वह देश विश्व गुरू होता है,जहां दुनियां के लोग शिक्षा ग्रहण करने आते है...

    राष्ट्रीय भागीदारी आन्दोलन के तत्वाधान में प्रेस क्लब लखनऊ में आज दिनांक 6 जुलाई को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई। परीक्षाओं में अनवरत हो रही पेपर लीक की घटनाएं भले ही मोदी सरकार को विश्व गुरू होने का दंभ भरने का अवसर देती हो लेकिन देश के भविष्य के निधि युवकों के जीवन को गर्त में धकेलने को उद्दत है। देश में जाति धर्म संप्रदाय में बांटे गए लोगों को उनके आबादी के अनुपात में उपलब्ध सभी स्रोतों में ईमानदारी से भागीदारी सुनिश्चित कराने के उद्देश्य से यह प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई है। लोगों में दिख रहा जोश बयान कर रहा था कि अब वह जज़्बात से नही अपितु पूरे होशो हवास से काम लेने के मूड में हैं। दलों के लुभावने वायदे से अब लोग प्रभावित होने वाले नही है।
     *गौतम राणे सागर* राष्ट्रीय संयोजक संविधान संरक्षण मंच ने कहा कि वह देश विश्व गुरू होता है जिसके यहां दुनियां के लोग शिक्षा ग्रहण करने आते है। यदि दुनिया के बेहतरीन विश्वविद्यालयों की सूची पर नज़र दौड़ाए तो हम भारत के नाम को ढूंढते रह जायेंगे। हमारे विश्वविद्यालय जब दुनियां में अपनी पहचान नही बना पा रहे हैं यानि स्तरहीन है तब विश्वगुरू की मृग मरीचिका किसे दिखाई जा रही है? शिक्षा के स्तर में हम वैसे ही फिसड्डी साबित हो रहे थे रही सही कसर पेपर लीक की घटनाओं ने पूरी कर दी। अब हमारी नई पहचान बन रही है, पेपर लीक के विश्व गुरू की। क्या इसी पहचान से विश्व में हमारा डंका बजेगा? सवाल यह उठता है कि आए दिन हो रही पेपर लीक की घटनाएं क्या दर्शाती हैं, सरकार की नाकामयाबी, या फिर नक़ल माफियाओं के साथ मिली भगत?
          युवकों को बेरोजगार रखने की सरकार की यह कोई व्यूह रचना तो नही है? पेपर लीक के पीछे छिपकर सरकार बेरोजगारी के सवालों से बचना तो नही चाहती? आखिर इतने बड़े पैमाने पर पेपर लीक की घटनाएं बढ़ क्यों रही है? नव जवानों को नौकरी, बेरोजगारों को रोजगार, महिलाओं को सुरक्षा, किशोरों को बेहतर शिक्षा, किसानों को उनकी फ़सल का उचित मूल्य, सेवा निवृत्त लोगों के लिए पुरानी पेंशन बहाली जैसे मुद्दों से सरकार अपना मुंह नही मोड़ सकती। उन्हें जवाब देना ही होगा। देश की लोकसभा में जवाब देने से भले ही वह बच जाए लेकिन जनता की संसद से कैसे बच पायेगी? हो रही है संसद आवारा तो होने दें। सड़के वीरान नही होगी। यही लगेगी संसद।
    *पी सी कुरील* संस्थापक भागीदारी आन्दोलन ने भविष्य की कार्य योजना को प्रस्तुत करते हुए कहा कि लोगों में भारत के संविधान के प्रति समर्पण होना चाहिए। जब संविधान सभी को सामाजिक,आर्थिक, राजनैतिक न्याय की गारंटी देता है तब देश के नागरिकों में इतनी विषमता क्यों है? जाति, धर्म, संप्रदाय के नाम पर हिंसा फैलाकर पूंजीवादी लोग देश के नागरिकों के अधिकार छीनने की साज़िश कर रहे हैं। यह नही चाहते है कि देश का कोई भी आम नागरिक खुशहाल रहे। बेतहाशा महंगाई पर रोक न लगा पाने के पीछे आखिर सरकार की मंशा क्या है, कहीं मुनाफाखोरों , जमाखोरों और सरकार के बीच में सांठ गांठ तो नही है?
        संविधान में बुलडोजर नीति को कहां जगह दी गई है? पुरा लखनऊ जिसे अभी तक नाला के नाम से जानती है, अचानक से एलडीए ने उसे कुकरैल नदी घोषित कर दिया और दो हज़ार से अधिक परिवारों को उजाड़ दिया, यह कौन सा न्याय है? अंध विश्वास, पाखण्ड, व्यभिचार, जातिवाद, भ्रष्टाचार,आतंकवाद , मॉब लिंचिंग की घटनाओं में एक दशक से अंधाधुंध बढ़ोत्तरी हुई है। इस विफलता का दोषी कौन है, सरकार या पुलिस महकमा? राष्ट्रीय भागीदारी आंदोलन लोगों को हर क्षेत्र में आगे बढ़ने का अवसर उपलब्ध कराएगी। शीघ्र ही कार्य योजना का खुलासा किया जायेगा। जब सरकार अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लेगी तब हमें देश के नौजवानों को रोजगार से जोड़ने की परियोजना तैयार करनी पड़ेगी।
        डॉ मनोज पांडेय अध्यक्ष (लूटा), विनोद सिंह, मकसूद अंसारी, सर्वेश द्विवेदी, फहीम सिद्दीकी, आफाक, अजय कुमार रवि, महेश पाल, इमरान रजा, राम लौट बौद्ध इत्यादि लोगों ने प्रमुखता से अपने विचार प्रकट किए।
      कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ आर एस जैसवारा ने किया।

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