।
*गौतम राणे सागर*
राष्ट्रीय संयोजक,
संविधान संरक्षण मंच।
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