1947में विभाजन को लेकर विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रुप में गोष्ठी हुई आयोजित

कुशीनगर* 
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस 1947 के उस क्रूर घटना का स्मरण कराता है, जब संसार को 'वसुधैव कुटुंबकम' और 'सर्वे भवंतु सुखिनः' का संदेश देने वाले हमारे महान राष्ट्र को राजनीतिक स्वार्थ के लिए बांट दिया गया था।

इस दौरान लोगों ने अत्यंत अमानवीय यातनाएं सही, पलायन के निर्दय कष्ट उठाए, अपने परिश्रम से कण-कण जोड़कर बनाए घर-द्वार, संपत्ति से वंचित हो गए, असंख्य लोगों ने जीवन खो दिया। वर्ष 1947 में विभाजन के कारण मानव जाति के इतिहास में सबसे विनाशकारी विस्थापनों में से एक देखा गया। बंटवारे के दौरान भड़के दंगे और हिंसा में लाखों लोगों की जान चली गई। यह विचलित करनेवाली घटना थी, ऐसी भीषण त्रासदी थी। पंडित जवाहरलाल नेहरू की कांग्रेसी सरकार द्वारा विभाजन स्वीकार करना एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। 

भारत विभाजन के परिणामस्वरूप 6 लाख लोग मारे गए 1.5 करोड़ लोग बेघर हुए 1 लाख महिलाओं के साथ अनाचार हुआ।यह विभाजन मानव इतिहास में सबसे बड़े विस्थापनों में से एक है, जिससे लाखों परिवारों को अपने पैतृक गांवों एवं शहरों को छोड़ना पड़ा और शरणार्थी के रूप में एक नया जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ा।
    यह बातें  भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश मंत्री और जिला प्रभारी शकुंतला चौहान ने बुधवार को पडरौना के एक विद्यालय में भाजपा द्वारा आयोजित विभाजन विभिषिका स्मृति दिवस गोष्ठी को बतौर मुख्य अतिथि सम्बोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि पंडित नेहरु ने मात्र प्रधानमंत्री की कुर्सी पाने के लिए न केवल देश के टुकड़े करवाए बल्कि लाखों लोगों के खून से भारत भूमि को नहला दिया। घृणा का जो बीज उस समय बोया गया उन्हें पूर्णतया नष्ट करने के लिए आने वाली कई पीढ़ियों को मिलकर प्रयास करना होगा।

 अंग्रेजों ने सदैव फूट डालो और राज करो की नीति अपनाई थी जिसका अनुसरण कांग्रेस पार्टी में रहते हुए उनके मानसपुत्र आज भी कर रहे हैं। उन्होंने भारत के नागरिकों को अलग-अलग समूहों में विभाजित कर रखा था।
   जिला प्रभारी ने कहा कि विभाजन जैसी विभीषिका से देश को पर्याप्त सबक मिले। स्मृति दिवस की घोषणा कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जताया कि देश अपनी सबसे क्रूर त्रासदी में मारे गए लोगों के प्रति संवेदनशील है और साथ ही ऐसी दुखद घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए कटिबद्ध भी। राष्ट्र के विभाजन के कारण अपनी जान गंवाने वाले और अपनी जड़ों से विस्थापित होने वाले सभी लोगों को उचित श्रद्धांजलि के रूप में सरकार हर साल 14 अगस्त को उनके बलिदान को याद करने के दिवस के रूप में मनाकर देशवासियों की वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों को विभाजन के दौरान लोगों द्वारा झेले गए दर्द और पीड़ा के कारणों से सचेत करना चाहती है।
     उदित नारायण स्नातकोत्तर महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ ममता मणि त्रिपाठी ने कहा कि भारत के विभाजन की पीड़ा को भुलाया नहीं जा सकता है। यह दिन भारत के लोगों के संघर्ष और बलिदान का प्रतीक है। हर भारतीय को इस दिन याद रखना चाहिए। हम भारतीयों को इस दिन को याद रखने की जरूरत है, क्योंकि हमारी लाखों बहनें और भाई विस्थापित हो गए थे और कई लोगों ने बेवजह नफरत के कारण अपनी जान गंवा दी थी, उन्हें विभाजन के दौरान यातना-पूर्ण व्यवहार और हिंसा का सामना करना पड़ा था।आज भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र बनने की दिशा में आगे बढ़ गया है, देश के विभाजन के दर्द को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है. विभाजन का दर्द और उस दौरान हुई हिंसा देश की स्मृति में गहराई से अंकित है।
   गोष्ठी को पूर्व जिलाध्यक्ष जगदम्बा सिंह, डॉ प्रेमचंद मिश्र, जयप्रकाश शाही, सदर विधायक मनीष जायसवाल, फाजिलनगर विधायक सुरेंद्र सिंह कुशवाहा, रामकोला विधायक विनय प्रकाश गोंड, खड्डा विधायक विवेकानंद पाण्डेय, पडरौना नगर पालिका अध्यक्ष विनय जायसवाल ने भी सम्बोधित किया।
   जिलाध्यक्ष दुर्गेश राय ने अध्यक्षता और आभार प्रकट किया तथा संचालन जिला उपाध्यक्ष दिवाकर मणि त्रिपाठी ने किया।इस अवसर पर सुदर्शन पाल, विवेकानंद शुक्ल, नन्द किशोर नाथानी, डॉ पीएन राय,डॉ केपी गोंड,जेपी गुप्ता, हरिशंकर राय,राजनेति कश्यप, सतीश चौधरी, संदीप सिंह, धन्नजय तिवारी, सुरेन्द्र कुमार, मृत्युंजय मिश्र, नमो नारायण मौर्य, भीखम प्रसाद,एडवोकेट रमेश राय, एडवोकेट किशोर यादव सहित सैंकड़ों लोग उपस्थित थे।
 *दिनेश जायसवाल की रिपोर्ट*

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