महाराष्ट्र चुनाव की ऐसी होगी तस्वीर:गौतम राणे सागर


      चुनाव; आखिर चुनाव है, पूर्वानुमान सटीक होगा प्रतिभूति कम होती है। लोगों के बीच बन रहे बहस के मुद्दे चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा आभास करा देते हैं। हरियाणा चुनाव परिणाम को लेकर टिप्पणी करने से हमने अपने को दूर ही रखा। रह रहकर कांग्रेस के अन्दर खाने चल रही धींगामुश्ती भ्रमित करती थी, आंकलन की दृष्टि पर हमेशा गहरे बादल के धुंध तैरते रहते थे। जिस तरह कांग्रेस ने छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में भूपेश बघेल, कमलनाथ और अशोक गहलोत को बग़ैर किसी सहायक सेनापति के युद्ध के मोर्चे पर झोंककर बड़ी भूल की थी, तकरीबन वही ग़लती हरियाणा में भी दोहराई गई थी। हरियाणा में किसानों का दबदबा है तब भी खेती के स्वभाव को परखने में वे चूक गए। एक अनुभवी किसान बेहतर तरीके से समझता है कि जिस गेंहू के खेत में मोटी मोटी बालियां लहलहाती हैं उसी खेत में चूहों का आक्रमण प्रचण्ड होता है। बालियां चूहे खा जाते हैं और लापरवाह किसान भूसे के लिए डालियां ख़ुद उठाकर लाता है। हरियाणा चुनाव परिणाम जिस दिशा में परिवर्तित हुआ है, अचंभित होने की कोई वज़ह नही है। पुराने कांग्रेसी, कांग्रेस की जड़ों में खाद पानी डालने के बरअक्स हरे भरे वृक्षों में गर्म पानी उड़ेलते रहते हैं। वह अपनी पुरानी खोल से बाहर आने को राजी ही नही है। नतीजा आते ही वह मानसिक रूग्ण हो चुनाव आयोग के बेईमान होने का राग मल्हार अलापने लगते है।
          यक़ीनन हरियाणा चुनाव को निष्पक्ष और पारदर्शी होने का प्रमाण पत्र जारी करने की कतई मंशा नही है। कांग्रेस को यदि चुनाव परिणाम के पश्चात् ज्ञात होता है कि चुनाव आयोग बीजेपी के इशारे पर बेईमानी कर रहा है तब उसकी दशा को अबोध बालक की संज्ञा ही दी जा सकती है। जिस योद्धा को इतना भी भान न हो कि उसका दुश्मन जीत के लिए क्या क्या हथकंडे अपना सकता है तब उससे युद्ध के मैदान में फतह हासिल करने की उम्मीद करना ठीक उसी तरह है जिस तरह ख्वाजासर: से पुत्र सुख प्राप्त करने की आकांक्षा। हर चुनाव में गुरमीत राम रहीम को पैरोल और फरलो मिलना उसके जेल से बाहर आते ही चुनाव का समीकरण बदलना, बीजेपी को फ़ायदा होना इन बिन्दुओं पर मदहोश कांग्रेसी सेनापति ने बचाव के लिए कोई रणनीति क्यों नही बनाई? गुरमीत राम रहीम की भक्तों में आज भी पकड़ ढीली नही पड़ी है, विस्तार पर विराम जरूर लगा है। कम से कम एक प्रतिशत वोट को प्रभावित करने की उसकी क्षमता अब भी बरक़रार है। यदि यही एक प्रतिशत मत कांग्रेस के पक्ष में लामबंद होता तो कांग्रेस विधायकों की संख्या साठ पार निकल जाती।
       एक गल्प बहुत प्रचलित है कि राम ने लक्ष्मण को उच्च कोटि के ब्राह्मण, महापंडित, महा ज्ञानी रावण के पास दोबारा ज्ञान हासिल करने लिए भेजा तब नसीहत दी थी कि गुरू से ज्ञान हासिल करने के लिए उनके सिरहाने न खड़े होकर पैर के पास बैठकर याचना करो। रावण ने लक्ष्मण को बताया कि राम की जीत और मेरी हार का एक ही कारण है, उसका भाई उसके साथ था और मेरा भाई मेरे खिलाफ़ खड़ा था। यह प्रसंग राम के चरित्र को दर्शाता है कि वह रावण पर विजय का श्रेय लक्ष्मण के सिर मढ़ना चाहते थे।
         राम चरित मानस और रामायण का सुंदरकांड कराने वाले भूपिंदर सिंह हुड्डा को यह घटना क्यों नही याद आई कि यदि कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजेवाला नाव में छेद करते रहेंगे, तब उनकी नाव पार लगने से पहले ही किनारे आकर डूब जायेगी। चुनाव परिणाम साफ़ गवाही दे रहे हैं कि कांग्रेस की नैया बीच मझधार में नहीं अपितु किनारे लगकर छिछले पानी में डूबी है। शायद हुड्डा के उम्र का तकाज़ा हैं या फ़िर राहुल गांधी की संगठन पर ढीली पकड़ का नतीजा। बीजेपी और कांग्रेस नेतृत्व में बेसिक अन्तर यहीं से शुरू होता है। जहां बीजेपी हार्इ कमान का आदेश आते ही आपस में युद्धरत सभी योद्धा अनुशासन में आ जाते हैं,सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाते हैं, वहीं राहुल गांधी को जितना बीजेपी पप्पू नही मानती उससे अधिक कांग्रेस की जंग लगी तलवारे उन्हें पप्पू सिद्ध करने में जुटी रहती हैं।
         महाराष्ट्र चुनाव हरियाणा एक अलग युद्ध मैदान में लड़ा जाएगा। वहां प्रत्येक चौकी की निगरानी के लिए एक नही तीन तीन सेनापति होंगे। जहां अमात्य राक्षस के हथकंडों का तोड़ तलाशने में माहिर असली चाणक्य शरद पवार मौजूद होंगे। यहां गुब्बारे जैसे फुले कांग्रेसी अकड़ में होने की तुलना में अपने कुनबों को बचाने और मज़बूत करने में लगेंगे। उनके अस्तित्व पर संकट के काले घने बादल घिरे हैं बेहतर प्रदर्शन ही उनकी दृश्यता को धार दे सकता है। उद्धव ठाकरे और शरद पवार को भी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़नी है। उद्धव को सिद्ध करना कि चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे को शिवसेना का उत्तराधिकारी घोषित कर पार्टी और चुनाव चिन्ह जो उन्हें सौंपा है वह साज़िश थी। शिवसेना और बाला साहब ठाकरे के असली वारिश उद्धव ही हैं महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव परिणाम ही असली और छद्म उत्तराधिकार को प्रमाणित करेंगे। यही प्रदर्शन दोहराने की चुनौती पंवार के सामने प्रकट होकर उन्हें अपना बेहतर प्रस्तुत करने लिए बाध्य कर रही है। जब प्रतियोगिता शुरू हो जाती है तब प्रत्येक खिलाड़ी मेडल के लिए अपनी सभी प्रतिभा झोंक देता है।
       चुनौती मिलने पर कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया है। हरियाणा की हार ने शायद कांग्रेसियों के शरीर की अकड़न को ढीला कर दिया है। अनुभवों के आधार पर विश्वस्त हूं कि महाराष्ट्र में कांग्रेस का स्ट्राइक रेट 70% के आस पास होगा। महाराष्ट्र की जनता मुख्यमंत्री के रूप में अपनी पसन्द को उद्धव ठाकरे को सबसे ऊपर रखती है, उम्मीद है कि यदि शिवसेना (उद्धव) नब्बे या 95 सीट पर चुनाव लड़ती है, तब वह अपने 2019 के परिणाम को समृद्ध करते हुए पैंसठ सीट को अपनी झोली में भरने में कामयाब रहेगी। शरद पवार यदि अस्सी सीट पर चुनाव लड़ते हैं, वह भी साठ सीट के क़रीब परिणाम अपने पक्ष में करने में सफल रहेंगे। कांग्रेस महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में लार्जेस्ट दल के रूप में उभर सकती हैं।
      महा विकास अगाड़ी 175-190 सीट तक जीतने में कामयाब रहेगी, आसार ऐसे ही नज़र आते हैं; बशर्तें वह पहले से सेंध लगने वाले स्थानों की हिफ़ाज़त कर लें।
         क्षेत्रवार सीटों का समीकरण और गठबंधनों के प्रदर्शन की विवेचना के अभाव में चुनावी समीकरण को समझना कठिन है। तटीय कोंकण क्षेत्र सिंधुदुर्ग से मुंबई तक फैला है जिसमें पालघर, ठाणे, रायगढ़, और रत्नागिरी जिले समाहित है। महायुति गठबन्धन ने लोकसभा चुनाव में यहां से छः सीटों पर जीत हासिल की थी। इस क्षेत्र में विधानसभा की कुल 75 सीटें हैं। पालघर में 6, ठाणे में 18, मुंबई में 36, रायगढ़, रत्नागिरी, सिंधुदुर्ग में 15 सीट। 2019 विधानसभा चुनाव में एकीकृत शिवसेना ने यहां से 29 सीट, बीजेपी 27 सीट, एनसीपी 6 सीट, कांग्रेस 4 सीट, बीवीए 3 सीट, सपा 2 सीट, मनसे 1 सीट, सीपीएम 1 सीट, निर्दलीय 1 सीट पर जीत हासिल करने में कामयाब रहे। इस चुनाव में कांटे की टक्कर होगी, पलड़ा इण्डिया गठबंधन की तरफ झुकता नजर आ रहा है।
         विदर्भ: 62 सीट:- बीजेपी 30 सीट, कांग्रेस 15 सीट, एनसीपी 5 सीट, शिवसेना 4 सीट, प्रहार जनशक्ति पार्टी 2 सीट, स्वाभिमानी पक्ष 1 सीट और निर्दलीयों ने इस क्षेत्र में 5 सीट पर विजय हासिल की थी। विदर्भ क्षेत्र में देवेन्द्र फडणवीस पूर्व मुख्यमंत्री व वर्तमान उपमुख्यमंत्री , चंद्रशेखर बवनकुले बीजेपी और नाना पटोले व विजय वत्तिवार के गढ़ हैं। 2019 विधानसभा चुनाव में महायुति गठबन्धन ने बाजी जीती थी परन्तु इस बार चुनाव परिणाम बिल्कुल प्रतिकूल होने की संभावना है। इंडिया गठबंधन इस क्षेत्र से 40 सीट के क़रीब जीत से बड़ी बढ़त लेता दिख रहा है।
     पश्चिमी महाराष्ट्र: (58) एनसीपी 20 सीट, कांग्रेस 11 सीट, बीजेपी 17 सीट शिवसेना 5 सीट, जनसुराज शक्ति पार्टी 1 सीट और निर्दलीयों ने इस क्षेत्र से 4 सीट के साथ अपने अपने सिर पर जीत का सेहरा बांधा था। इस चुनाव में भी शरद पवार साहब का जलवा दिखेगा, उनका दबदबा कायम रहेगा उनकी सीटें बढ़ेंगी। यदि कोई प्रलय नही आया तो यहां एक तरफा चुनाव परिणाम आयेगा जो इंडिया गठबंधन के चेहरे पर खुशियां बिखरने में बड़ी भूमिका अदा करेगा। शरद और अजीत पवारों की लड़ाई में बड़े पंवार साहब कुछ ज़्यादा ही भारी दिखाई दे रहे हैं। शरद पवार के भतीजे अजीत पवार और अजीत पवार के भतीजे युगेंद्र पवार अब अजीत पवार साहब चाचा और भतीजे की चक्की के दो पाटो के बीच फंस गए हैं, पिस जायेंगे।
       उत्तरीय महाराष्ट्र:(47) बीजेपी 16 सीट, एनसीपी 13 सीट, कांग्रेस 7 सीट, शिवसेना 6 सीट, AIMIM 2 सीट, क्रान्तिकारी शेतकारी पक्ष 1 सीट और निर्दलीयों ने इस रीज़न से 2 सीट पर जीत हासिल की थीं। यह क्षेत्र प्याज़ बेल्ट के रूप में जाना जाता है। कांग्रेस के सांसद कुणाल पाटिल की किसानों पर यहां अच्छी खासी पकड़ है। यहां भी इंडिया गठबंधन की हवा चल रही है। अजीत पवार की कमान यहां छगन भुजबल संभालेंगे परन्तु प्रतीत होता है कि तीर चलने से पहले ही कमान लचक जायेगी।
       मराठवाड़ा:(46) यहां से बीजेपी 16 सीट, शिवसेना 12 सीट, कांग्रेस 8 सीट, एनसीपी 8 सीट, RSP 1 सीट, PWI ने 1 सीट पर जीत दर्ज की। मराठवाड़ा, मराठा आरक्षण का केंद्र रहा है, मराठों की सरकार से नाराज़गी जग जाहिर है। NDA गठबन्धन को यहां भारी क़ीमत चुकानी पड़ सकती है।
           चुनाव के परिणाम चाहें जो भी हो लेकिन यह तय है कि सत्ता की लालच या पापों से भरे घड़े को छिपाने के लिए एकनाथ शिंदे और अजीत पवार ने एक ऐसे घड़ियाल से दोस्ती कर ली है जो समन्दर के बीचों बीच ही दोस्ती के एवज में इनका कलेजा खाने की ज़िद पकड़ ली है। अब यह दोनों इस स्थिति में नही हैं कि कह सके कि दोस्त हम अपना कलेजा पेड़ की डाल पर छोड़ आए है हमें किनारे ले चलो हम पेड़ से अपना अपना कलेजा उतार कर दे देंगे तुम चाव से खा लेना। बन्दर को समंदर की सैर कराने के बहाने घड़ियाल किस तरह से उनके कलेजे की दावत उड़ाता है, कोई दुष्यन्त चौटाला से पूछे।
*गौतम राणे सागर*
  राष्ट्रीय संयोजक,
संविधान संरक्षण मंच।

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