गेस्ट हाउस काण्ड के मुलायम ओपी सिंह

गेस्ट हाउस काण्ड के मुलायम ओपी सिंह
    यूपी स्टेट गेस्ट हाउस काण्ड उ.प्र. ही नही भारतीय राजनीति की एक अमिट घटना है। यही से मायावती जी के जीवन की डोर बुझने से बची और राजनीतिक उदय की रोशनी इतनी तीव्र हुई कि वह रणनीतिक क्षितिज पर सफ़लता के अपने झण्डे ऊंचाई पर फहराती चली गई। आज का केन्द्रीय विचारणीय बिंदु यह नही है कि उनकी राजनीति कितनी सफ़ल और असफल रही। बिन्दु सिर्फ़ यह है कि 2 जून 1995 को स्टेट गेस्ट हाउस में वाकई घटना क्या हुई थी। समकालीनता पर प्रश्न भी उठेगा कि इतने लम्बे अंतराल के बाद आख़िर हमें इस बिन्दु पर कलम चलाने की जरूरत क्यों पड़ी? क्या बहन जी हमें फिर प्रिय लगने लगी है? स्पष्ट जवाब होगा सहस्राब्दियों के बाद जिस समाज में सत्ता की भूख पैदा होने लगी थी उन अरमानों पर पानी फेरकर स्वयं के आधिपत्य को स्थायित्व आर्थिक साम्राज्य खड़ा करने की तृष्णा के वशीभूत होकर समाज की ख्वाहिशों को भस्मीभूत करने के दोषी के साथ फ़िर खड़े होने का औचित्य ही नही है। एक प्रयास है कि दृश्य से पर्दा हटाया जाए कि उस मनोवृत्ति को लोगों के समक्ष रखा जाय कि जातीय दंभ जब प्रदेश की राजधानी में इस तरह की आपराधिक कुकृत्य को अंजाम दे सकता है तब सुदूर ग्रामीण इलाकों में छोटी जाति के लोग जातीय उन्माद के शिकार किस पैमाने पर होते होंगे, अनुमान लगाया जा सके।
            तकरीबन दो महीने पहले ओपी सिंह सेवानिवृत डीजीपी (यूपी) ने लल्लन टॉप पर सौरव द्विवेदी को एक साक्षात्कार देते हुए कहा कि वह स्टेट गेस्ट हाउस काण्ड में अबोध बालक जैसे जबरदस्ती धर दबोच लिए गए थे। सामान्यतः उन्हें घटना की कोई जानकारी नही थी। ऐसे प्रकरण जब भी विवेचना के दायरे में आते हैं जांच अधिकारी सुरागरसी के जरिए यह थ्योरी ज़रूर बनाता है कि अपराधी ने कोई न कोई सुराग तो छोड़ा ही होगा। सौरव ओपी सिंह की क्राईम, ग्राइम, गम्पशन शीर्षक से लिखी क़िताब पर चर्चा कर रहे थे।
    ओपी सिंह ने अपनी तरफ से कोशिश पूरी की है कि वह गेस्ट हाउस काण्ड के खलनायक से खुद की छवि की धुल लें, क़िताब भी इसी मंतव्य से लिखी गई है। इस तरह की घटना इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाती है ज़ाहिर तौर पर कोई भी व्यक्ति नही चाहता कि वह ऐतिहासिक खलनायक की छवि से पहचाना जाए। जिनमें काबिलियत है कि वह क़िताब का लेखन कर सकते हैं वह स्वयं अन्यथा किसी बेहतर लेखक के ज़रिए किताब लिखाकर अपनी धूमिल छवि से गन्दगी साफ़ करने का यत्न करते हैं। पच्चीस, तीस साल की घटना का कोई न कोई चश्मदीद गवाह मिल ही जाता है जो भरसक प्रयास करता है कि यथार्थ पर मंडरा रहे घने स्याह बादलों को साफ़ किया जाए। नैतिक जिम्मेदारी की थाती को सहेजने की गरज से एक छोटा सा हमारा प्रयास है कि घटना को उसी तरह रखा जाय जिस तरह वह एक एक कर अंजाम तक पहुंचा।
        मनोवैज्ञानिक प्रवृति है कि तमाम कोशिशों के बावजूद शातिर कोई गल्ती कर ही बैठता है। चूकि हम वहां के प्रत्यक्षदर्शी रहे हैं ऐसी स्थिति में अजॉय बोस (जिसने मायावती जी की आत्मकथा लिखी) को धोखा दिया जा सकता है परन्तु साक्षात गवाह को कैसे गुमराह कर लेंगे ओपी सिंह? हम उस वक्त स्टेट गेस्ट के प्रथम तल पर स्थित रूम नं 21 में कुछ लोगों के साथ रूके थे। वहां रूकने का मक़सद एक ही था कि नज़दीक रहने पर बड़े नेता से मुलाकात होनी आसान रहती है। 30 मई 1995 को कार्यकर्ताओं के मध्य सरकार से समर्थन वापस लेने की जो सहमति मान्यवर साहब ने पार्टी कार्यालय 3 हज़रतगंज लखनऊ में बनाई थी उसमें क्या प्रगति हो रही है, जानने की उत्सुकता रहती थी। 1993 के चुनाव में बसपा से चुनकर आए तकरीबन सभी विधायक कार्यकर्ताओं के बीच से ही थे फलतः हम लोग उनकी बैठकों में भी घुस जाते थे। विधायक भी उस वक्त कार्यकर्ताओं की कद्र करते थे।
    एक घटना का जिक्र करना समीचीन होगा मई 1995 के पहले सप्ताह में मान्यवर कांशीराम साहब लखनऊ आए हुए थे। राम अचल राजभर विधायक थे, उन्हें पुलिस वालों ने पीट दिया था। साहब इस घटना से क्षुब्ध थे। शाम क़रीब 7 बजे साहब कार्यकर्ताओं की एक सभा को सम्बोधित कर रहे थे। बगल में राम अचल राजभर खड़े थे, साहब ने कहा: कि आज जब मुलायम सिंह मुझसे मिलने आया तब हमने कहा कि तुम्हारी सरकार कैसी चल रही है; जवाब दिया कि दस गुना बेहतर। हमने फिर पूछा कि तुम्हारी सरकार में पुलिस वाले विधायक को पीट देते थे यह कैसे दस गुना बेहतर सरकार हो सकती है? जवाब दिया कि हर सरकार में पुलिस के हाथ दस विधायक पिट जाते थे हमारी सरकार में सिर्फ़ एक ही विधायक पुलिस के हत्थे चढ़ा है। बगल खड़े राम अचल राजभर की तरफ़ इशारा करते हुए साहब ने कहा कि अभी तो सिर्फ़ यह अकेला पिटा है। कांशीराम साहब यह दृष्टांत सुनाकर फब्तियां कस रहे थे।
       1जून को साहब दिल्ली वापस जा चुके थे।कार्यकर्ताओं की सहमति के बाद साहब को लगा कि मुलायम की सरकार गिराने से पहले हमें बहुमत का इंतज़ाम कर लेना चाहिए। वह मुलायम सिंह के हथकंडों से भली भांति परिचित थे। मुलायम ने अपनी सरकार बचाने के लिए कांग्रेस के विधायकों में किस तरह से अफरा तफरी मचा दी थी घटना का दृष्टांत उनके दृष्टि मे था। कांशी राम साहब राजनीतिक दांव पेंच के माहिर योद्धा थे। समर्थन वापसी का निर्णय चुंकि विधायकों के बीच लिया गया था, सभी विधायकों को आश्वस्त कर दिया गया था कि हम खुद अपनी सरकार बनाएंगे। मायावती जी शुरू से राजनीति और व्यवहार में कच्ची थी। साहब से नजदीकियों की वजह से सभी विधायक उनकी कद्र करते थे अन्यथा 1993 के चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जितना टिकट उन्होंने ख़ुद बांटा था वह तकरीबन सारी सीट हार गई थी।1993 के चुनाव में प्रचण्ड बीजेपी विरोधी लहर में भी सारी सीट हारने के बावजूद उनके खिलाफ़ कार्यवाही होने की बरक्स उन्हें महिमा मंडित किया जाना शायद राज बहादुर को रास नही आया। स्मरण रहे कि राज बहादुर को कमज़ोर करने के लिए मायावती जी ने आर के चौधरी को यूपी का कोऑर्डिनेटर बनवाया था।
      साहब ने मायावती जी को मुख्यमंत्री बनाने की प्रछन्नता किसी के सामने प्रकट नही किया था। पहले भी उद्धृत कर चुका हूं मायावती जी में हमेशा से होश कम और जोश अधिक रहा है, इसी जोश के चलते ही उन्होंने रहस्योद्घाटन कर दिया कि मैं शीघ्र ही मुख्यमंत्री की शपथ ले लूंगी। रहस्योद्घाटन से पुर्व सभी विधायकों को आभास था कि मुलायम सिंह की सरकार गिरने के बाद कांशीराम साहब मुख्यमंत्री बनेंगे, फलस्वरूप सभी के मुंह सिले हुए थे। जैसे ही मायावती जी के उतावलेपन ने गुप्त भेद को खोला राज बहादुर, अरशद खान छटपटाने लगे कि कितनी शीघ्र इस मीटिंग से हम बाहर निकल जाएं। स्टेट गेस्ट हाउस में कॉन्फ्रेंस हॉल था जिस में 30 मई से दिन में दो बार विधायकों संग साहब की बैठक होती थी। यूं कहा जा सकता है कि स्टेट गेस्ट हाउस ही उस वक्त बसपा  विधायकों की ऑफिस का शक्ल ले चुका था।
        राज बहादुर ने मुलायम सिंह से मिलकर मायावती की सभी योजना का खुलासा कर दिया। अपनी अपरिपक्वता की वजह से मायावती जी ने समर्थन वापसी का पत्र भी सभी विधायकों के बीच पढ़कर सुना दिया, लेकिन अभी तक समर्थन वापसी का पत्र राज्यपाल को सौंपा नही गया था, साहब के दिल्ली से वापस आने का इन्तजार हो रहा था। यह भेद से परिचित होते ही मुलायम सिंह ने राज बहादुर से कहा जिस विधायक को जितना पैसा चाहिए दो और सबको ख़रीद लो। धनी राम वर्मा और राज बहादुर सक्रिय हुए, लेकिन राज बहादुर की सिगरेट उड़ाने की लत और सुस्ती यहां भी कायम रही। मुलायम सिंह एक ऐसे नेता थे जो एक ही साथ युद्ध में फतह हासिल करने के लिए सभी फ्रंट खोल देते थे। ओपी सिंह की मायावती जी से पुरानी खुन्नस थी। वह एसएसपी कुम्भ मेला के रूप में तैनात थे, मुलायम सिंह जी ने 1 जून को खुद ही फ़ोन कर ओपी सिंह को कहा कि तुम तुरन्त लखनऊ आकर एसएसपी लखनऊ का चार्ज ग्रहण करो।
    मुलायम सिंह जी द्वारा ख़ुद फ़ोन कर सूचना देने की पुष्टि ओपी सिंह स्वतः कर चुके हैं। हां एक जून को मध्य रात्रि से ही ओपी सिंह अपने अभियान में सक्रिय हो चुके थे। 2 जून को वह स्टेट गेस्ट हाउस में सुबह 11 बजे के पहले ही पहुंचकर विधायकों के सभी गनर को वार्निंग दे चुके थे कि मैं लखनऊ का नया एसएसपी हूं तुम लोग सब यहां से भाग जाओ नही तो सबको सस्पेंड कर दूंगा। जैसे ही शैडो और गनर भागना शुरू किए समझ आ चुका था कि कुछ गड़बड़ होने वाला है। थोड़ी देर बाद राज बहादुर आए उनसे हमने जानना चाहा कि सर यह सब क्या हो रहा है उन्होंने कहा कि मायावती पूरी पार्टी को बर्बाद करना चाहती है। इसे सबक सिखाना ही पड़ेगा। थोड़ी देर बाद वह वहां से मुझे साथ लेकर 9 मॉल एवेन्यू तत्पश्चात 5 कालीदास मार्ग गए। वहां मुझे नेता जी से मिलवाया उनके द्वारा मुझे आश्वस्त किया गया कि यदि तुम उन विधायकों से मेरी बात करा दो तो मैं उन सभी को मंत्री बना दूंगा और आपको राज्य मंत्री। उद्धृत करना आवश्यक होगा कि राज बहादुर की सिफारिश पर ही मुझे इलाहाबाद में जुवेनाइल जज बनाया गया था।उन्होंने मुझसे कहा कि तुम, जवाहर लाल दिवाकर, राजबली जैसल, राम सजीवन निर्मल से मेरी बात कराओ, जोखू लाल यादव, नज़म उद्दीन, हीरामणि पटेल सब मेरे सम्पर्क में हैं।
      हमने कहा आप मुझे स्टेट गेस्ट हाउस छोड़वा दें, वह लोग शायद वही है। इन हालात में जितनी देर मैं राज बहादुर के साथ रहा मेरा दम घुट रहा था। वह ऐसा वक्त था जब कार्यकर्ताओं में मिशन कूट कूट कर भरा था। मिशन से धोखा करने की कोई सोच भी नही सकता था। राज बहादुर भी मिशनरी थे लेकिन वह मायावती के विरोध में पार्टी से बगावत करने पर उतारू हो जायेंगे सोचा भी नही था। बहन जी ने अपनी एक टीम बना ली थी जिसके मुखिया थे आर के चौधरी, कैप्टन सिकन्दर रिज़वी, लारी, योगेन्द्र यादव, डॉ गजेन्द्र इत्यादि। इनकी जिम्मेदारी बस इतनी रहती थी कि कांशी राम साहब से जो सीधे सम्पर्क रखते थे उन्हें साहब से मिलने न दिया जाए।
     हमने कोशिश की कि बहन जी से मिलकर उनके खिलाफ़ चल रही साज़िश की जानकारी उन तक पहुंचा दी जाए परन्तु अफ़सोस यह चंडाल चौकड़ी मुझे उन तक पहुंचने ही नही दिए। जून 2 दोपहर का तकरीबन दो बजे का वक्त रहा होगा जब 7-8 महिलाएं आकर कल्लो माई हाय हाय के नारे लगाने लगी। हम लोग खिड़की से सारा तमाशा देखने पर विवश थे। थोड़ी देर में ही रमा कांत यादव, धनी राम वर्मा, लखनऊ विश्व विद्यालय के तमाम लफंगे लड़के आए, स्टेट गेस्ट हाउस में मौजूद विधायकों को एक एक कर घसीटना शुरू कर दिया,विधायकों में थे अछैवर भारती, समई राम, राम अचल राजभर, राजेन्द्र कुमार, जगन्नाथ चौधरी। थोड़ी देर बाद मेवा लाल बागी भी पीछे से कहीं से पहुंच गए उन्हें जब घसीटने लगे तब वह छटपटाना शुरू कर दिए। उन्हें तो गुंडों ने टांग दिया। यह सब कुछ जब हो रहा था तब ओपी सिंह सिगरेट का कश लेकर छल्ला बनाने में ऐसे मदहोश थे जैसे घड़ियाल शिकार निगलने के बाद क्षुधा तृप्ति संकेत के रूप में आंसू निकालता है। यह भी यही संकेत दे रहे थे कि इन्हें जो जिम्मेदारी दी गई थी उसकी इतिश्री हो चुकी है। राम सजीवन निर्मल बीमार था इलाहाबाद में उसका इलाज़ चल रहा था उसे विशेष हेलीकॉप्टर भेज कर 3 जून को सुबह मंगाया गया।
       आर के चौधरी के नेतृत्व में बहन जी सुरक्षा में जितने भी सूमो पहलवान तैनात थे विधायकों के साथ हो रही बदसलूकी देख ऐसे फरार हुए जैसे गधे के सिर से सींग। 3 जून को सुबह से ही विधायकों की ऐसे तलाश हो रही थी जैसे वह दिन बकरीद का हो और बकरे गायब हो बगैर बलि के फ़रियाद पूरी ही नही होगी। फ़रियाद दी ,मुलायम सिंह जी की सरकार बचाने की, बलि थी विधायकों की संख्या। उस वक्त लोकसभा चल रही थी नेता प्रति पक्ष अटल बिहारी वाजपेई ने यह मुद्दा सदन में उठाया। प्रधान मंत्री पी वी नरसिंहराव ने स्टेट गेस्ट हाउस के चारों तरफ सीआईएसएफ तैनात करा दिया। अटल बिहारी वाजपेई की आंखों में यह गठबंधन वैसे भी खटक ही रहा था, मौक़े की तलाश में थे कि कब गुगली मिले और वह चौका जड़ दें।
      रात्रि 2 जून की वृत्तांत को दर्शाना अहम पहलू है जिसमें मायावती जी को जान से मारने की कोशिश की गई थी। इस बिंदु पर सफ़ाई देते हुए ओपी सिंह ने ऐसी भोड़ी बात की जिसका न कोई सिर है न ही पैर। उन्होंने कहा कि रात्रि में मंडलायुक्त और आईजी साहब आए और उन्होंने इंटरकॉम के जरिए मायावती से बात की। मायावती जी ने चाय पीने पी इच्छा व्यक्त की। चाय प्रबन्ध के लिए कैंटीन से सम्पर्क किया गया तो पता चला कि कैंटीन का सिलेंडर ख़त्म हो चुका है। बाहर से सिलेंडर की व्यवस्था कराई गई चूंकि वह भरा हुआ सिलेंडर घसीट कर कैंटीन तक ले जाया गया इसलिए उन्हें लगा होगा कि सिलेंडर से जलाकर उन्हें ज़िंदा भस्म करने की योजना दी। मायावती जी का यह सिर्फ़ भ्रम है जबकि वास्तव में ऐसा कुछ भी नही हुआ था।
    विवेचना करते हैं। ओपी सिंह के झूठ की एक एक परत को उघाड़ते हैं। प्रथम यह कि 2 जून को मायावती जी का जीवन कोई सामान्य नही था। वह दिन था जब मौत हर क्षण उनके प्राण हरने के लिए दबे पांव आगे बढ़ रही थी। रात अंधेरी थी वह दरवाजे के पास हर उपक्रम कर लेना चाहती थी ताकि किसी भी सूरत में दरवाज़ा टूटने न पाए। भय की इस अवस्था में व्यक्ति सब इंतजाम करने के बावजूद खुद को दरवाजे से चिपटा कर रखता है ताकि सब कुछ विफल होने के बाद भी वह दरवाज़ा टूटने के मार्ग का रोड़ा बन सके। ऐसी अवस्था में चाय की तलब जबकि किसी के आने की आहट ही उसके प्राण हरने के बराबर हो मज़ाक नही तो और क्या है? दूसरा यह कि कैंटीन कर्मी सिलेंडर कंधे पर उठाकर ले जाता है न कि घसीटकर। सामने कोई न हो स्टेट गेस्ट हाउस पूरी तरह से ख़ाली पड़ा हो तभी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी सिलेंडर घसीटता है। तब तो कतई नही जब मंडलायुक्त और आईजी साहब लोग सामने बैठे हों। संविधान भले ही कहे कि यह सब लोक सेवक हैं परंतु यह सब अपने को नौकरशाह मानते हैं तब कैसे कोई चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी सिलेंडर घसीटने की गुस्ताखी करेगा? सिलेंडर घसीटने का काम अपराधी करता है जो सफ़ेद पोश हो, ओपी सिंह जी।
*गौतम राणे सागर*
  राष्ट्रीय संयोजक,
संविधान संरक्षण मंच।

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