बेसिक स्कूलों को बन्द करने की साज़िश का होगा प्रतिकार


बेसिक स्कूलों को बन्द करने की साज़िश का होगा प्रतिकार
   साजिशन सरकारी प्राथमिक/ माध्यमिक विद्यालयों को बन्द कराने की सरकार योजना बना रही है। इसका दुष्परिणाम यह होगा कि ग़रीबों के बच्चे शिक्षा से वंचित तो होंगे ही, भविष्य में शिक्षकों की भर्ती नही होगी। बाद में इन विद्यालयों की भूमि को सस्ते दामों में प्राईवेट लोगों को बेच दी जायेगी।
              इस विषयक एक प्रपत्र जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को निदेशक बेसिक शिक्षा द्वारा जारी किया गया है। सरकार की इस कुत्सित चाल/छल को जो कि ग्रामीणों ख़ास तौर पर किसानों, मज़दूरों, नौजवानों को गुलाम बनाने की व्यूह रचना है, को सफ़ल होने से हर हाल में रोकना चाहिए अन्यथा यह तो पूरे ग्रामीण क्षेत्रों का ही विनाश कर देंगे। भारत गांवों का देश है। गांव मज़बूत तो देश भी मज़बूत होगा। गांव के कमज़ोर होते ही देश फ़िर ग़ुलाम हो जायेगा। अतीत में हमारी गुलामी का कारण यही रहा है, गांव कमज़ोर थे और राजे, महराजे अय्याश और निकम्मे। क्या हमें फ़िर से एक गुलामी झेलनी चाहिए, यदि नही तो इंतज़ार कैसा? यलगार हो!
      ख़बरें बहुत पहले से हवा में तैर रही है कि परिषदीय विद्यालयों की भूमि को "प्रथम संस्था" जिसको अजय पीरामल संचालित करते हैं ,को ₹10 वर्ग मीटर के हिसाब से बेचने का बयाना भी हो चुका है. विद्यालयों में बच्चों की संख्या कम हो जाय इसलिए साज़िशें परवान चढ़ी है। परिषदीय विद्यालय में बच्चे ₹500/ माह शुल्क देंगे लेकिन बगल में खुला प्राईवेट स्कूल बच्चों को प्रोत्साहन के रूप में ₹1500/ माह देगा। यह साज़िश समझ आ रही है कि नही? ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में इसी तरह प्रवेश किया था. चाय के साथ बिस्किट मुफ़्त दिया जाता था ताकि बिस्किट की लालच में आप चाय के आदी हो जाय, उनका चाय का व्यवसाय चल निकले. यही परिपाटी यहाँ भी अपनाई गई है ₹1500 की लालच में बच्चे परिषदीय विद्यालय आना बन्द कर दें. सरकार को विद्यालयों का संचालन घाटे का सौदा लगे और यह इसे पैक अप करने का फ़रमान जारी कर दें. 
       सरकार में बैठे लोगों की शक़्ल सूरत भले ही सफ़ेद न हो परंतु इनकी धमनियों में बहने वाला रक्त अँग्रेजों से भी अधिक काला और दूषित है. यह वोट लेंगे किसान, मज़दूरों, दस्तकारों, बुनकरों असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों के हित की पॉलिसी बनाने के लिए लेकिन तलवा चाटेगे देश को लूटने वाले उद्योग घरानों का। लोग गहरे में डूबते हैं ये बेईमान नेता किनारे आकर चुल्लू भर पानी में डूब मरते हैं. देश के स्वाभिमान का सौदा कर लेते हैं. देश देश के नागरिक देश की अस्मिता का सौदा होते देख चुप कैसे रह सकता है? भारत एक सामाजिक कल्याणकारी राज्य है, उद्योगों के बढ़ावा देने के लिए सरकार स्मार्ट सिटी बनाये हमें कोई आपत्ति नही लेकिन हमारे आदर्श गाँव की सोंधी मिट्टी और इसके भाईचारे की संस्कृति को तबाह करने वाले हांथों बख्शा नही जा सकता.
           भारतीय किसान यूनियन (स) गांवों को बर्बाद करने वाली सरकारी साज़िश को हर हाल में असफल करेगी। सरकार सिर्फ़ हमारी प्रतिनिधि है हमारी तबाही का निर्णय लेने का उसे कोई हक़ नही है।
*गौतम राणे सागर*
  राष्ट्रीय उपाध्यक्ष,
भारतीय किसान यूनियन (स)

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