न्यूयॉर्क। भारत ने एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में ठोस सुधार की कड़ी वकालत की है। भारत ने कहा कि दशकों से बार-बार स्थायी सदस्यता में सुधार की मांग उठाए जाने के बावजूद परिषद के पास दिखाने को कोई परिणाम नहीं है और 1965 से अब तक महज टाल-मटोल होता आ रहा है।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि पी. हरीश ने सोमवार को ‘सुरक्षा परिषद में न्यायसंगत प्रतिनिधित्व और सदस्यता में वृद्धि का प्रश्न’ विषय पर संयुक्त राष्ट्र महासभा के वार्षिक पूर्ण सत्र में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए यह टिप्पणी की।
न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में भारत के स्थायी मिशन ने हरीश के हवाले से एक बयान में कहा अपनी स्थापना के 16 साल बाद, अंतर-सरकारी वार्ता (आईजीएन) एक-दूसरे के साथ संवाद के बजाय मुख्य रूप से बयानों के आदान-प्रदान तक ही सीमित है। कोई बातचीत का पाठ नहीं। कोई समय-सीमा नहीं और कोई निश्चित अंतिम लक्ष्य नहीं।
भारत ने इस बात पर जोर दिया है कि जब वह आईजीएन में वास्तविक ठोस प्रगति चाहता है, जिसमें पाठ-आधारित वार्ता के अग्रदूत के रूप में सुरक्षा परिषद के सुधार के एक नए ‘मॉडल’ के विकास के संबंध में प्रगति भी शामिल है, तो दिल्ली दो मामलों में सावधानी बरतने का आग्रह करती है।
हरीश ने कहा पहला यह है कि सदस्य राज्यों से जानकारी की न्यूनतम सीमा की खोज से उन्हें अपना मॉडल पेश करने के लिए अनिश्चित अवधि तक इंतजार करने की स्थिति नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा, ‘कन्वर्जेंस’ के आधार पर एक समेकित मॉडल के विकास से सबसे कम सामान्य ‘डिनॉमिनेटर’ का पता लगाने की दौड़ नहीं होनी चाहिए। उन्होंने आगाह किया कि इससे स्थायी श्रेणी में विस्तार और एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका तथा कैरेबियाई देशों के कम प्रतिनिधित्व पर ध्यान देने जैसे महत्वपूर्ण तत्वों को अनिश्चित काल के लिए स्थगित किया जा सकता है।
हरीश ने कहा कि ‘ग्लोबल साउथ’ के सदस्य के रूप में, भारत का मानना है कि ‘प्रतिनिधित्व’ न केवल परिषद, बल्कि पूरे संयुक्त राष्ट्र की ‘वैधता’ और ‘प्रभावशीलता’ दोनों के लिए अपरिहार्य शर्त है। बता दें कि भारत सुरक्षा परिषद में सुधार के लिए वर्षों से चल रहे प्रयासों में सबसे आगे रहा है, जिसमें इसकी स्थायी और अस्थायी दोनों श्रेणियों में विस्तार शामिल है।
(रिपोर्ट. शाश्वत तिवारी)
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