अखिल भारतीय स्तर पर जजों की नियुक्ति की परीक्षा हो

अखिल भारतीय स्तर पर जजों की नियुक्ति की परीक्षा हो
   उच्च/ उच्चतम न्यायालय की चयन प्रक्रिया न तो संवैधानिक है, न ही चयन से पहले उनके न्यायायिक चरित्र का परीक्षण होता है। जिस न्यायालय के आदेश का अनुपालन करना देश के सभी लोगों,संस्थानों की नैतिक जिम्मेदारी है उसी न्यायालय की चयन प्रक्रिया जब त्रुटियों का भंडारण हो, तब आदेश सन्देह के दायरे में ही होगा। जातिवाद, नस्लवाद, भाई भतीजावाद, भ्रष्टाचार, पक्षपात वाद सभी का मिश्रण है कॉलेजियम, फिर वहां से न्याय की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
     जिस नस्लवादी न्यायालय को एससी/एसटी आरक्षण से एक पक्ष दबंग दिखने लगा है कभी उन्होंने न्यायालय में भर्ती हो रहे जजों का वर्गीकरण करके देखने की कोशिश की कि यहां हर समाज का प्रतिनिधित्व कम क्यों है? पक्षपात, भाई भतीजावाद, नस्लवाद की योग्यता को अलग रखकर विश्लेषण किया जाय तो उच्च/उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की योग्यता बड़ा सा लड्डू होगा। बेईमान, नस्लवादी, जातिवादी, भ्रष्टाचारी जब न्याय की कुर्सी पर विराजमान होंगे तब न्याय कैसे हो सकता है? वहां से सिर्फ नस्लवाद की रक्षा के फरमान ही जारी होंगे। नस्लवाद की रक्षा के लिए आवश्यक है कि अन्य वर्गों की एकता को विखंडित करने की कुत्सित चाल चली जाए।
*गौतम राणे सागर*
  राष्ट्रीय संयोजक,
संविधान संरक्षण मंच।

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