यकीनन हाथरस नाकाबिले बर्दाश्त: गौतम राणे सागर

   हाथरस की घटना दर्दनाक है। सैकड़ों की असामयिक मौत लोमहर्षक पीड़ाएं, चीत्कार,मदद के लिए पुकारती चारों ओर कराहती आवाज़ें तड़प तड़प कर मौत की प्रतीक्षा में विवश आँखें, कौन है इसका जिम्मेदार, नारायण साकार हरि भोले बाबा (सूरज पाल जाटव), पुलिस प्रशासन या धर्म के नाम पर धंधा करने वालों के बीच की प्रतिस्पर्धा? नारायण साकार हरि ने कोई पहली बार सत्संग आयोजित नही किया था।

 हज़ारों लाखों सत्संग वह आयोजित कर चुका है। उसके कार्यक्रम में उमड़ने वाली भीड़ में हाथरस में अचानक से कोई इज़ाफा नही हो गया था। हमेशा उसके सत्संग में भीड़ उमड़ती ही है। उसे दोषी ठहराना उचित कैसे हो सकता है? इस तरह के पाखंडियों के सत्संग में भीड़ बरसात में आने वाली बाढ़ की तरह होती है। फ़र्क सिर्फ़ इतना होता है कि बाढ़ बरसात के महीने में ही आती है परन्तु कर्तव्यहीन होने की सीख देने वाले इस तरह के मजमों में हमेशा रेला लगा ही रहता है।
         प्रशासन जब भी किसी कार्यक्रम आयोजन की अनुमति देता है, अनुमति याची और उसके आने वाले अतिथि की जन्मकुंडली आकाश से पाताल तक खंगाल लेता है तब यहां चूक होने की संभावना शून्य हो जाती है। इस दशा में साज़िश की बू ज़रूर आती है। यह प्रशासन की विफलता है या किसी के हाथ का खिलौना बनने का नतीज़ा? पाखंडियों में भीड़ इकट्ठा करने की अद्भुत कला होती है। उनके पास भीड़ खुद चलकर आती है, चढ़ावा भी चढ़ाती है। यानि कि भक्ति में सराबोर धार्मिक मनुष्य स्वघोषित ईश्वर के चरणों में अपना सबकुछ न्यौछावर करने को उतावला रहता है। यही बात सियासी भेड़ियों को खूब भाती है। धार्मिक और सियासी पाखंडियों दोनों की यही से पार्टनरशिप की शुरूआत होती है। बाबा नेता की पीठ खुजाता है और नेता बाबा की। नेता को भीड़ और वोट चाहिए और बाबा को धन और धर्म का व्यवसाय करने का माहौल। दोनों एक दूसरे के परस्पर सहयोगी बन जाते हैं। यूं तो हमारे देश को दुनियां का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का गौरव हासिल है और धर्म निरपेक्ष देश की पहचान भी।
             लोकतंत्र का मतलब देश का प्रत्येक नागरिक सजग और समझदार है। सियासी भेड़ियों और नरभक्षी पाखंडियों को नागरिकों का समझदार होना कतई बर्दाश्त नही। दोनों की दुकानें बंद होने का खतरा बना रहता है। दोनों एक दूरदर्शी कार्य योजना के तहत परस्पर एक दूसरे का सहयोग करते रहते हैं। हाथरस में अनुमति प्रदान करते समय यदि प्रशासन ने सभी मापदंडों की बारीकी से सुरागरसी नही की, तब यही माना जायेगा कि या तो प्रशासन लापरवाह है या किसी साज़िश का सह अभियुक्त। इस थ्योरी पर सुरागरसी करने पर नारायण साकार हरि उर्फ़ भोले बाबा कहां से अपराधी के कटघरे में खड़ा नज़र आता है? उसका महापाप यह है कि वह जाटव होकर धर्म का धंधा कर रहा है। यही से वह अपराध के शिकंजे में फंसता नज़र आता है। उसे सोचना चाहिए था कि जब शंबूक को वध की वेदी पर चढ़ाया जा सकता है तब उसे क्यों नही?
          चुनावी समर में उतरे कई मेंढक नारायण साकार के तालाब के बाहर इस उम्मीद से टर्र टर्र करते रहते हैं कि तालाब में उतरने और भोले बाबा के पांव पखारने का मौक़ा मिल जाए, तब वह चुनावी भव सागर की वैतरणी पार कर लेंगे। 2019 के चुनाव में मुझे भी इस अभियान में लगाया गया था कि मैं उनको नारायण साकार का आशीर्वाद दिलवा दूं। नीतिशास्त्र के अनुसार नाम का खुलासा करना उचित नही रहेगा। हमें बचपन से ही पाखण्ड पर कोई विश्वास नही था। जब मुझे नारायण साकार का नाम बताया गया तब वह नाम मेरे लिए बिल्कुल नया था। हमें यह नाम स्मरण में लाने में कुछ मिनट का समय लग गया। खैर! हमने अपने 48 घण्टे लगा दिए उसके सम्पर्क सूत्र तलाशने में। जो व्यक्ति टुंडला में उसके सत्संग का काम देखता था। मैं ढूंढते ढूंढते उसके घर बसई पहुंचा। ज्ञात हुआ कि इस वक्त हरि जी का सत्संग उन्नाव में चल रहा है। 
        लक्ष्य को भेदना ही था, पहुंच गया उन्नाव। वहां पहुंचने पर जानकारी प्राप्त हुई कि हरि जी रात्रि 11 बजे मिलेंगे। अंततः मुलाकात हुई कुशल क्षेम के बाद मैं असली मुद्दे पर आने के लिए उतावला था। यदि किसी अभियान के तहत न गया होता, तब शीघ्र ही वहां से निकल जाना पसन्द करता। मेरे लिए जो असहनीय स्थिति थी वह यह थी कि वह तो खुद सिंहासन जैसे बनी कुर्सी पर आसीन था, मुझे नीचे बैठाने की चाहत में था। उतावले परन्तु मर्यादित तौर पर हमने कहा कि आपसे कुछ संवाद करना था। ठीक है आप इत्मीनान से बैठकर बताएं। नही, नही मैं खड़े खड़े बात करने में सहज हूं। फिर चर्चा का सिलसिला शुरू हुआ, हमने तो उसने बड़ा आदर्श झाड़ा, कहने लगा कि मैं राजनीति से बहुत दूर रहता हूं। ठीक है मैं चलता हूं मैं यह सोच कर आया था कि यदि आप यहां मेरी मदद कर दें तो अगले सत्संग जो खर्चा आयेगा उसका इन्तजाम मैं करा दूंगा।
         उत्सुकता से उसने कहा कि आप जानते हैं एक सत्संग में क़रीब दो करोड़ का खर्च आता है। मुझे बताए गए स्टीमेट से यह क़ीमत बहुत अधिक लगी। हमने मोल भाव करने का भी प्रयास नही किया, यह कहकर निकल आया कि मैं आपको कब लेने आऊंगा दो दिन पहले बता दूंगा। जैसे ही स्वाभिमान के खिलाफ़ की गई यात्रा से वापस लौटा, हमने उन महोदय से आशीर्वाद की क़ीमत बताई "जिनके कहने पर मैं धर्म का धंधा करने वाले धूर्त से मिलने गया था" उन्होंने मना कर दिया। कहने लगे मेरा चुनाव वैसे ही बहुत अच्छा चल रहा है इतना पैसा वहां देना ठीक नही रहेगा। यहां से यह सीख मिल गई कि यह एमबीए के मास्टर लोग हैं और अपनी पूरी क़ीमत वसूलते हैं। जो प्रयास हमने किया था, उसी तरह का प्रयास बहुतेरे लोगों ने किया होगा, संभव है कि इस डील के चक्कर में किसी ने मज़ा चखाने की कसम खा ली हो। वह अब ताकत में हो और यह बाबा उसी के हत्थे चढ़ गया हो।
        नारायण साकार हमेशा अपनी पत्नी को साथ रखता था तभी इतनी दूरी तय कर पाया अन्यथा किसी विष कन्या ने इसे बहुत पहले ही डस लिया होता! हाथरस की घटना अचानक से घटित कोई दुर्घटना प्रतीत नही होती। संभावना प्रबल है कि किसी शतरंज के माहिर खिलाड़ी ने यह चक्रव्यूह रचा जिसमें सूरजपाल जाटव आकर फंस गया। एक बार विवेचना करके देंखे कि जब एक साधारण से बैठक की सूचना दी जाती है जिसमें 25 लोगों से अधिक इकट्ठा होने की उम्मीद नही रहती तब तो वहां तैनात पुलिसकर्मी की संख्या पचास से कम नही रहती तब यहां इतनी लचर व्यवस्था क्यों? हाथरस कार्यक्रम के समय सारे पुलिस वाले भूख हड़ताल पर चले गए थे क्या?
              नारायण साकार का पैक अप होना तय है, होना भी चाहिए। भारतीय संविधान में पाखण्ड फैलाने के लिए कोई स्थान नही है। बहस अब इस बिन्दु पर होनी चाहिए कि क्या नारायण साकार के पैक अप से भविष्य में कथा वाचकों के यहां भीड़ जुटनी बन्द हो जायेगी? महीने भर चलने वाली कांवड़ यात्रा जो काफी लम्बी दूरी तय करती है, पुलिस के बड़े अधिकारी हेलीकॉप्टर से पुष्पों के पंखुड़ियों की जमकर बरसात करते हैं। डीएम कावड़ यात्रियों के पैरों में तेल मालिश करते हैं। सरकार और प्रशासन के सभी लोगों को अच्छी तरह मालूम है कि यात्रा में शामिल लोग खूब ऊधम भी काटते हैं तब उन्हें कैसे कंट्रोल किया जायेगा? श्रद्धा भाव या मलाईदार पोस्टिंग के चक्कर में निम्न स्तर पर गिरने वाले अधिकारी सुरक्षा, भगदड़ और ऊधम को ध्यान में रखते हुए क्या इस यात्रा को अवैध घोषित करने का साहस दिखा पायेंगे?
          भारत में परजीवियों की बड़ी संख्या है जो कथा वाचन से अपनी रोज़ी रोटी चला रहें हैं। इनके यहां भी बड़ी संख्या में भीड़ इकट्ठा होती है, क्या इनके कार्यक्रमों को भविष्य में सुरक्षा कारणों से अब अनुमति नही दी जायेगी? कुछ प्रमुख कथा वाचकों की सूची इस प्रकार है;
देवकी नन्दन ठाकुर, जया किशोरी,अनिरुद्धाचार्य जी महाराज, देवी चित्रलेखा, गौरव कृष्ण शास्त्री, मोरारी बापू, अनन्त ज्ञान, एस्ट्राइंडिया, नवकार बैनक्वेट्स एंड इवेंट्स प्राइवेट लिमिटेड, धीरेन्द्र कृष्ण ब्रह्मचारी, विश्व बंधु सेवा संस्थान,रामभद्राचार्य जी महाराज , पंडित प्रदीप मिश्रा जी, इंद्रेश उपाध्याय इत्यादि। यदि इनके कार्यक्रमों को अवैध घोषित किया जाता है तो विश्वास किया जा सकता है कि सरकार गंभीर है और भविष्य में हाथरस जैसी कोई घटना घटित न हो, उसके प्रति सतर्क भी। अन्यथा मजबूरन स्वीकार करना पड़ेगा वर्णित कथा वाचकों के धंधे को प्रोत्साहित और संरक्षित करने हेतु ही हाथरस की घटना को कूटनीतिक रणनीति के तहत संपादित की गई है।
*गौतम राणे सागर*
  राष्ट्रीय संयोजक,
 संविधान संरक्षण मंच।

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